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लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने केंद्र सरकार की सहकारी नीति पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि वहसहकारी समितियों को निजी हाथों में सौंपने की साजिश कर रही है, जिससे किसानों, मजदूरों और आम नागरिकों के हितों को सीधा नुकसान पहुंच रहाहै।

सहकारिता आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश: लोकदल
सुनील सिंह ने कहा कि सरकार एक तरफ देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर अपने फैसलों और नीतियोंसे इन संस्थाओं को कॉर्पोरेट के हवाले करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा, “सरकार की असल मंशा अब सामने आ चुकी है। सहकारीसंस्थाओं को धीरे-धीरे निजी नियंत्रण में देने की कोशिश की जा रही है, जो किसानों के हितों के खिलाफ है।”

सार्वजनिक संसाधनों को कॉर्पोरेट को सौंपने की मंशा
लोकदल प्रमुख ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार केवल सहकारी समितियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह सार्वजनिक संसाधनों को भी निजीऔर कॉर्पोरेट हाथों में सौंपने की दिशा में काम कर रही है। यह नीति जनविरोधी है और देश के संसाधनों पर कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों का कब्जाकरवाने का प्रयास है।

सहकारिता का मूल उद्देश्य नष्ट न किया जाए
सुनील सिंह ने कहा कि सहकारी संस्थाएं ग्रामीण भारत की रीढ़ हैं, जो सामूहिक भागीदारी, स्थानीय नेतृत्व और समुदायिक सशक्तिकरण की भावना सेजुड़ी हुई हैं। सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शी नीति अपनाए और निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोके।

किसानों की नाराज़गी और चेतावनी
सिंह ने कहा, “किसान देश की आत्मा हैं और सहकारी समितियाँ उनके सहयोग की धुरी हैं। इस धुरी को तोड़ने की किसी भी साजिश को देश काअन्नदाता कभी स्वीकार नहीं करेगा। लोकदल इस नीति का पूरी ताकत से विरोध करेगा और किसान हितों के साथ किसी भी समझौते को बर्दाश्त नहींकिया जाएगा।”

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