अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है जिसमें संघीय जज ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी की छात्रा युनसियोचुंग को फलस्तीनी समर्थक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के कारण आव्रजन हिरासत में नहीं लिया जा सकता है. संघीय जज का यह आदेश चुंग कोसंभावित निर्वासन से बचाने में एक अस्थायी राहत प्रदान करता है हालांकि चुंग सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थीं. अब इस मामले में अगली सुनवाई20 मई को होगी.संघीय जज के फैसले से डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के उन प्रयासों को भी झटका लगा है जिनमें वह कैंपस विरोध प्रदर्शनों में भाग लेनेवाले गैर-नागरिकों को देश से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार इन प्रदर्शनों को यहूदी विरोधी और उग्रवादी समूह हमास के प्रतिसहानुभूतिपूर्ण मानती है वहीं छात्रों का कहना है कि सरकार उन्हें फलस्तीनी अधिकारों के लिए बोलने के कारण निशाना बना रही है.चुंग के वकीलरामजी कासेम ने आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) का हवाला दिया. उन्होंने कहा अब युनसियो चुंग को ICE के डर में रहने की जरूरत नहीं हैक्योंकि अब वह रात में उनके दरवाजे पर नहीं आएंगे.मैनहट्टन के संघीय न्यायाधीश नाओमी रीस बुचवाल्ड ने मंगलवार को चुंग के मामले की सुनवाईकी उन्होंने कहा कि सरकारी वकीलों ने चुंग को हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त तथ्य पेश नहीं किए हैं जबकि उसका मामला अभी चल रहा है इसकेअलावा, सिरैक्यूज के एक अन्य संघीय न्यायविद ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय के डॉक्टरेट छात्र मोमोदो ताल के मामले पर विचार किया. जो विरोध प्रदर्शनमें शामिल होने के बाद संभावित निर्वासन का सामना कर रहा है.बता दें कि चुंग 7 साल की उम्र में अमेरिका आई थीं अब वह 21 वर्ष की हो चुकी हैंऔर उन्हें कानूनी स्थायी निवास प्राप्त है जिसे आम बोलचाल की भाषा में ग्रीन कार्ड कहा जाता है.
होमलैंड ने जारी किया बयान
वहीं होमलैंड सुरक्षा विभाग ने सोमवार को एक बयान जारी किया.जिसमें कहा गया है कि चुंग ने ‘चिंताजनक आचरण’ किया है.जिसमें एक विरोधप्रदर्शन में गिरफ्तार होना शामिल है. वहीं संघीय न्यायाधीश बुचवाल्ड ने कहा कि सरकार ने ऐसा कुछ भी तथ्य पेश नहीं किया है कि वह खतरनाक हैंया आतंकवादियों से जुड़ी हैं. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं था कि चुंग के कारण कोई गंभीर विदेश नीति की समस्या हो सकती है. फैसले के बाद ट्रंपप्रशासन के खिलाफ कई मानवाधिकार संगठनों और प्रदर्शनकारियों ने भी अपना समर्थन जताया. उनका कहना था कि इस फैसले से यह स्पष्ट हो गयाहै कि अमेरिका में नागरिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और न्यायपालिका के पास हमेशा ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति है. आगे की कानूनी प्रक्रिया अब देखना यह होगा कि ट्रंप प्रशासन इस फैसले के खिलाफ कोई अपील करता है या नहीं. इस मामले के फैसले ने सरकारऔर न्यायपालिका के बीच संतुलन को स्पष्ट किया है और यह उदाहरण पेश किया है कि कैसे संविधान का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों कोचुनौती दी जा सकती है. इस फैसले ने अमेरिकी समाज में नागरिक अधिकारों के संरक्षण को फिर से रेखांकित किया और यह दिखाया कि किसी भीसरकार को अपनी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्तियों को दबाने का अधिकार नहीं है.