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Bihar Politics: बिहार की राजनीति हमेशा से दिलचस्पी पैदा करने वाली रही है. फिर चाहे वह आजादी के बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार काशासन हो या फिर जनता दल के बढ़ते वर्चस्व की कहानी और या फिर लालू प्रसाद यादव और इसके बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक पटल पर छाजाने की दास्तां. बिहार हमेशा से राजनीतिक हलचल का केंद्र रहा है. यह हलचल राज्य में उस दौरान भी दिखी, जब आजादी के बाद कांग्रेस कीसरकार बनी थी. इतना ही नहीं जब 1967 में पहली बार कांग्रेस की सरकार गिरी तो राज्य की राजनीति इतनी दिलचस्प हो गई कि अगले 10 सालतक कोई मुख्यमंत्री तीन साल भी शासन पूरा नहीं कर पाया. इनमें कोई नेता सिर्फ 16 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री बन गया. तो कोई महज 4 दिन हीसीएम रह पाया.बिहार में पहली सरकार 1946 में श्री कृष्ण सिन्हा के नेतृत्व में बनी थी. चूंकि वह बिना चुनाव के ही मुख्यमंत्री बन गए थे। इसलिएकांग्रेस ने 1952 में उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. इसके बाद सिन्हा 1961 में अपने निधन तक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर रहे. हालांकि बताया जाता है कि कृष्ण सिन्हा के नेतृत्व में कांग्रेस में आंतरिक राजनीति लगातार जारी रही. खासकर जातीय स्तर पर यह सियासत सिन्हा केनिधन के बाद और खुलकर सामने आ गई.

पद को लेकर छिड़ गई थी जंग
दरअसल तब ब्राह्मण वर्ग से आने वाले बिनोदानंद झा कायस्थ समाज से आने वाले केबी सहाय और भूमिहार एमपी सिन्हा के बीच सीएम पद के लिएजंग छिड़ गई. इससे कांग्रेस को भारी घाटा हुआ और इसमें कई धड़े बन गए.यहीं से शुरुआत हुई कांग्रेस के राज्य में कमजोर होने और एक के बाद एकमुख्यमंत्रियों के बदलने की. दरअसल बिहार में पहले कांग्रेस ने श्री कृष्ण सिन्हा की जगह लेने के लिए दीप नारायण सिंह का नाम तय किया. हालांकिपार्टी में बढ़ती आंतरिक कलह की वजह से दीप नारायण महज 17 दिन बाद ही सीएम पद से हट गए. कांग्रेस में बीएन झा के धड़े की जीत हुई और1961 में उन्होंने सीएम पद की शपथ ली. हालांकि महज ढाई साल में ही झा को भी सीएम पद छोड़ना पड़ा और आलाकमान ने कायस्थ नेता कृष्णबल्लभ सहाय को सीएम बना दिया. सहाय ने इसके बाद पार्टी के बचे हुए कार्यकाल तक मुख्यमंत्री पद संभाला.1967 में कांग्रेस की हार के बादराज्य के मुख्यमंत्री बने महामाया प्रसाद सिन्हा महामाया प्रसाद खुद कायस्थ समुदाय से आते थे. और एक जमाने में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्णसिन्हा से विवाद के चलते कांग्रेस छोड़ चुके थे.

खुद की बनाई थी पार्टी
उन्होंने अपनी खुद की एक पार्टी बनाई थी. जन क्रांति दल उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी कांग्रेस नेताओं के सीएम बनने से कहीं ज्यादा दिलचस्प है. दरअसल 1967 के चुनाव में महामाया प्रसाद ने सीधा मुख्यमंत्री केबी सहाय को पटना पश्चिम सीट से चुनौती दे दी थी. चौंकाने वाली बात यह है किमहामाया प्रसाद ने सीएम सहाय को इस चुनाव में बुरी तरह हरा दिया.यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी कांटोभरा साबित हुआ दरअसल बिहार विधानसभाकी 318 सीटों में कांग्रेस को महज 128 सीटें मिलीं. वहीं राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में विपक्षी दलों के गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 68 सीट पर जीत मिली. इसके अलावा जनसंघ को 26, भाकपा को 24 और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी(पीएसपी) को 18 सीटें मिली. महामाया प्रसाद की एसएसपी ने इस चुनाव में 13 सीटें जीतीं और इसके साथ ही बिहार में कांग्रेस को सरकार से हटानेके लिए साथ आया संयुक्त विधायक दल.

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