भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रमुख बिजनेस टाइकून और इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने सोमवार को अपनी 70 घंटे के वर्किंगआवर संबंधी विवादास्पद टिप्पणी पर स्पष्टीकरण जारी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विचार उनकी व्यक्तिगत पसंद थी और इसे किसी अन्य परलागू नहीं किया जाना चाहिए। इससे पहले यह टिप्पणी कई लोगों के लिए चिंता का विषय बन गई थी, विशेषकर उन व्यक्तियों के लिए जो कार्य-जीवन संतुलन के महत्व को समझते हैं।
विवादास्पद टिप्पणी का सार
हाल ही में नारायण मूर्ति ने एक सार्वजनिक मंच पर सुझाव दिया था कि एक पेशेवर को हर सप्ताह 70 घंटे काम करना चाहिए। यह बयान कई लोगोंके लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि आजकल कामकाजी घंटों को लेकर संवेदनशीलता बढ़ गई है और लोग कार्य-जीवन संतुलन के महत्व पर जोर देरहे हैं। मूर्ति का यह विचार, जो एक प्रतिष्ठित कारोबारी नेता के रूप में उनकी राय को दर्शाता था, खासकर युवाओं और विभिन्न उद्योगों के कर्मचारियोंमें चर्चा का कारण बन गया था। इसके बाद उनकी टिप्पणी पर तीव्र आलोचनाएं आईं, क्योंकि कई लोगों का मानना था कि अत्यधिक कामकाजी घंटेमानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
मूर्ति का स्पष्टीकरण
अपने बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए, नारायण मूर्ति ने कहा कि उनका यह विचार केवल उनकी व्यक्तिगत पसंद पर आधारित था। उन्होंने इसे अपनेअनुभवों से साझा किया था और इसका उद्देश्य किसी अन्य व्यक्ति पर दबाव डालना नहीं था। मूर्ति ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति इस तरहके कार्य-घंटे को अनिवार्य रूप से नहीं अपनाए, यह पूरी तरह से उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। उन्होंने यह बताया कि कुछ लोग अपने काम में गहरीडूबने और अतिरिक्त समय देने की इच्छा रखते हैं, जबकि दूसरों के लिए काम और व्यक्तिगत जीवन का संतुलन अधिक महत्वपूर्ण होता है।
कार्य-जीवन संतुलन का महत्व
मूर्ति के बयान के बाद कार्य-जीवन संतुलन पर काफी चर्चा हुई। आजकल के समय में, कार्य-जीवन संतुलन कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दाबन चुका है। लगातार लंबे घंटों तक काम करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। विभिन्न शोधों में यह साबितहुआ है कि अत्यधिक काम से तनाव, चिंता, अवसाद और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके विपरीत, पर्याप्त विश्राम और व्यक्तिगतसमय कर्मचारियों की मानसिक स्थिति और उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।
भारतीय कारोबारी संस्कृति में मूर्ति का योगदान
नारायण मूर्ति का बयान भारतीय कारोबारी संस्कृति को भी दर्शाता है। भारत में पारंपरिक रूप से कामकाजी घंटों का लंबा होना सामान्य था, और यहविशेषकर प्रौद्योगिकी और स्टार्टअप उद्योगों में देखा जाता था। मूर्ति ने अपनी कंपनी की शुरुआत के समय में कठिन परिश्रम और लंबे घंटे काम करनेकी आवश्यकता को महसूस किया था। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अब कार्य-जीवन संतुलन को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है, औरयह हर व्यक्ति की व्यक्तिगत प्राथमिकता होनी चाहिए कि वह कितने घंटे काम करना चाहता है। बता दें कि नारायण मूर्ति की टिप्पणी और उनकेस्पष्टीकरण ने भारतीय कार्य संस्कृति में एक महत्वपूर्ण विमर्श को जन्म दिया है। यह बात स्पष्ट है कि हर व्यक्ति का काम करने का तरीका अलग होसकता है, और यह उनकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। हालांकि, कार्य-जीवन संतुलन को महत्व देना आवश्यक है ताकि कर्मचारियोंकी मानसिक और शारीरिक भलाई सुनिश्चित हो सके। मूर्ति का बयान इस बहस को एक नई दिशा में ले गया है, जहां कामकाजी घंटों और कार्य-जीवनसंतुलन के बीच सामंजस्य स्थापित करना जरूरी हो गया है।