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कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ केवलएक हादसा नहीं, बल्कि एक नरसंहार था। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और प्रशासन की नाकामी ने इस त्रासदी को जन्म दिया, जिसमें 18 लोगों की मौतहो गई, जिनमें छोटे बच्चे भी शामिल थे। यह घटना रेल प्रशासन की लापरवाही और सुरक्षा की विफलता को उजागर करती है।

प्रशासन की नाकामी
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की चुप्पी और मृतकों के आंकड़ों को छिपाने की कोशिशें इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार की प्राथमिकता जनता की सुरक्षानहीं, बल्कि अपनी छवि बचाना है। जब लोग भगदड़ में दम तोड़ रहे थे, तब रेल मंत्री आंकड़ों को छिपाने में व्यस्त थे। यह न केवल शर्मनाक है, बल्कियह भी दर्शाता है कि सरकार आम जनता की जान की कीमत नहीं समझती।

चश्मदीदों की गवाही: दिल दहला देने वाला मंजर
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, स्टेशन पर का दृश्य भयावह था। श्रद्धालु कुंभ की ट्रेन पकड़ने आए थे, लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने उन्हें मौत के मुंह मेंधकेल दिया। कुलियों ने शवों को लादकर बाहर निकाला, और अस्पतालों में लाशों का अंबार लग गया। यह मानवता के खिलाफ अपराध है, जिसेनजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सुरक्षा के इंतजाम नदारद
15 फरवरी को हर घंटे 1500 जनरल टिकट बेचे जा रहे थे, जिससे स्पष्ट था कि भारी भीड़ स्टेशन पर आने वाली थी। फिर भी, प्रशासन ने भीड़नियंत्रण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।

क्या पर्याप्त पुलिस बल तैनात था?
क्या समय पर अनाउंसमेंट किए गए थे?
क्या प्लेटफॉर्म बदलने की सूचना श्रद्धालुओं को दी गई थी?
इन सभी सवालों के जवाब देने की जिम्मेदारी किसकी है?

सरकार की जिम्मेदारी: लापरवाही की पराकाष्ठा
इस घटना के बाद, सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की। जनता को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया गया। यह स्पष्ट है किइस सरकार में आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है। अगर सरकार को सच में उनकी सुरक्षा की चिंता होती, तो भीड़ नियंत्रण के उचित प्रबंधकिए जाते।
यह सिर्फ हादसा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है, जिसकी जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही होगी।

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