बिहार सरकार ने चारा घोटाले से जुड़ी 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी की रकम दोषियों से वसूलने का फैसला किया है। राज्य के उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री सम्राट चौधरी ने स्पष्ट किया कि सरकार यह राशि जब्त कर सरकारी खजाने में जमा करेगी। उन्होंने कहा कि यह निर्णय न्यायालय के आदेश केतहत लिया गया है और सरकार इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
चारा घोटाला, जो भारत के सबसे बड़े भ्रष्टाचार मामलों में से एक माना जाता है, 1990 के दशक में सामने आया था। यह मामला बिहार और झारखंडके पशुपालन विभाग से जुड़ा था, जिसमें पशुओं के चारे और देखभाल के नाम पर फर्जी बिलों के जरिए सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की हेराफेरीकी गई थी। 1996 में चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे द्वारा विभाग के दफ्तरों पर छापेमारी के बाद इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ। इसके बादपटना हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया और 27 मार्च 1996 को पहली प्राथमिकी दर्ज की गई।
सीबीआई ने इस मामले में 66 अलग-अलग केस दर्ज किए और 170 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया। इनमें बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव भी शामिल थे, जिन्हें पांच अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया गया। इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, जगदीश शर्मा औरआर.के. राणा समेत कई अन्य नेताओं और अधिकारियों को भी सजा सुनाई गई। लालू प्रसाद यादव को पहली बार 3 अक्टूबर 2013 को इस घोटालेके तहत जेल की सजा मिली थी और अब तक वे सात बार जेल जा चुके हैं।
सरकार अब इस घोटाले में शामिल दोषियों की संपत्तियां जब्त करने और जनता के धन को वापस सरकारी खजाने में लाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ारही है। सम्राट चौधरी ने कहा कि यह कोई राजनीतिक फैसला नहीं, बल्कि न्यायालय के आदेशानुसार लिया गया निर्णय है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कियाकि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और सभी आवश्यक कानूनी कदम उठाए जाएंगे। यह कार्रवाई बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश केरूप में देखी जा रही है, जिसका असर राज्य की राजनीति पर भी पड़ सकता है।