भारत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि वह ना तो डरता है, ना ही किसी भी प्रकार के आतंक के सामने झुकता है। पहलगाम, जम्मू-कश्मीर में 22 अप्रैल 2025 को हुए भीषण आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई और 17 लोग गंभीररूप से घायल हुए। यह हमला उस वक्त हुआ जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब दौरे पर थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारतकी यात्रा पर थे। इस आतंकवादी हमले के बाद भारत ने जो प्रतिक्रिया दी, वह “ऑपरेशन सिंदूर” के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई।
आतंकवादी हमला: एक कायरता पूर्ण कृत्य
इस हमले का निशाना बने अधिकांश लोग पर्यटक थे जो ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहे जाने वाले बायसरन की खूबसूरत वादियों में छुट्टियां बिताने आए थे।हमला इतने सुनियोजित और बर्बर तरीके से किया गया था कि इसकी तुलना 2019 के पुलवामा हमले से की जाने लगी। हमलावरों का उद्देश्य सिर्फजान-माल का नुकसान करना ही नहीं था, बल्कि भारत की सुरक्षा, अखंडता और वैश्विक छवि को भी चोट पहुँचाना था।

ऑपरेशन सिंदूर की योजना और क्रियान्वयन
भारत सरकार ने तत्काल प्रतिक्रिया दी। प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) ने मिलकर उच्चस्तरीयसुरक्षा बैठकें कीं।
6 और 7 मई की दरम्यानी रात को भारतीय सशस्त्र बलों ने “ऑपरेशन सिंदूर” की शुरुआत की। इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तानअधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकवादी शिविरों को लक्षित किया गया। भारतीय वायुसेना और सेना के विशेष बलों ने एक संयुक्त अभियान मेंसिर्फ 25 मिनट के अंदर नौ अलग-अलग ठिकानों पर 24 सटीक हमले किए। ये हमले जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्ब-उल-मुजाहिदीनजैसे संगठनों के शिविरों पर केंद्रित थे।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत ने यह कार्रवाई “सटीकता, एहतियात और करुणा” के साथ की, ताकि केवल आतंकवादी संरचनाओं को हीनुकसान पहुँचे और निर्दोष नागरिकों को कोई हानि न हो। उन्होंने इसे भारत के “जवाब देने के अधिकार” के तहत उचित ठहराया।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और भारत का प्रत्युत्तर
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने भारत के जम्मू, पठानकोट और उधमपुर स्थित सैन्य ठिकानों को ड्रोन और मिसाइलों से निशाना बनाने कीकोशिश की। हालांकि, भारतीय वायु रक्षा प्रणाली, विशेषकर S-400, ने इन हमलों को नाकाम कर दिया और कई पाकिस्तानी मिसाइलों और ड्रोनको मार गिराया।
इसके तुरंत बाद भारत ने पाकिस्तान के वायु रक्षा ठिकानों पर जवाबी हमला किया। खासकर लाहौर में स्थित वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कियागया। इस प्रतिक्रिया के बाद ही दोनों देशों ने 10 मई को “सभी फायरिंग और सैन्य कार्रवाई” को रोकने पर सहमति जताई।
अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भारत का अधिकार
संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51 सदस्य राज्यों को आत्म-रक्षा का अधिकार देता है, यदि उन पर सशस्त्र हमला होता है। जबकि यू.एन. चार्टर विशेषरूप से यह नहीं कहता कि “सशस्त्र हमला” क्या है, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने इसे “बल के उपयोग का सबसे गंभीर रूप” कहा है।
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को अनुच्छेद 51 के अंतर्गत सही ठहराया, भले ही विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया। उन्होंने इनहमलों को “मापदंडित और गैर-उत्तेजक” करार दिया। 8 मई को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 15 में से 13 सदस्य देशों के राजदूतोंको हमलों की जानकारी दी। पाकिस्तान के राजदूत को आमंत्रित नहीं किया गया था।

