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5 जुलाई को देशभर में एक ऐसे जननेता को याद किया जा रहा है, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज के वंचित, दलित और गरीब तबकों के उत्थानके लिए समर्पित कर दिया। यह अवसर है लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पद्म भूषण से सम्मानित स्वर्गीय राम विलासपासवान जी की 79वीं जयंती का।

खगड़िया से दिल्ली तक का प्रेरक सफर
बिहार के खगड़िया जिले में जन्मे राम विलास पासवान बचपन से ही सामाजिक अन्याय और भेदभाव के खिलाफ मुखर रहे। उन्होंने राजनीति को सत्ताकी बजाय सेवा का माध्यम माना और अपना पूरा जीवन उन लोगों की आवाज़ बनने में लगा दिया, जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है।
राजनीतिक करियर में जनहित सर्वोपरि
पासवान जी ने कई बार संसद में जनप्रतिनिधि के रूप में भूमिका निभाई और उपभोक्ता संरक्षण, सामाजिक न्याय, और दलित अधिकारों जैसे विषयोंपर हमेशा मजबूत पक्ष रखा। वे अनेक केंद्रीय मंत्रालयों में मंत्री रहे और हर पद पर उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता और ईमानदारी का परिचय दिया।

सादगी और सेवा की राजनीति के प्रतीक
उनका जीवन बेहद सरल, ईमानदार और जनसमर्पित था। उन्होंने कभी भी पद, सत्ता या प्रतिष्ठा के लिए राजनीति नहीं की। उनका मानना था किराजनीति का मूल उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि जनसेवा होना चाहिए।

श्रद्धांजलि कार्यक्रमों के माध्यम से स्मरण
आज देश के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धांजलि सभाएं, गोष्ठियाँ, और सेवा कार्यों के माध्यम से राम विलास पासवान जी को याद किया जा रहा है। नईदिल्ली स्थित लोक जनशक्ति पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। उनके पुत्रचिराग पासवान सहित कई प्रमुख नेताओं ने भावपूर्ण स्मरण किया।

आदर्शों को आगे ले जाने का संकल्प
हालांकि वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका संघर्ष, विचार और जनसेवा का भाव आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा। उनकीजयंती पर देश यह संकल्प ले रहा है कि उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए प्रयास जारी रहेंगे।

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