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असम में स्थित “होलोंगापार गिब्बन सेंचुरी” एक इकॉनोमिक सेंसिटिव जोन है, जिसका पर्यावरणीय महत्व बहुत अधिक है। हाल ही में इस सेंचुरी में होरहे विकास कार्यों और तेल गैस कंपनियों द्वारा गतिविधियाँ शुरू करने की संभावनाओं को लेकर विवाद सामने आया है। इस मुद्दे को लेकर लोकसभा मेंकांग्रेस नेता गौरव गोगई ने सवाल उठाया है, जिसमें उन्होंने सेंचुरी के भीतर तेल और गैस की खोज से जुड़े नियमों में बदलाव पर आश्चर्य जताया।आइए जानते हैं कि इस मामले में क्या कुछ हुआ है और सरकार की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है।

“होलोंगापार गिब्बन सेंचुरी” और इकॉनोमिक सेंसिटिव जोन
होलोंगापार गिब्बन सेंचुरी असम के कार्बी आंगलोंग जिले में स्थित है। यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और यहाँ पर कई दुर्लभ प्रजातियों का वासहै, जिनमें गिब्बन (हलक वाले बंदर) भी शामिल हैं। इसे इकॉनोमिक सेंसिटिव जोन के रूप में चिन्हित किया गया है, जिसमें कुछ गतिविधियों परपाबंदी होती है, ताकि क्षेत्र की पर्यावरणीय संरचना को नुकसान न पहुंचे।

2018 और 2019 के नोटिफिकेशनों में बदलाव
जब 2018 में “होलोंगापार गिब्बन सेंचुरी” का ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी हुआ था, तो उसमें स्पष्ट रूप से तेल और गैस की खोज, खनन, और अन्यजैसी गतिविधियाँ प्रतिबंधित की गई थीं। यह कदम इलाके के पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखने और जीवों की रक्षा के लिए लिया गया था।

हालांकि, 2019 में जब फाइनल नोटिफिकेशन जारी हुआ, तो उसमें तेल और गैस की खोज जैसी गतिविधियों के प्रतिबंध का कोई उल्लेख नहींकिया गया। इससे एक नया विवाद उत्पन्न हुआ, क्योंकि एक बड़ी तेल कंपनी अब इस संवेदनशील क्षेत्र में काम शुरू करने की योजना बना रही है।इस बदलाव के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और सरकार ने इसे किस आधार पर अनुमति दी, यह एक बड़ा सवाल बन गया है।

तेल कंपनी को अनुमति देने का निर्णय
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इकॉनोमिक सेंसिटिव जोन में प्राधिकृत कार्यों की अनुमति देने से प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण का खतराबढ़ सकता है। गौरव गोगई ने आरोप लगाया कि फाइनल नोटिफिकेशन में तेल और गैस के खोज के प्रतिबंध को हटाना और इसके बाद तेल कंपनियोंको अनुमति देना, पर्यावरण की सुरक्षा के खिलाफ एक बड़ा कदम हो सकता है।

केंद्र सरकार का कहना है कि यदि कोई प्रोजेक्ट पारिस्थितिकीय मानकों के अनुरूप होता है और सभी आवश्यक पर्यावरणीय अनुमतियां प्राप्त कर लेताहै, तो उसे अनुमति दी जा सकती है। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या इस निर्णय में स्थानीय वन अधिकारी और पर्यावरण विशेषज्ञों से सलाह लीगई थी?

अवैध कोयला खनन और जंगलों की कटाई
इसके अलावा, गोगई ने असम के कार्बी आंगलोंग और डिमा हासाओ जिलों में जंगलों की अवैध कटाई और अवैध कोयला खनन के मामले को भीउठाया है। इन इलाकों में जंगलों की अवैध कटाई और खनन कार्यों के कारण पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे वन्यजीवों औरपारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

गोगई ने केंद्र से सवाल पूछा कि क्या इस अवैध गतिविधि पर किसी प्रकार की जांच की जाएगी और क्या इस मुद्दे पर केंद्र सरकार द्वारा कोई कार्रवाईकी जाएगी? क्या इस मामले में डिस्ट्रिक्ट फ़ॉरेस्ट ऑफिसर्स की भूमिका की भी जांच होगी?

केंद्र की प्रतिक्रिया और कार्रवाई की जरूरत
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि असम के इन क्षेत्रों में अवैध खनन और जंगलों की कटाई ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या केंद्र सरकारइस गंभीर मामले पर उचित कार्रवाई करेगी और क्या वन विभाग के अधिकारी जो इन गतिविधियों पर रोक लगाने के जिम्मेदार हैं, उनकी भूमिका कीजांच की जाएगी?

इसके अलावा, केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन क्षेत्रों में अवैध गतिविधियों पर कड़ी निगरानी हो और जिन अधिकारियों कीलापरवाही से यह अवैध खनन और जंगलों की कटाई हो रही है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

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