जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर कथित ‘खजाना’ मिलने का मामला इन दिनों देशभर में तूल पकड़ चुका है। इस घटना को लेकर नेताओं से लेकरसीनियर वकीलों तक, हर किसी ने अपने-अपने बयान दिए हैं। हाल ही में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले की कड़ी जांच की मांग की थी, औरअब पूर्व अटॉर्नी जनरल एवं वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने भी इस मामले पर सवाल उठाए हैं।
मुकुल रोहतगी ने जस्टिस वर्मा के घर में हुई घटना पर पारदर्शिता की सख्त आवश्यकता जताई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की पूरी जानकारीदेने के लिए एक बुलेटिन जारी करने का आग्रह किया है। रोहतगी ने घटना की सूचना में देरी और घटना के विवरण की कमी पर चिंता व्यक्त की है।उनके अनुसार, बिना पारदर्शिता के कई सवाल अनसुलझे रहते हैं, जो लोगों के मन में संदेह पैदा कर रहे हैं।
पारदर्शिता की कमी से उठे सवाल
मुकुल रोहतगी ने कहा, “पारदर्शिता की कमी के कारण लोग कई सवालों से जूझ रहे हैं। इन सवालों के उत्तर मिलने के बाद ही पूरी घटना की सच्चाईसामने आ सकती है।” उन्होंने घटनास्थल की जांच से जुड़े कुछ अहम सवाल उठाए, जिनका जवाब अब तक नहीं मिल सका है। रोहतगी ने सवालकिया कि जस्टिस वर्मा के घर पर आग लगने की सूचना किसने दी? दमकल विभाग कब घटनास्थल पर पहुंचा? विभाग के प्रमुख ने पहले क्यों कहाकि घर से कोई पैसा नहीं मिला था? कितने कमरों की जांच की गई? क्या पैसे घर के अंदर मिले थे या सर्वेंट क्वार्टर में? इन सवालों के जवाब मिलनेपर ही पूरी घटना की तस्वीर साफ हो सकती है।
समय की अहमियत पर सवाल
सीनियर वकील ने घटना की समय-सीमा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब यह घटना 14 मार्च को हुई थी, तो फिर 20 मार्च को चीफजस्टिस (CJI) को इसकी जानकारी क्यों दी गई? अगर उन्हें पहले ही इस घटना की जानकारी थी, तो उन्होंने समय रहते प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? रोहतगी के अनुसार, यह बेहद अहम है कि इस समय की देरी और इस देरी के कारणों की पूरी जांच की जाए।
सच्चाई को जानने में हो रही है मुश्किल
रोहतगी ने और भी कई सवाल उठाए हैं, जिनका उत्तर अब तक नहीं मिला है। उन्होंने पूछा कि जब मामला इतना गंभीर था तो तुरंत स्पष्टीकरण क्योंनहीं मांगा गया? क्यों दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया? इसके अलावा, रोहतगी ने यहभी सवाल उठाया कि क्या यह जांच केवल पैसे के मिलने के बाद शुरू की गई? अगर पैसा मिला तो वह किस रूप में था – क्या वह एक बैग में था, सूटकेस में था, या बिस्तर के नीचे छिपा हुआ था?
रोहतगी का कहना है कि पारदर्शिता की कमी के कारण सच्चाई का पता लगाना बेहद मुश्किल हो रहा है। उन्होंने इस पर जोर दिया कि सच्चाई कोउजागर करने के लिए पूरी तरह से पारदर्शिता जरूरी है।
फंसाने का मामला या कुछ और?
रोहतगी ने जस्टिस वर्मा के बयान को भी बेहद महत्वपूर्ण बताया। उनका कहना था कि दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा की गई जांच में जस्टिसवर्मा का पक्ष भी शामिल होना चाहिए। रोहतगी ने यह सवाल उठाया कि क्या यह मामला किसी को फंसाने का था या फिर जस्टिस वर्मा ने पैसे कीबात स्वीकार की थी? यदि उन्होंने स्वीकार किया कि यह पैसा उनका था, तो उन्होंने इस पैसे के बारे में क्या स्पष्टीकरण दिया? इस बारे में भी जांच कीआवश्यकता है।
पुलिस को जांच की अनुमति दी जाए
रोहतगी ने आगे कहा कि अगर जस्टिस वर्मा ने यह स्वीकार किया कि पैसा उनका था, तो केवल उन्हें किसी दूसरी जगह पर भेजना पर्याप्त नहीं होगा।इसके बजाय, उन पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, जैसे कि उन्हें उनके न्यायिक कार्य से हटा दिया जाए। यदि मामला स्पष्ट हो जाता है, तो सुप्रीमकोर्ट को पुलिस को पूरी जांच करने की अनुमति देनी चाहिए।
रोहतगी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट बिना फॉरेंसिक एक्सपर्ट की मदद के इतनी गंभीर जांच कैसे कर सकते हैं? यह कोई सामान्यजांच नहीं है, जिसमें केवल आरोपी से उसका पक्ष पूछा जाए। यह एक गंभीर मामला है, जिसमें अदालतों को गंभीरता से जांच करनी चाहिए।
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित रूप से मिले पैसों के मामले में हर तरफ से सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में पारदर्शिता की भारी कमी देखने कोमिल रही है, और यही वजह है कि लोग इस मामले की सच्चाई जानने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं। मुकुल रोहतगी और अन्य वरिष्ठ वकीलों द्वाराउठाए गए सवाल इस बात का संकेत हैं कि मामले में अभी बहुत कुछ साफ होना बाकी है।
अब यह जरूरी हो गया है कि इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो, ताकि लोगों के मन में उठ रहे संदेहों का समाधान किया जा सके औरसच्चाई सामने आ सके। जस्टिस वर्मा के बयान, जांच प्रक्रिया और समय की देरी पर सवाल उठाए जा रहे हैं, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिएकि इस मामले की सही तरीके से और पूरी पारदर्शिता के साथ जांच की जाए।