भारत के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का पहला स्नान सम्पन्न हुआ, जहां 60 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वतीके संगम में डुबकी लगाई। यह आयोजन न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस साल, महाकुंभ में 20 से अधिक देशों से भक्त पहुंचे, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की वैश्विक पहचान को दर्शाता है।
संगम तक 12 किलोमीटर की पदयात्रा
पहले शाही स्नान के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। गाड़ियों और अन्य परिवहन साधनों के बंद होने के कारण, लोगों ने संगम तक पहुंचनेके लिए 12 किलोमीटर की पदयात्रा की। श्रद्धालु भोर से ही स्नान के लिए संगम तट पर जुटने लगे। श्रद्धालुओं का उत्साह इस कदर था कि पैदलचलते हुए भी वे भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चारण करते रहे।
*सुरक्षा के कड़े इंतजाम*
भीड़ को नियंत्रित करने और स्नान को सुचारू रूप से सम्पन्न कराने के लिए 60,000 से अधिक पुलिसकर्मी, अर्धसैनिक बल और अन्य सुरक्षाकर्मीतैनात किए गए थे। ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से सुरक्षा पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। विभिन्न घाटों पर आपातकालीन सेवाएं, हेल्पडेस्क और मेडिकल टीम भी तैनात थीं। संगम के रास्तों पर विशेष बैरिकेडिंग की गई ताकि भीड़ का उचित प्रबंधन किया जा सके।
*विदेशी भक्तों का आकर्षण*
इस बार महाकुंभ में 20 देशों से श्रद्धालु पहुंचे, जिनमें अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया और नेपाल शामिल हैं। विदेशी श्रद्धालुओं ने भारतीयआध्यात्मिकता और महाकुंभ की सांस्कृतिक विविधता को सराहा। वे कुंभ मेले में योग, ध्यान और सत्संग जैसे आयोजनों में भी भाग ले रहे हैं। कुछविदेशी पर्यटक भारतीय संस्कृति को करीब से समझने के लिए संत-महात्माओं और विद्वानों से संवाद भी कर रहे हैं।
शाही स्नान का महत्व
महाकुंभ का पहला स्नान, जिसे “शाही स्नान” कहा जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्नान दिन ब्रह्म मुहूर्त में शुरूहुआ, जिसमें साधु-संतों, अखाड़ों और आम श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। शाही स्नान की शुरुआत जुलूस के साथ होती है, जहां साधु अपने पारंपरिकवेशभूषा में हाथी, घोड़े और रथों के साथ संगम पहुंचते हैं।
*स्नान के धार्मिक महत्व*
ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार पहले स्नान की तिथिको ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद शुभ माना गया, जिससे श्रद्धालुओं का उत्साह और बढ़ गया।
भोजन और आवास की व्यवस्था
श्रद्धालुओं के लिए व्यापक स्तर पर भोजन और आवास की व्यवस्था की गई। विभिन्न धर्मशालाओं, आश्रमों और टेंट सिटी में हजारों श्रद्धालुओं कोठहरने की सुविधा दी गई। साथ ही, जगह-जगह लंगर और भंडारे आयोजित किए गए, जहां मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया गया।
पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान
महाकुंभ के दौरान स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रशासन ने प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया और घाटोंकी सफाई के लिए विशेष अभियान चलाए। जल प्रदूषण को रोकने के लिए संगम क्षेत्र में निगरानी टीम तैनात की गई।
*संस्कृति का संगम*
महाकुंभ सिर्फ स्नान का पर्व नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन भी है। यहां धार्मिक चर्चा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीतऔर नृत्य का आयोजन किया गया, जिसने मेले को और भी भव्य बना दिया।
*भविष्य की तैयारियां*
महाकुंभ के आगामी स्नान और पर्वों के लिए प्रशासन पूरी तरह तैयार है। आने वाले हफ्तों में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ने की संभावना है। संगम परश्रद्धालुओं की आस्था और व्यवस्था के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रशासन हर संभव कदम उठा रहा है।
महाकुंभ का यह पहला स्नान न केवल आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और एकता का भी उत्सव है। इस अद्वितीयआयोजन ने दुनिया को यह दिखा दिया है कि भारत की आध्यात्मिकता और संस्कृति आज भी जीवंत है।