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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने शनिवार को ‘वंदे मातरम’ की रचना की 150वीं वर्षगांठ पर इसके रचयिताबंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को याद करते हुए कहा कि यह गीत केवल शब्दों का संगम नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा और देशभक्ति का मंत्र बन गया है।होसबोले ने कहा कि 1875 में रचित यह गीत, जब 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में गाया, तब से यह भारत के हर नागरिक के दिलकी आवाज बन गया। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ ने पूरे राष्ट्र में चेतना, सम्मान और एकता की भावना जगाई।

कृतज्ञतापूर्वक स्मरण और श्रद्धांजलि अर्पित करता
आरएसएस महासचिव ने बताया कि इस गीत का प्रभाव इतना गहरा था कि देश के कई विद्वानों और महान हस्तियों, जैसे महर्षि अरविंद, मैडमभीकाजी कामा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती, लाला हरदयाल, लाला लाजपत राय आदि ने अपने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के शीर्षक में ‘वंदेमातरम’ जोड़ा। महात्मा गांधी ने भी वर्षों तक अपने पत्रों का समापन ‘वंदे मातरम’ लिखकर किया। होसबोले ने हिंदी में जारी एक बयान में कहामातृभूमि की आराधना करने वाले और सम्पूर्ण राष्ट्र में चेतना का संचार करने वाले अद्भुत मंत्र, वंदे मातरम की रचना की 150वीं वर्षगांठ के पावनअवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रगीत के रचयिता, श्रद्धेय बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण और श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उन्होंनेकहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 के कांग्रेस राष्ट्रीय अधिवेशन में 1875 में रचित ‘वंदे मातरम’ गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

देशभक्ति का मंत्र बन गया
होसबोले ने कहा वंदे मातरम एक ऐसा अद्भुत मंत्र है जो मातृभूमि की आराधना करता है और पूरे राष्ट्र में चेतना का संचार करता है। उन्होंने आगे कहाकि 1905 के बंगाल विभाजन आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, यह गीत हर स्वतंत्रता सेनानी के लिए नारा बन गया। ‘वंदे मातरम’ केवल एकगीत नहीं, यह देश की आत्मा और भारत की पहचान है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं बल्किभारत की आत्मा है। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित यह गीत 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया और तब से यह देशभक्ति कामंत्र बन गया।

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