घटना की पृष्ठभूमि
महाराष्ट्र के बदलापुर में चार साल की दो बच्चियों के यौन शोषण के आरोपी अक्षय शिंदे की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी। 23 सितंबर 2024 को, जब उसे नवी मुंबई की तलोजा जेल से बदलापुर ले जाया जा रहा था, तब ठाणे के मुंब्रा बाईपास के पास पुलिस मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई।पुलिस ने दावा किया कि शिंदे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्तौल छीनकर गोली चलाने की कोशिश की थी, जिसके बाद आत्मरक्षा में पुलिस ने उसेगोली मारी।
न्यायिक आयोग की नियुक्ति
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने घटना की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति दिलीप भोसले की अध्यक्षता में एक न्यायिकआयोग का गठन किया। आयोग को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। इसका उद्देश्य मुठभेड़ की सटीकपरिस्थितियों और पुलिस की भूमिका की जांच करना था।
हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर टिप्पणी की। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण कीखंडपीठ ने पूछा कि पुलिस ने शिंदे को पकड़ने के लिए गैर-घातक उपाय क्यों नहीं किए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पुलिस ने मानक प्रक्रियाओं कापालन किया होता, तो शिंदे की मौत टाली जा सकती थी।
मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट
20 जनवरी 2025 को मजिस्ट्रेट ने बॉम्बे हाई कोर्ट को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में पांच पुलिसकर्मियों को मुठभेड़ के लिए जिम्मेदार ठहरायागया। जांच में पाया गया कि पुलिस ने मानक संचालन प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, जिससे यह घटना हुई।
आगे की कार्रवाई
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के आधार पर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करे। साथही, कोर्ट ने पुलिस विभाग में सुधारात्मक कदम उठाने और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस नीतियां लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
मामले का महत्व
अक्षय शिंदे की हिरासत में मौत का यह मामला पुलिस की जवाबदेही और मानवाधिकारों की रक्षा के संदर्भ में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। इस घटना नेपुलिस विभाग में सुधार की आवश्यकता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अनिवार्यता को उजागर किया है।