गैर–राज्य अभिनेताओं के खिलाफ आत्म–रक्षा का अधिकार
यू.एन. चार्टर की राज्य-केंद्रित प्रकृति के कारण गैर-राज्य अभिनेताओं जैसे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करना जटिल हो जाता है। हालांकि, 9/11 केबाद, अमेरिका जैसे देशों ने यह तर्क दिया कि आत्म-रक्षा का अधिकार आतंकवादी संगठनों पर भी लागू होता है।
ICJ की राय अधिक प्रतिबंधात्मक रही है, जो कहती है कि जब तक किसी राज्य को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, तब तक अनुच्छेद51 का प्रयोग नहीं किया जा सकता। भारत ने अपने बयानों में पाकिस्तान की मिलीभगत और आतंकियों को समर्थन देने के ठोस प्रमाण दिए, जिससेयह हमला एक राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का उदाहरण बन गया।
सीमावर्ती क्षेत्रों की स्थिति
ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद की गोलाबारी के चलते जम्मू, राजौरी, पुंछ, बारामुल्ला और कुपवाड़ा जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में भय का वातावरण उत्पन्नहो गया। पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई गोलाबारी में कम से कम 12 नागरिकों और एक सैनिक की मृत्यु हो गई, जबकि 51 अन्य घायल हुए।
अधिकारियों ने इन क्षेत्रों में अस्थायी राहत शिविर स्थापित किए और प्रत्येक सीमावर्ती जिले को ₹5 करोड़ की राशि जारी की। मुख्यमंत्री उमरअब्दुल्ला ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपायुक्तों के साथ आपात बैठक कर राहत और बचाव कार्यों का निर्देश दिया।
आतंकवादी संगठन और उनकी भूमिका
जिन आतंकी शिविरों को निशाना बनाया गया, उनका संबंध प्रमुख प्रतिबंधित संगठनों जैसे जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन से था।
जैश-ए-मोहम्मद (JeM): इसका मुख्यालय पाकिस्तान के बहावलपुर में है, और इसे मसूद अजहर ने 2000 में स्थापित किया था। यह संगठन संसदपर हमले से लेकर पुलवामा आत्मघाती हमले तक कई हमलों में शामिल रहा है।
लश्कर-ए-तैयबा (LeT): यह संगठन 2008 के मुंबई हमलों और 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों के लिए जिम्मेदार रहा है। इसका मुख्यालय पाकिस्तानके लाहौर के पास मुरीदके में है।

भारत की सैन्य क्षमताएं और दक्षता
भारत ने इस पूरे ऑपरेशन में अपनी सैन्य रणनीति और तकनीकी दक्षता का परिचय दिया। S-400 वायु रक्षा प्रणाली ने पाकिस्तान द्वारा दागी गईआठ मिसाइलों और कई ड्रोन को सफलतापूर्वक निष्क्रिय कर दिया। जवाबी हमले में भारत ने पाकिस्तान के तीन फाइटर जेट्स को भी मार गिराया, जिनमें से एक F-16 और दो JF-17 थे।
भारत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि वह ना तो डरता है, ना ही किसी भी प्रकार के आतंक के सामने झुकता है।
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगर उसकी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा पर खतरा आता है तो वह चुप नहीं बैठेगा।रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भारतीय प्रतिक्रिया पाकिस्तान के समान ही तीव्रता के साथ उसी क्षेत्र में रही है, लेकिन भारत तनाव नहीं बढ़ाना चाहता।
भारत की यह नीति स्पष्ट है: वह न तो पहले हमला करता है और न ही वह किसी भी उकसावे को अनदेखा करता है। “ऑपरेशन सिंदूर” इसका प्रमाणहै। यह न केवल सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि यह एक कूटनीतिक और कानूनी संदेश भी था – कि भारत अपनी रक्षा के लिए सक्षम है और इसके लिएअंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करता है।

