जय जोहार – जय संविधान के उद्घोष के साथ आल इंडिया आदिवासी कांग्रेस के चेयरमैन डॉ. विक्रांत भूरिया ने पत्रकारों से संवाद किया। उन्होंनेआदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता और भाजपा की सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। इस प्रेस वार्ता में डॉ. विक्रांत भूरियाने आदिवासी समाज के साथ हो रहे अत्याचारों और उनके अधिकारों की अनदेखी पर गहरी चिंता व्यक्त की।
आदिवासी समाज के अधिकारों की लड़ाई
डॉ. भूरिया ने कहा कि आदिवासी इस देश के मूल निवासी हैं और यदि इस देश पर किसी का सबसे ज्यादा अधिकार है, तो वह आदिवासियों का है।हालांकि, देश के 12 करोड़ आदिवासी समाज को उनके अधिकार नहीं मिल रहे हैं। भाजपा की सरकार लगातार उनके संवैधानिक अधिकारों कोकमजोर करने की कोशिश कर रही है। भूरिया ने इस संदर्भ में पेसा कानून और वन अधिकार अधिनियम पर भी बात की।
पेसा कानून का उल्लंघन
डॉ. भूरिया ने पेसा कानून (Panchayat Raj Extension to Scheduled Areas) की चर्चा की, जो 1996 में भूरिया कमेटी की सिफारिश परलागू हुआ था। यह कानून आदिवासी क्षेत्रों में पंचायत राज को मज़बूत करने के उद्देश्य से लाया गया था। भूरिया ने कहा कि आज भी इस कानून कोप्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है। ग्राम सभाओं को जो अधिकार दिए गए हैं, उनका उल्लंघन किया जा रहा है। खनन और खनिज दोहन केकारण आदिवासी क्षेत्रों में भूमि की चोरी हो रही है और आदिवासी जनों को जेल में डाला जा रहा है।
वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन
वन अधिकार अधिनियम, जो आदिवासियों को उनके जंगलों और जंगलों से जुड़े संसाधनों पर अधिकार देता है, का भी उल्लंघन हो रहा है। भूरिया नेउदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश में हो रहे वनों के निजीकरण की योजना को उठाया। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार 40% जंगलों को निजी कंपनियोंको सौंपने की कोशिश कर रही है। आदिवासी क्षेत्रों में इस कदम का विरोध हो रहा है, क्योंकि इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोग बसते हैं।
हसदेव जंगल और आदिवासी अधिकार
डॉ. भूरिया ने हसदेव जंगल का उल्लेख किया, जहां एक लाख से ज्यादा पेड़ों की कटाई हो चुकी है और अब तीन लाख और पेड़ काटे जाने की योजनाहै। इस खनन प्रक्रिया के कारण आदिवासी समुदाय को जेल में डालने का काम किया जा रहा है। भूरिया ने बताया कि इस मुद्दे को मीडिया ने उठायाथा, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी ढंग से उठाने की जरूरत है।
अत्याचारों और शोषण का सिलसिला
डॉ. भूरिया ने एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा आदिवासी उत्पीड़न होरहा है। उन्होंने सीधी कांड, नेमावर कांड, और नीमच कांड जैसी घटनाओं का उल्लेख किया, जहां भाजपा नेताओं के हाथों आदिवासी समाज के लोगअत्याचारों का शिकार हुए। भूरिया ने बताया कि सीधी कांड में एक भाजपा नेता ने आदिवासी महिला का अपमान किया और नेमावर कांड में पांचआदिवासी परिवारों के सदस्यों को जिंदा गाड़ दिया गया।
आदिवासी अस्मिता की रक्षा की आवश्यकता
डॉ. भूरिया ने आदिवासी अस्मिता की रक्षा की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने कहा कि भाजपा और आरएसएस आदिवासियों को’वनवासी’ कहकर अपमानित करती है, जबकि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन के वास्तविक मालिक हैं। आदिवासी समाज अपनी पहचानपर गर्व करता है और उन्हें यह अपमान स्वीकार नहीं है। भूरिया ने कहा कि आदिवासी समाज अब शिक्षा, राजनीति, और समाज के अन्य क्षेत्रों में खुदको सशक्त बना रहा है और वनवासी की उपाधि से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है।
गोंडी भाषा और आदिवासी संस्कृति
भूरिया ने आदिवासी भाषाओं, विशेषकर गोंडी भाषा, को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि गोंडी भाषा को राष्ट्रीय स्तर परमान्यता मिलनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी संस्कृति को संरक्षित रख सकें। इसके साथ ही, उन्होंने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवसकी छुट्टी को फिर से लागू करने की बात की, जिसे भाजपा सरकार ने समाप्त कर दिया है।
न्याय की अपील
डॉ. भूरिया ने आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों पर चिंता जताई और कहा कि आदिवासी समुदाय के लोग अपनी ज़मीनों से बेदखल हो रहे हैंऔर उन्हें सम्मान भी नहीं मिल रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की कि आदिवासी समाज को उनके अधिकार मिलें और उन्हें न्याय मिले।
जेलों में बंद आदिवासी
भूरिया ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश की जेलों में 60% से ज्यादा बंदी आदिवासी हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के लोग गरीब होते हैं औरउनके पास लंबे समय तक चलने वाले कानूनी मुकदमों के लिए संसाधन नहीं होते। इस कारण कई आदिवासी लंबे समय तक जेलों में बंद रहते हैं, जबकि उनका परिवार मुश्किल में पड़ता है। भूरिया ने इस मुद्दे पर एक आयोग गठित करने की बात की ताकि आदिवासी जेलों में बंद अपने अधिकारोंके लिए संघर्ष कर सकें।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध
डॉ. भूरिया ने हाल ही में भोपाल में हुई एक नाबालिग के बलात्कार की घटना का जिक्र किया, जिसमें आरोपी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहींकी गई। उन्होंने कहा कि अगर आदिवासी समाज को न्याय पाने के लिए 600 किलोमीटर दूर जाना पड़े, तो यह न्याय का उल्लंघन है।
प्रधानमंत्री और मणिपुर
अंत में, भूरिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर यात्रा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को मणिपुर जाकर आदिवासी नरसंहार परजवाब देना चाहिए, जो सरकार की नीतियों के कारण हुआ है।
मुख्य मांगें
डॉ. भूरिया ने अपनी मुख्य मांगें प्रस्तुत की:
-आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन पर अधिकारों की रक्षा की जाए।
-गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
-9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए।
डॉ. विक्रांत भूरिया ने इस प्रेस वार्ता के अंत में आदिवासी समाज के अधिकारों की सुरक्षा की पुकार की और सरकार से उनके अधिकारों की रक्षा कीअपील की। उन्होंने कहा, “यह हमारी अस्तित्व की लड़ाई है, और हम इसके लिए लड़ेंगे।”