राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भारत की दशक में एक बार होने वाली जनगणना में अभूतपूर्व देरी को लेकरगंभीर चिंता व्यक्त की है। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान बोलते हुए, खड़गे ने बताया कि 1881 में शुरू हुई जनगणना हर दस साल में बिना रुकेहोती रही है, चाहे युद्ध, आपातकाल या कोई अन्य संकट क्यों न हो। लेकिन पहली बार, इसे अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया है।
जातिगत जनगणना की मांग
खड़गे ने जातिगत जनगणना की आवश्यकता पर भी जोर दिया और याद दिलाया कि 1931 में इसी तरह की गणना की गई थी। उन्होंने महात्मा गांधीके उस कथन का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने जनगणना को राष्ट्र के लिए एक नियमित स्वास्थ्य परीक्षण जैसा बताया था। खड़गे ने सवाल किया किजब सरकार अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का डेटा एकत्र करती ही है, तो अन्य जातियों को इसमें क्यों शामिल नहीं कियाजा सकता?
अल्प बजट आवंटन पर सवाल
कांग्रेस नेता ने सरकार द्वारा वर्तमान बजट में जनगणना के लिए केवल ₹575 करोड़ आवंटित करने की आलोचना की और इसे प्रक्रिया शुरू न करने कीमंशा का संकेत बताया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि COVID-19 के बावजूद दुनिया के 81% देशों ने अपनी जनगणना सफलतापूर्वक पूरी करली है, जबकि भारत अभी भी पीछे है।
देरी के गंभीर परिणाम
खड़गे ने चेतावनी दी कि अद्यतन जनगणना डेटा की अनुपस्थिति से नीतियां अप्रभावी हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि उपभोक्ता सर्वेक्षण, राष्ट्रीयपरिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जैसी महत्वपूर्णयोजनाएं जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करती हैं।
कल्याणकारी योजनाओं पर असर
इस देरी के कारण लाखों नागरिक महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हो गए हैं। खड़गे ने जोर देकर कहा कि सटीक जनसंख्या डेटा के बिनानीति निर्माताओं को बिना ठोस आधार के निर्णय लेने पड़ रहे हैं, जिससे गलत नीतियां बन रही हैं।
सरकार से त्वरित कार्रवाई की अपील
अंत में, खड़गे ने सरकार से तुरंत दशक में एक बार होने वाली जनगणना शुरू करने और जातिगत जनगणना को भी शामिल करने की अपील की।उन्होंने इस लंबी देरी को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे विलंब का देश के विकास और कल्याणकारी योजनाओं परदीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।