तमिलनाडु की राजनीति एक बार फिर राज्यपाल आरएन रवि और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बीच तनाव के चलते सुर्खियों में है। हाल ही मेंराज्यपाल ने दो अहम विधेयकों को मंजूरी दी है, जिनमें एक ऑनलाइन जुए और सट्टेबाजी पर नियंत्रण से जुड़ा है, जबकि दूसरा शिक्षा क्षेत्र में सुधारोंसे संबंधित है। ये दोनों विधेयक लंबे समय से राज्यपाल की स्वीकृति के इंतजार में थे, जिससे डीएमके सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव लगातारबढ़ रहा था।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने राज्यपाल की मंजूरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से उपजा दबाव करार दिया। उन्होंने कहा कि अगर राज्यपाल ने पहले हीसंवैधानिक मर्यादाओं का पालन किया होता, तो मामला अदालत तक नहीं पहुंचता। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए स्टालिन ने तीखे शब्दों मेंकहा, “राज्यपाल को अब जाकर संवैधानिक जवाबदेही का एहसास हुआ है।”
सुप्रीम कोर्ट में लंबित था मामला
राज्य सरकार ने पहले ही आरोप लगाया था कि राज्यपाल संविधानिक प्रक्रियाओं में जानबूझकर देरी कर रहे हैं। विधेयकों को मंजूरी न मिलने परसरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मामला अब भी कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन इसी बीच राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देनाराजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
राज्यपाल की सफाई, विपक्ष की नाराज़गी
राजभवन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि विधेयकों की मंजूरी किसी भी दबाव में नहीं, बल्कि संवैधानिक समीक्षा के बाद दी गई है।बयान में यह भी कहा गया कि राज्यपाल ने विधेयकों के सभी पहलुओं की गहनता से जांच की और उन्हें संविधान के अनुरूप पाए जाने के बाद हीमंजूरी दी।
हालांकि, डीएमके और विपक्षी दलों ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि यह कदम सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में जवाबदेही सेबचने की रणनीति है। डीएमके नेताओं और समर्थकों ने इसे “जनता की जीत” बताया, वहीं बीजेपी ने राज्यपाल का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंनेपूरी तरह से संवैधानिक मर्यादा का पालन किया है।
केंद्र-राज्य संबंधों पर फिर छिड़ी बहस
इस पूरे घटनाक्रम ने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों के बंटवारे की बहस को एक बार फिर हवा दे दी है। डीएमके और बीजेपी के बीचपहले से ही वैचारिक मतभेद रहे हैं, और राज्यपाल-विधेयक विवाद ने इन मतभेदों को और गहरा कर दिया है।
क्यों अहम हैं ये विधेयक?
ऑनलाइन सट्टेबाजी नियंत्रण विधेयक राज्य में तेजी से बढ़ रहे डिजिटल जुए के मामलों को रोकने के उद्देश्य से लाया गया है। यह कानून खासकरयुवाओं को इस लत से बचाने के लिए अहम माना जा रहा है। वहीं, शिक्षा सुधार विधेयक विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों, प्रशासनिक प्रक्रियाओं औरपारदर्शिता को बढ़ाने के लिए जरूरी माना जा रहा है।