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उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि नाबालिग की ब्रेस्ट छूने के मामले को रेप केस के रूप में नहीं लिया जा सकता। अदालत ने इसमामले में आरोपी को दोषी ठहराते हुए कहा कि यह मामला छेड़खानी का है, न कि रेप का। इस फैसले ने कानूनी दायरे में नाबालिगों के खिलाफअपराधों को परिभाषित करने के तरीकों पर नई बहस छेड़ दी है।

यह मामला तब सामने आया था जब एक व्यक्ति ने एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न किया था, जिसमें उसने कथित रूप से लड़की कीब्रेस्ट को छुआ था। लड़की ने आरोपी के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी, जिसके बाद मामला अदालत में पहुँचा। हालांकि, उच्च न्यायालयने इसे रेप के बजाय छेड़छाड़ के दायरे में रखा।

अदालत ने क्या कहा?
कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय देते हुए कहा कि नाबालिग के साथ शारीरिक संपर्क करना, विशेष रूप से ब्रेस्ट को छूना, यद्यपि यहयौन उत्पीड़न है, लेकिन यह ‘रेप’ की श्रेणी में नहीं आता। अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत रेप की परिभाषा का हवालादेते हुए कहा कि ‘रेप’ का मामला तभी बनता है जब किसी महिला के साथ पूर्ण यौन संबंध बनाए जाएं या बलात्कार किया जाए।

अदालत ने कहा कि केवल ब्रेस्ट को छूना, जबकि यह एक गंभीर अपराध है, उसे ‘रेप’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसके बजाय, इसे’छेड़छाड़’ और ‘यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में रखा गया। अदालत ने आरोपी को यौन अपराध के लिए दोषी ठहराया, लेकिन रेप के बजाय उसे अन्यअपराधों के तहत सजा दी।

भारतीय दंड संहिता और यौन उत्पीड़न
भारतीय दंड संहिता (IPC) में बलात्कार (Section 375) की परिभाषा स्पष्ट है और इसमें महिला के साथ पूर्ण यौन संबंध बनाने को रेप माना जाताहै। इसमें बलात्कार के सभी प्रकार, जैसे बलात्कार के दौरान हिंसा, धोखाधड़ी, या मानसिक दबाव के तहत यौन संबंध बनाने की स्थिति शामिल है।हालांकि, इस मामले में अदालत ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के ब्रेस्ट को छूने का कृत्य भारतीय दंड संहिता के तहत रेप के तहत नहीं आता, बल्कि इसेछेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के दायरे में रखा गया।

इस फैसले पर विवाद
कलकत्ता हाई कोर्ट के इस फैसले ने कानूनी और सामाजिक क्षेत्रों में विवाद उत्पन्न किया है। कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला यौनउत्पीड़न के मामलों में नाबालिगों के अधिकारों और सुरक्षा को पर्याप्त रूप से सुनिश्चित नहीं करता। उनके अनुसार, यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपीको गंभीर सजा मिलनी चाहिए, चाहे वह रेप के तहत आता हो या नहीं।
कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि इस फैसले से यौन अपराधों के खिलाफ संघर्ष को कमजोर किया जा सकता है, क्योंकि इस तरह के अपराधों कोहल्के रूप में लिया गया है। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी इस फैसले की आलोचना की और कहा कि यह नाबालिगों के खिलाफ अपराधोंको लेकर समाज में गलत संदेश दे सकता है।

समाज और कानूनी दृष्टिकोण
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर भी हलचल मच गई है। कई लोगों ने इसे नाबालिगों के प्रति असंवेदनशीलता की ओर इशारा किया, जबकिकुछ ने इसे न्यायपूर्ण निर्णय बताया। इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए गए, और यह भी कहा गया कि यौन अपराधों केखिलाफ सख्त और स्पष्ट कानूनों की आवश्यकता है।

नाबालिगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में समाज का दृष्टिकोण भी धीरे-धीरे बदल रहा है। ऐसे मामलों में पुलिस और न्यायालय को त्वरितऔर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अपराधियों को सजा मिल सके और पीड़ित को न्याय मिल सके। इसके साथ ही, बच्चों और किशोरों को यौनशिक्षा देने के लिए अभियान चलाए जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।

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