
आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्यायबताया और इस अवसर पर कांग्रेस पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तीखी आलोचना की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई विशेषकैबिनेट बैठक की शुरुआत दो मिनट के मौन के साथ हुई, जिसमें आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों को श्रद्धांजलिदी गई। बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें आपातकाल को संविधान के मूल्यों के विरुद्ध बताया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर इस दिन को “संविधान हत्या दिवस” करार देते हुए लिखा कि 25 जून 1975 को देश के मौलिक अधिकारों कोनिलंबित कर दिया गया था, प्रेस की स्वतंत्रता छीनी गई और हजारों नागरिकों, छात्रों तथा नेताओं को जेल में डाल दिया गया। उन्होंने आरोप लगायाकि उस समय की कांग्रेस सरकार ने लोकतंत्र को पूरी तरह कुचलने का प्रयास किया। गृह मंत्री अमित शाह और अन्य भाजपा नेताओं ने भी इसी स्वर मेंआपातकाल की निंदा की। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कांग्रेस पार्टी आज भी आपातकाल जैसे गंभीर विषय परआत्ममंथन करने को तैयार नहीं है, और यह दर्शाता है कि उसने उस दौर से कोई सबक नहीं लिया है।
कैबिनेट बैठक में इस ऐतिहासिक संदर्भ के अलावा तीन प्रमुख फैसले भी लिए गए। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि पुणे मेट्रो विस्तार केलिए 3626 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं, वहीं झारखंड के झरिया में वर्षों से जारी भूमिगत कोयला आग से निपटने के लिए 5940 करोड़ रुपये कासंशोधित मास्टर प्लान स्वीकृत किया गया है। इसके अलावा आगरा में 111 करोड़ रुपये की लागत से एक अंतरराष्ट्रीय आलू अनुसंधान केंद्र स्थापितकिया जाएगा।
इस मौके पर भाजपा ने युवाओं से आह्वान किया कि वे आपातकाल की सच्चाई को जानें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतर्क रहें। पार्टी का मानना हैकि इतिहास के इस काले दौर को भुलाना नहीं चाहिए, बल्कि इससे सीख लेकर संविधान और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकताफैलानी चाहिए।