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नई दिल्ली में मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। उन्होंनेजस्टिस संजीव खन्ना का स्थान लिया है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में जस्टिस गवई ने हिंदी भाषा में पद और गोपनीयता की शपथ ली।उनका कार्यकाल करीब साढ़े छह महीने का रहेगा और वे 23 दिसंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

शपथ ग्रहण समारोह में गणमान्य लोग रहे मौजूद
इस अहम समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सहित कई शीर्ष नेता उपस्थित थे। साथ ही जस्टिस गवई के परिवारजन और पूर्व राष्ट्रपतिरामनाथ कोविंद भी मौजूद रहे। शपथ के तुरंत बाद जस्टिस गवई ने अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

मां ने जताया गर्व, कहा- मेहनत और सेवा का फल है यह मुकाम
जस्टिस गवई की मां कमलताई गवई ने बेटे की उपलब्धि पर गर्व जताते हुए कहा कि यह सफलता उनके समर्पण और गरीबों की सेवा का परिणाम है।उन्होंने विश्वास जताया कि उनका बेटा न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर रहते हुए पूरी ईमानदारी से दायित्व निभाएगा।

राजनीति और कानून दोनों से जुड़ा रहा है पारिवारिक पृष्ठभूमि
जस्टिस गवई का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उनके पिता आर.एस. गवई, जो ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ के नेता रहे हैं, बिहार, केरल और सिक्किम के राज्यपाल पद पर भी कार्य कर चुके हैं। जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत की शुरुआत की थी और नागपुर तथा अमरावती केनगर निकायों सहित विश्वविद्यालयों के लिए स्थायी वकील के रूप में सेवाएं दीं।

सुप्रीम कोर्ट में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट में कई ऐतिहासिक संविधान पीठों में भाग लिया है। वे उस पांच-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा रहे, जिसने केंद्र सरकारके अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय को सर्वसम्मति से वैध ठहराया। इसके अलावा, वह इलेक्टोरल बॉन्ड केस और अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरणको लेकर दिए गए फैसले में भी शामिल थे।

संक्षिप्त कार्यकाल लेकिन बड़ी जिम्मेदारियाँ
हालांकि जस्टिस गवई का कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा है, लेकिन उनके अनुभव और न्यायिक दृष्टिकोण को देखते हुए न्यायपालिका और देश उनसेबड़ी उम्मीदें रख रहा है।

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