तीन दिन चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून 2025 पर अंतरिम रोक की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षितरख लिया है। इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने कानून को मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन और भेदभावपूर्ण बताया, वहीं केंद्र सरकार ने इसकाजोरदार बचाव किया।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि पांच वर्ष के प्रैक्टिसिंग मुस्लिम की शर्त असंवैधानिक है।उन्होंने कहा कि शरिया कानून के साथ इस कानून की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि शरिया को मानना बाध्यकारी नहीं है। इसके अलावा, अन्यधर्मों के कानूनों में ऐसी कोई शर्त नहीं है, जिससे यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है, जो धर्म के आधार पर भेदभाव सेरोकता है।
केंद्र सरकार का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से दलील दी कि वक्फ का अधिकार सिर्फ मुसलमानों को है, इसलिए यह आवश्यक है कि वक्फकरने वाला व्यक्ति पांच साल से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हो। उन्होंने बताया कि 2013 के संशोधन में ‘मुसलमान’ शब्द हटाकर कोई भी व्यक्ति वक्फ करसकता है, लेकिन 2025 के संशोधन में इसे ठीक कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि यह प्रावधान शरिया सिद्धांतों के अनुरूप है, जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ लेने के लिए भी व्यक्ति को मुस्लिम होने का घोषणापत्रदेना होता है। इसके अलावा, उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोई हिन्दू किसी मस्जिद को दान देना चाहता है तो वह ट्रस्ट के माध्यम से अब भी ऐसा करसकता है।
अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ पर रोक
केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ संपत्ति घोषित करने पर रोक जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा के लिएहै, ताकि उनकी पारंपरिक भूमि और अधिकारों पर कोई प्रभाव न पड़े।
तमिलनाडु गांव विवाद पर कोर्ट का ध्यान
एक याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु में एक पूरे गांव को वक्फ संपत्ति घोषित करने पर आपत्ति जताई। याचिका में कहा गया कि पांच हजार साल पुरानेचोल वंशकालीन गांव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया है, जो गलत है। कोर्ट ने इस बिंदु पर भी विचार का भरोसा दिलाया है।