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संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की 80वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बहुपक्षीय सहयोग में विश्वास बनाए रखने की जरूरत परजोर दिया। साथ ही संगठन के सामने आने वाली चुनौतियों पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज दुनिया सामाजिक-आर्थिक प्रगति, व्यापारिकअसमानताओं और आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता जैसी समस्याओं से जूझ रही है। जयशंकर ने 80वीं वर्षगांठ पर जारी स्मारक डाक टिकट के विमोचनसमारोह में कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की बात केवल औपचारिकता बनकर रह गई है, तो विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति कीस्थिति और भी चिंताजनक है। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी 2030) की गति धीमी पड़ना ग्लोबल साउथ की कठिनाइयों का संकेत है।

दुनिया में कई संघर्ष चल रहे
एस जयशंकर ने आगे कहा कि दुनिया में कई संघर्ष चल रहे हैं, जिनसे न केवल मानव जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि वैश्विक समुदाय की स्थिरता भीखतरे में है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से ग्लोबल साउथ ने इसका दर्द झेला है, जबकि विकसित देश खुद को प्रभाव से अलग रख रहे हैं। विदेश मंत्रीने कहा कि हालांकि समय कठिन है, लेकिन बहुपक्षीयता के प्रति हमारा विश्वास मजबूत रहना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन हमें इसे और बेहतर बनाने के प्रयास जारी रखने होंगे। एस जयशंकर ने भारत की वैश्विक शांति में भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा किभारत हमेशा शांति स्थापना अभियानों में सक्रिय रहा है और इसे अपनी जिम्मेदारी मानता है। जयशंकर ने हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित ‘चीफ्सऑफ आर्मी स्टाफ कॉन्क्लेव’ का भी उल्लेख किया, जिसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

सुरक्षा और विकास के आदर्शों के प्रति हमेशा समर्पित रहा
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत शांति, सुरक्षा और विकास के आदर्शों के प्रति हमेशा समर्पित रहा है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारा लक्ष्यएक बेहतर और सुरक्षित दुनिया बनाना है। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी 80वीं वर्षगांठ पर दुनिया से एकजुट होकर वैश्विकचुनौतियों का सामना करने का आह्वान किया। इसके साथ ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा किसंगठन की निर्णय लेने की प्रक्रिया न तो उसके सदस्य देशों का सही प्रतिनिधित्व करती है और न ही वैश्विक प्राथमिकताओं को संबोधित करती है।उन्होंने कहा कि यूएन की बहसें अब बेहद ध्रुवीकृत हो गई हैं और उसका कामकाज ठप पड़ता जा रहा है। जयशंकर ने कहा कि किसी भी सार्थक सुधारको उसकी अपनी प्रक्रिया के जरिये ही रोका जा रहा है

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