जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने पहलगाम आतंकी हमले पर एक बार फिर बड़ा बयान दिया है।उन्होंने कहा कि इतना बड़ा हमला स्थानीय सहयोग के बिना संभव ही नहीं है। फारूक का मानना है कि अंदरूनी लोगों की मिलीभगत के बिनाआतंकियों का इतने अंदर तक पहुंचना मुश्किल है।
“मैंने पहले ही चेतावनी दी थी मौलाना अजहर को न छोड़ें”
एक इंटरव्यू में फारूक अब्दुल्ला ने कहा, “मैंने पहले ही कहा था कि मसूद अजहर को रिहा न किया जाए, क्योंकि वह बहुत चालाक और नेटवर्किंग मेंमाहिर है। उसे जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति की पूरी जानकारी थी। दुर्भाग्यवश, मेरी बात पर तब ध्यान नहीं दिया गया।” अब्दुल्ला ने इशाराकिया कि इस हमले में मसूद अजहर की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
LoC से 150 किमी दूर कैसे पहुंचे आतंकी?
बैस रन घाटी, जहां हाल ही में आतंकी हमला हुआ, वह लाइन ऑफ कंट्रोल से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर है। सुरक्षा एजेंसियों और विशेषज्ञोंका मानना है कि इतनी दूरी तय करना बिना स्थानीय सहायता के असंभव है। एनआईए की शुरुआती जांच में भी ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) केशामिल होने की आशंका जताई गई है।
लॉजिस्टिक और ठिकाने की व्यवस्था में मिली मदद
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकियों को इस क्षेत्र में न तो ठिकानों की जानकारी थी और न ही संसाधनों की व्यवस्था की क्षमता। इसलिए बिनाकिसी स्थानीय सहयोग के उनका यहां टिक पाना और हमला कर पाना बेहद मुश्किल है। ऐसे में स्थानीय नेटवर्क की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं कियाजा सकता।
लश्कर कमांडर फारूक अहमद पर शक की सुई
इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा के वरिष्ठ कमांडर फारूक अहमद के शामिल होने की बात सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि फारूक ने एक मजबूतओवरग्राउंड नेटवर्क तैयार किया है, जो आतंकियों को सीमा पार से भारत में दाखिल होने में मदद करता है।
कंधार हाईजैक और मसूद अजहर की रिहाई: एक ऐतिहासिक भूल?
1999 के कंधार विमान अपहरण कांड में आतंकियों ने भारत सरकार के सामने मौलाना मसूद अजहर की रिहाई की शर्त रखी थी। फारूक अब्दुल्ला, जो उस समय जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, इस फैसले के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने तब केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि अजहर की रिहाई देश केलिए बड़ा खतरा साबित हो सकती है।
मसूद अजहर: बाद में बना जैश-ए-मोहम्मद का सरगना
मसूद अजहर, जिसे भारत ने बंधकों की जान बचाने के लिए छोड़ा था, बाद में कुख्यात आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक बना। इससंगठन ने कई आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ली, जिनमें 2019 का पुलवामा हमला भी शामिल है। फारूक अब्दुल्ला का दावा है कि उनकी उस समयकी चेतावनी को अगर गंभीरता से लिया गया होता, तो हालात कुछ और होते।