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कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की शिक्षा नीति की तीखी आलोचना की। उन्होंने आरोपलगाया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा का व्यावसायीकरण और पाठ्यपुस्तकों का सांप्रदायिकरण है। उन्होंने इसे भारतीयशिक्षा प्रणाली के लिए खतरा बताया और समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया।

“तीन सी” का प्रभाव
सोनिया गांधी ने शिक्षा प्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव को तीन प्रमुख पहलुओं में विभाजित किया गया है।
केंद्रीकरण: उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा को अपने नियंत्रण में रखने का प्रयास कर रही है, जिससे राज्यों की भूमिका कमजोर हो रही है। उदाहरण केतौर पर, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) की बैठक 2019 के बाद नहीं बुलाई गई। इसके अलावा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 कोलागू करने से पहले राज्यों से उचित परामर्श नहीं लिया गया व्यावसायीकरण: उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने काप्रयास कर रही है, जिससे निम्न वर्ग के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच कठिन हो रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की”ब्लॉक-अनुदान” प्रणाली को उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) से बदल दिया गया, जिससे निजी निवेश में वृद्धि हुई है।
सांप्रदायिकरण: उन्होंने सरकार पर पाठ्यक्रम में ऐतिहासिक तथ्यों में छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया। गांधी ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या औरमुगल काल से संबंधित कई महत्वपूर्ण विषयों को पाठ्यपुस्तकों से हटाने का प्रयास किया गया। इसके अलावा, भारतीय संविधान की प्रस्तावना कोभी कुछ समय के लिए पाठ्यक्रम से बाहर किया गया था।

उच्च शिक्षा पर प्रभाव
सोनिया गांधी ने दावा किया कि सरकार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में विचारधारासे प्रेरित नियुक्तियां कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन संस्थानों में ऐसे लोगों को नेतृत्व की भूमिका दी जा रही है, जिनकी शैक्षणिक योग्यतासंदिग्ध है।

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