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आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश में “संविधान हत्या दिवस” मनाया गया। इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कार्यक्रम कोसंबोधित करते हुए कहा कि वर्ष 1975 में लगाए गए आपातकाल में कांग्रेस ने जो अत्याचार किए, देश उन्हें कभी नहीं भुला पाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने इस दिन को “संविधान हत्या दिवस” का नाम दिया ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी उस काले अध्याय की जानकारी रहे।

‘दमन और यातना’ की यादें अब भी ताज़ा
अमित शाह ने कहा कि वह स्वयं उस दौर के दमन और यातना को आज भी नहीं भूल पाए हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास के उसअंधकारमय काल को भूलना ठीक नहीं होगा क्योंकि समाज और लोकतंत्र के लिए ऐसी घटनाओं से सीख लेना जरूरी है ताकि वे दोबारा न दोहराईजाएं।

कैसे तय हुआ ‘संविधान हत्या दिवस’ का नाम
शाह ने बताया कि जब गृह मंत्रालय में इस दिन के नाम को लेकर सुझाव लिए गए, तब कई लोगों ने इसे कठोर शब्द बताया। लेकिन अंततः‘संविधान हत्या दिवस’ नाम इसलिए चुना गया क्योंकि आपातकाल के दौरान जिस तरह लोकतंत्र का गला घोंटा गया, उसे केवल ऐसे ही स्पष्ट शब्दोंमें याद रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि उस दौर में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला हुआ, प्रेस की आज़ादी छीनी गई और पूरे देश को जेलजैसा बना दिया गया।

आपातकाल में नरेंद्र मोदी की भूमिका पर किताब का ज़िक्र
शाह ने उस किताब का उल्लेख किया जिसमें नरेंद्र मोदी के युवावस्था में आपातकाल विरोधी संघर्ष की कहानी दर्ज है। किताब का नाम है “The Emergency Diary: Years that Forged a Leader”। इसमें बताया गया है कि 23-24 वर्ष की उम्र में मोदी ने किस तरह जेपी आंदोलनऔर नानाजी देशमुख के नेतृत्व में आपातकाल के विरोध में सक्रिय भागीदारी की।

2014 में परिवारवाद का अंत: शाह
अमित शाह ने कहा कि समय का चक्र देखिए, जब एक युवा कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध कर रहा था, उसी ने वर्ष2014 में उस परिवारवादी राजनीति को खत्म कर दिया जिसके कारण आपातकाल लगाया गया था। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी नेलोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया है।

12 जून और 24 जून की घटनाओं का हवाला
गृह मंत्री ने बताया कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया था और छह साल तक चुनाव लड़ने पररोक लगा दी थी। इसी दिन गुजरात में कांग्रेस सरकार भी सत्ता से बाहर हो गई थी। इन घटनाओं के बाद 24 जून को इंदिरा गांधी ने ‘आपातकाल’ लागू करने की सिफारिश की। शाह ने कहा कि इंदिरा गांधी ने संविधान की आत्मा को कुचलते हुए अपने पद को बचाने के लिए देश को अंधकार मेंधकेल दिया।

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