बीजेपी, डीएमके और लेफ्ट जैसी विचारधाराओं में भिन्न राजनीतिक पार्टियां इस बार एक मुद्दे पर एकमत नजर आ रही हैं। ओडिशा, गुजरात, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने केंद्र से सेंट्रल टैक्सेज में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 50% करने की मांग की है। वर्तमान में राज्यों को केंद्रीय करों से41% हिस्सा मिलता है, लेकिन इन राज्यों का तर्क है कि यह हिस्सा बढ़ाया जाना चाहिए।
ओडिशा ने वित्त आयोग से पेश की अपनी मांग
ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने 16वें वित्त आयोग से मुलाकात के दौरान 2026-31 की अवधि के लिए 12.59 लाख करोड़ रुपये कीमांग की। माझी ने यह भी कहा कि राज्यों की हिस्सेदारी को 41% से बढ़ाकर 50% किया जाए। ओडिशा के साथ गुजरात, तमिलनाडु, केरल, पंजाबऔर गोवा जैसे राज्य भी यही मांग कर रहे हैं।
सेंट्रल टैक्सेज का वितरण कैसे होता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स का वितरण डिविजिबल पूल के जरिए किया जाता है। यह तय करने काजिम्मा वित्त आयोग पर होता है, जो हर पांच साल में इसकी समीक्षा करता है। वर्तमान में राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा इकट्ठा किए गए टैक्स का 41% हिस्सा मिलता है।
सेस और सरचार्ज: विवाद का मुख्य कारण
राज्यों का कहना है कि केंद्र सरकार अधिकतर राजस्व ‘सेस’ और ‘सरचार्ज’ के जरिए जमा कर रही है, जिसे डिविजिबल पूल में शामिल नहीं कियाजाता। 2015-16 में केंद्र का कुल टैक्स संग्रहण का 10% हिस्सा सेस और सरचार्ज से आता था, लेकिन 2022-23 में यह बढ़कर 29% हो गया।
राज्यों की अन्य मांगें
सेस और सरचार्ज को डिविजिबल पूल में शामिल करना: ओडिशा ने वित्त आयोग से मांग की है कि सेस और सरचार्ज का उपयोग नियंत्रित किया जाएऔर इसे डिविजिबल पूल का हिस्सा बनाया जाए।
संशोधित जनसंख्या वेरिएबल: ओडिशा ने टैक्स फॉर्मूले में बदलाव की मांग करते हुए सुझाव दिया है कि जनसंख्या के साथ SC/ST अनुपात, बुजुर्गोंऔर विधवा महिलाओं की संख्या जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को शामिल किया जाए।
राज्यों के बीच समान रुख: कारण
आर्थिक दबाव: कोरोना महामारी के बाद राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर हुई है।
GST का प्रभाव: GST लागू होने के बाद राज्यों की टैक्स संग्रहण क्षमता घट गई, जिससे केंद्र पर निर्भरता बढ़ी।
केंद्र की योजनाओं का बोझ: राज्यों का आरोप है कि केंद्र की योजनाओं का अधिकांश खर्च उन्हें उठाना पड़ता है।
क्या राज्यों की मांग मानी जाएगी?
16वां वित्त आयोग विभिन्न राज्यों की मांगों पर विचार कर रहा है। आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि सभी मांगों पर विस्तार से चर्चाहोगी। हालांकि, यदि राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाई जाती है, तो केंद्र सरकार के पास अपनी योजनाओं और खर्चों के लिए कम बजट रह जाएगा।