लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने सरकार द्वारा गेहूं के समर्थन मूल्य (MSP) में केवल 150 रुपये की वृद्धि किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रियाव्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह मूल्य किसानों के लिए नाकाफी है और खेती की बढ़ती लागत के मुकाबले यह बहुत ही कम है। किसानों का कहनाहै कि गेहूं के समर्थन मूल्य से उनका कोई विशेष लाभ नहीं हो पा रहा है और उनकी आमदनी मनरेगा मजदूर की एक दिन की मजदूरी से भी कम रहजाती है।
फसलों की बढ़ती लागत और कम MSP पर असंतोष
सुनील सिंह ने कहा कि किसानों की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं और खेती की लागत में भी वृद्धि हो रही है। परंतु, MSP में कोई खास वृद्धि नहीं कीजा रही है। एक तरफ खेती की लागत बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकार से समर्थन मूल्य में सही इजाफा नहीं हो पा रहा है। उन्होंने उदाहरण देते हुएकहा कि गेहूं के उत्पादन के लिए 1 से 1.5 कट्ठा जमीन की आवश्यकता होती है और बुआई से लेकर कटाई तक खेत का किराया, खाद, बीज, सिंचाई, मजदूरी और जुताई में लगभग 1,300 से 1,500 रुपये का खर्च आता है।
किसानों की हालत:
किसान अपनी मेहनत के बाद भी MSP के बावजूद मुनाफे में नहीं हैं। सुनील सिंह ने बताया कि 2,425 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य से कोईविशेष लाभ नहीं हो रहा है। किसानों का कहना है कि उनके लिए गेहूं की खेती अब घाटे का सौदा बन गई है, जहां एक महीने की मेहनत का परिणामएक मनरेगा मजदूर की एक दिन की मजदूरी के बराबर हो जाता है।
सरकार पर निशाना
लोकदल ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार को किसानों की समस्याओं की पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।किसानों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है, और उनका विकास अब भी एक सपना ही बना हुआ है। लोकदल ने सरकार से अपील की हैकि किसानों की समस्या का समाधान तुरंत किया जाए और MSP में उचित वृद्धि की जाए, ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण ठीक से करसकें।