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मार्च माह में दिल्ली में स्थित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी निवास पर आग लगने की एक गंभीर घटना सामने आई थी। इसहादसे के दौरान उनके निवास परिसर के आउटहाउस से नकदी से भरी कई बोरियां जली हुई हालत में बरामद की गईं, जिससे इस मामले ने सनसनीखेजमोड़ ले लिया।

सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने ठहराया दोषी
इस मामले की तह तक जाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने तीन न्यायाधीशों की एक विशेष समिति गठित की थी। जांच के दौरान कई गवाहों केबयान दर्ज किए गए और तमाम सबूतों के आधार पर समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस पूरे प्रकरण में दोषी करार दिया। इसके पश्चात उन्हें दिल्ली उच्चन्यायालय से स्थानांतरित कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेजा गया, जहां फिलहाल उन्हें कोई न्यायिक जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है।

इस्तीफा ही बचा एकमात्र रास्ता
संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि अब न्यायमूर्ति वर्मा के पास संसद में महाभियोग की कार्रवाई से बचने का एकमात्र रास्ता पद से इस्तीफा देनाहै। संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, उच्च न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश राष्ट्रपति को पत्र लिखकर त्यागपत्र दे सकता है, जिसके लिएकिसी औपचारिक स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।

त्यागपत्र देने पर मिलेंगे सेवा लाभ
यदि न्यायमूर्ति वर्मा स्वयं पद छोड़ते हैं, तो उन्हें सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश के रूप में पेंशन सहित अन्य भत्तों का लाभ प्राप्त होगा। लेकिनयदि उन्हें संसद द्वारा उनके पद से हटाया जाता है, तो वे इन सुविधाओं से वंचित रहेंगे।

संसद में कैसे होता है न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव
भारतीय संसद के किसी भी सदन में न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव रखा जा सकता है। राज्यसभा में इसके लिए कम से कम 50 सांसदों कासमर्थन आवश्यक होता है, जबकि लोकसभा में 100 सदस्यों का समर्थन जरूरी होता है। प्रस्ताव पास होने के बाद, एक तीन सदस्यीय समिति गठितकी जाती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता होते हैं। यह समितिन्यायाधीश के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करती है।

पहले भी हो चुके हैं ऐसे मामले
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पूर्व जस्टिस वी. रामास्वामी और जस्टिस सौमित्र सेन पर भी महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, दोनोंने संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही इस्तीफा देकर पद छोड़ दिया था।

मानसून सत्र में हो सकती है कार्रवाई
सूत्रों के मुताबिक, संसद का अगला मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा, और इसी सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफमहाभियोग की कार्यवाही प्रारंभ की जा सकती है। यह कार्यवाही नए संसद भवन में पहली बार होगी। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विषय मेंयह संकेत दिया है कि अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लिया जाएगा।

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