जिग्नेश मेवाणी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 10 सालों से कमजोर लोगों के ऊपर आरएसएस के लोगों ने जिस प्रकार से उत्पातमचाया है जिस प्रकार की मोदी, अमित शाह, भाजपा की राजनीति हम लोगों ने देखी है. जितने भी इस मुल्क में संविधान को मानने वाले लोग हैं, प्रगतिशील विचारधारा से सरोकार रखने वाले लोग हैं. विशेष तौर पर दलित, आदिवासी, ओबीसी समुदाय से आने वाले लोग हैं. उनको इस बात कोलेकर कोई कंफ्यूजन नहीं कि मोदी, अमित शाह, आरएसएस और भाजपा बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान में नहीं, केवल मनुस्मृति के संस्कारों में, मनुस्मृति के मूल्यों में यकीन रखते हैं.
बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान को समंदर में दो फेक
पास्ट में वह यह कह भी चुके हैं कि डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान को समंदर में फेंक दो। यह लिख भी चुके हैं कि हमें भारत का संविधाननहीं, मनुस्मृति चाहिए. यह संघ परिवार के लोगों ने बकायदा लिखा हुआ है और इसी सोच के कारण पिछले कुछ सालों के दौरान हम लोगों ने देखाकि दिल्ली की सड़कों पर संविधान की कॉपी को जलाया गया. हमने देखा कि किस प्रकार से रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया. जिसको हम संस्थानिक हत्या कहते हैं हमने देखा कि किस प्रकार से बलात्कार का शिकार बनी हाथरस की बेटी का शव अंतिम दर्शन के लिए उसकेपरिवारजनों को नसीब नहीं हुआ। हम लोगों ने देखा कि किस प्रकार से गुजरात के ऊना में गाड़ी के साथ बांधकर चार दलित युवकों को तब तक पीटागया जब तक उनकी चमड़ी ना उतर जाए. नेक्सलाइट बोलकर भीमा कोरेगांव के केस में प्रतिबद्ध, कमिटेड, कर्मठ अंबेडकराइट्स को तीन-तीन सालतक जेलों में डाला। मोदी जी के खिलाफ एक ट्वीट करने पर गुजरात से असम. ढाई हजार किलोमीटर दूर की जेल में डालकर, महिला पुलिस को मेरेबगल में बिठाकर मोलेस्टेशन का फर्जी केस करवाया.‘अंबेडकरनामा’ चलाने वाले प्रोफेसर रतन लाल जैसे साथियों के ऊपर भी फर्जी मुकदमे हुए.
पार्लियामेंट में बोले अमित शाह
इसी सोच के कारण पार्लियामेंट के मंच से अमित शाह ने भी कहा – कि अंबेडकर-अंबेडकर-अंबेडकर करना आजकल फैशन बन गया है. मानो एकबहुत ही डीप रूटेड कोई घृणा हो, नफरत हो… उस प्रकार के भाव और टोन के साथ अमित शाह ने बाबा साहब अंबेडकर के लिए इस प्रकार के शब्दोंका प्रयोग किया था। मतलब कि यह दिखाता है कि उनकी रगों में सिंदूर हो ना हो, इन संघी भाजपाइयों की रगों में मनुस्मृति की धारा जरूर बहती हैऔर यही कारण है कि हम देखते हैं कि बिहार में 11 साल की दलित समाज की बेटी पर बलात्कार होता है. चाकू से उसका गला काटने की, उसकेअंगों को काटने की कोशिश होती है, वह जीवन-मरण के बीच में तड़प रही है और फिर भी उसको एक बेड नसीब नहीं होता.5 घंटे तक उसको एंबुलेंसमें बैठे रहना पड़ता है। उसी प्रकार गुजरात के अमरेली जिले में 10 दिन पहले की घटना है – 19 साल के दलित समाज के नीलेश राठौड़ को दौड़ा-दौड़ा कर सड़क पर… भरे बाजार, भरे चौराहे जातिवादी लोग हाथ में कुल्हाड़ी, डंडे, पाइप, स्टिक्स लेकर दिन दहाड़े उसकी हत्या कर देते हैं। इसीगुजरात के पाटन जिले में उसी हफ्ते में 60-65 साल के दलित समाज के इस बुजुर्ग को इस प्रकार से जिंदा जला दिया जाता है. यह उसकी तस्वीर हैऔर इन तमाम घटनाओं को लेकर आज आपके बीच में दिल्ली इसलिए आया हूं कि 7-8 साल पहले जब ऊना की घटना हुई, तब मोदी जी ने कहाथा – कि मारना है तो मुझे मारो. बड़े नाटकीय अंदाज में कहा था कि मारना है तो मुझे मारो, मेरे दलित भाइयों को मत मारो।