ट्रंप की ‘संधि नीति’ और भारत में आक्रोश
इस सैन्य संघर्ष के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई को सोशल मीडिया पर अचानक घोषणा कर दी कि भारत और पाकिस्तान संघर्षविराम पर सहमत हो गए हैं। उन्होंने दावा किया कि यह अमेरिका की मध्यस्थता से संभव हो पाया है और अब दोनों देश एक निष्पक्ष स्थान परबातचीत करेंगे।
भारत में इस घोषणा को लेकर व्यापक आक्रोश फैल गया। भारतीय जनता ने ट्रंप के इस कदम को पाकिस्तान के प्रति नरम रुख और भारत की दृढ़रणनीतिक स्थिति को कमजोर करने वाला कदम माना। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की उस ऐतिहासिक नीति के खिलाफ है जिसमें किसीतीसरे पक्ष को भारत-पाक मुद्दों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जाती।
ट्रंप की धमकी और विपक्ष का आक्रामक रुख
12 मई को ट्रंप के एक और बयान ने इस विवाद को और गहरा कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि भारत और पाकिस्तान युद्ध नहीं रोकते, तो अमेरिकाउनके साथ व्यापार नहीं करेगा। इस धमकी जैसे बयान ने भारत में विरोधियों को प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने का मौका दे दिया।
विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाया कि क्या भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को अमेरिका के व्यापारिक हितों के लिए गिरवी रखेगा? कांग्रेस, आरजेडीऔर अन्य दलों ने सरकार से संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की ताकि ट्रंप की ‘चौधराहट’ को लेकर दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया जा सके।
आरजेडी सांसद मनोज झा ने कड़े शब्दों में कहा कि ट्रंप को कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसने दिया? वहीं आरजेडी की प्रवक्ता प्रियंकाभारती ने मोदी पर कटाक्ष करते हुए उन्हें ’56 इंच की भीगी बिल्ली’ तक कह डाला।
ब्रह्मा चेलानी का विश्लेषण: नीति बनाम नेतृत्व
विदेश मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने ट्रंप के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने पाकिस्तान को भारतीय सेना की सजा से बचा लिया।उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप का यह हस्तक्षेप दरअसल पाकिस्तान के उस एजेंडे को हवा देता है जो कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है।
हालांकि चेलानी ने प्रधानमंत्री मोदी की उस आलोचना की सराहना की जो उन्होंने परोक्ष रूप से अपने संबोधन में ट्रंप को की थी। मोदी ने स्पष्ट करदिया कि भारत पाकिस्तान से केवल दो मुद्दों पर बात करेगा—पाक-अधिकृत कश्मीर की वापसी और आतंकवाद का खात्मा।
भारतीय अमेरिकियों की नाराजगी
अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने भी ट्रंप की आलोचना की। प्रमुख भारतीय अमेरिकी लेखक और टिप्पणीकार विभूति झा ने ट्रंप को संबोधित करतेहुए कहा कि आपने नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ को एक ही तराजू में तौलकर ‘दोस्ती’ जैसे शब्द को अपमानित किया है। उन्होंने कहा कि जो नेताअपने सैनिकों और आतंकवादियों के बीच फर्क नहीं कर पाते, वे अच्छे लीडर नहीं कहे जा सकते।
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर मोहन सिन्हा जैसे भारतीय अमेरिकियों ने भी ट्रंप की अज्ञानता पर तीखी प्रतिक्रिया दी और अमेरिका की दक्षिण एशिया नीति कोएकतरफा और ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान समर्थक बताया।
ट्रंप के रुख में बदलाव: चुनावी रणनीति या अमेरिकी नीति?
एक बड़ा सवाल यह है कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान की सैन्य सहायता रोक दी थी, चीन के खिलाफ भारत का समर्थन किया था, फिर अब उन्होंने यह यू-टर्न क्यों लिया? विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप आगामी चुनावों में यह दिखाना चाहते हैं कि वे वैश्विक शांति लाने में सक्षम हैं।
ट्रंप पहले ही रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास संघर्ष में कोई उल्लेखनीय भूमिका नहीं निभा पाए हैं। भारत-पाक संघर्ष उन्हें एक मौका लगा जिससे वेअपनी कूटनीतिक सक्रियता प्रदर्शित कर सकें। यह उनका घरेलू चेहरा चमकाने का प्रयास था।
वहीं कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह ट्रंप का व्यक्तिगत निर्णय नहीं बल्कि अमेरिका की पारंपरिक रणनीति है। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थितिऔर वहां की सैन्य संरचना अमेरिका के लिए हमेशा से रणनीतिक रूप से अहम रही है।
भारतीय हमलों के प्रभाव और पाकिस्तान पर परमाणु संकट की मार
12 मई को भारतीय सेना द्वारा की गई कार्रवाई में पाकिस्तान के प्रमुख हवाई ठिकानों को निशाना बनाया गया। इसमें रफीकी एयरबेस (शोरकोट), नूरखान एयरबेस (रावलपिंडी), मलीर छावनी (कराची), और कई रडार साइटें शामिल थीं। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत ने पाकिस्तान के हर रणनीतिकशहर में सैन्य ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया।
यह भी दावे किए जा रहे हैं कि भारत ने एक परमाणु सुविधा केंद्र पर भी हमला किया जिससे अमेरिका को अपना परमाणु सुरक्षा सहायता विमानबी350 AMS तैनात करना पड़ा। हालांकि भारत की सेना ने इन दावों को खारिज किया, क्यूंकि इससे तनाव की गंभीरता का अंदाजा लगाया जासकता है।

कूटनीति और राष्ट्रीय स्वाभिमान का संतुलन
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब 1999 या 2001 वाला भारत नहीं है, जो बाहरी दबाव में झुकता था। हालांकि अमेरिका कीतरह के देशों के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखना भारत के लिए आवश्यक है, लेकिन यह संबंध किसी कीमत पर संप्रभुता की हानि के साथ नहीं होसकते।
डोनाल्ड ट्रंप की हालिया भूमिका ने अमेरिका-भारत संबंधों की जटिलता को उजागर कर दिया है। यह भारत की विदेश नीति के लिए एक चुनौतीपूर्णमोड़ है—जहां उसे वैश्विक कूटनीति, क्षेत्रीय सुरक्षा और घरेलू राजनीति के बीच संतुलन साधना होगा। प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वे ट्रंप जैसेअप्रत्याशित नेताओं से पार पाने के लिए अधिक सक्रिय और पारदर्शी कूटनीति अपनाएं ताकि भारत की गरिमा और सुरक्षा को कोई आंच न आए।
