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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती के अवसर पर संविधान सदन में उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर उनकेसाथ उनके कैबिनेट सहयोगी, राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, और अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थितथे। यह दिन पूरे देश में “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है, जिसे केंद्र सरकार ने 2021 में नेताजी की जयंती के अवसर पर घोषित कियाथा।

पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि
पीएम मोदी ने इस अवसर पर अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर लिखा, “आज, पराक्रम दिवस पर, मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस कोश्रद्धांजलि देता हूं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान अद्वितीय है। वे साहस और धैर्य के प्रतीक थे। उनकी दृष्टि हमें प्रेरित करती है क्योंकिहम उनके द्वारा देखे गए भारत के निर्माण की दिशा में काम करते हैं।”

प्रधानमंत्री ने संविधान सदन में स्कूली छात्रों से भी बातचीत की। छात्रों ने नेताजी से जुड़ी अपनी जिज्ञासाओं को साझा किया, और पीएम ने उन्हेंनेताजी के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

पराक्रम दिवस का महत्व
पराक्रम दिवस नेताजी की देशभक्ति, उनकी दृढ़ता और आज़ादी की लड़ाई में उनके अद्वितीय योगदान को स्मरण करने का दिन है। नेताजी ने “आजादहिंद फौज” की स्थापना कर भारत की स्वतंत्रता के लिए एक सशक्त सैन्य अभियान चलाया था। उन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसेप्रेरणादायक नारे से युवाओं में जोश भरा।

संविधान सदन में कार्यक्रम
इस मौके पर संविधान सदन में आयोजित कार्यक्रम में नेताजी के जीवन पर आधारित एक विशेष प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसमें उनके द्वारा उपयोगकिए गए व्यक्तिगत सामान, दस्तावेज, और आज़ाद हिंद फौज से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को प्रदर्शित किया गया।

खड़गे और ओम बिरला भी रहे मौजूद
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस अवसर पर नेताजी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, “नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे महाननेता थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश की सेवा में समर्पित कर दी। उनका साहस और नेतृत्व हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेगा।” लोकसभा अध्यक्ष ओमबिरला ने नेताजी के विचारों को राष्ट्र के लिए मार्गदर्शक बताया।


नेता जी का जीवन और स्वतंत्र संग्राम की भूमिका
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी। उन्होंनेआईसीएस (भारतीय सिविल सेवा) की परीक्षा पास करने के बावजूद, ब्रिटिश शासन की नौकरी को अस्वीकार कर दिया और स्वतंत्रता आंदोलन मेंशामिल हो गए।

नेताजी ने महात्मा गांधी और अन्य नेताओं के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी। हालांकि उनके विचार गांधीजी से अलग थे, लेकिन उनकीस्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता पर कभी सवाल नहीं उठाया जा सकता। नेताजी ने जापान और जर्मनी जैसे देशों का सहयोग लेकर “आजाद हिंद फौज” बनाई और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया।

सरकार का प्रयास
2021 में, नेताजी की जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में घोषित करना केंद्र सरकार का नेताजी के योगदान को सम्मान देने का एक प्रयास था।सरकार ने उनके नाम पर कई योजनाओं और परियोजनाओं की घोषणा की है। नेताजी से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करने और उनकी विरासतको अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।

युवाओं को प्रेरणा
नेताजी का जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी आत्मनिर्भरता, साहस, और अडिग विश्वास हमें यह सिखाते हैं कि विपरीत परिस्थितियों मेंभी कैसे देशहित को सर्वोपरि रखा जा सकता है।

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