
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, लेकिन सरकार की चुप्पी
कांग्रेस सरकार ने जब निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने के लिए कानून बनाया था, तो उसका मकसद यही था कि दलितों, पिछड़ों औरआदिवासियों को भी बराबरी का अवसर मिले। इस कानून को चुनौती दी गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि यह कानून पूरी तरह सही है औरइसे लागू होना चाहिए। इसके बावजूद मोदी सरकार ने पिछले 11 साल से इसपर कोई कदम नहीं उठाया। यानी अदालत की मुहर भी लगी औरसंविधान में संशोधन भी हुआ, लेकिन बहुजन समाज अब तक अपने अधिकार से वंचित है।
मोदी जी OBC बताते हैं, लेकिन नुकसान भी OBC को
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच से बार-बार खुद को OBC बताते हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि OBC समाज को फायदा मिला या नुकसान? सच्चाई यह है कि बीते 11 साल में OBC समाज को जितना नुकसान हुआ है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। लाखों छात्रों को आरक्षण और अवसर कालाभ नहीं मिल पाया। 2017 से आज तक OBC की क्रीमी लेयर को भी रिवाइज नहीं किया गया। इसका सीधा असर गरीब और मेहनती बच्चों परपड़ा है, जो हक़दार होने के बावजूद अवसर से बाहर कर दिए गए।
‘NFS’ – नई चाल, पुराना भेदभाव
आजकल एक और नया तरीका निकाला गया है – NFS यानी Not Found Suitable। कई बार उम्मीदवार सारे मानक पूरे कर लेते हैं, परीक्षापास कर लेते हैं, मेरिट में आते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें NFS कहकर बाहर कर दिया जाता है। यह तरीका बहुजन समाज को शिक्षा और नौकरियों सेबाहर रखने की एक और चाल है। जब सारी योग्यताएँ होने के बाद भी मौका नहीं मिलेगा तो मेहनत और सपनों का क्या होगा?
जातिगत जनगणना की जरूरत
अगर सच में समानता लानी है तो जातिगत जनगणना बेहद ज़रूरी है। इससे यह पता चलेगा कि किस वर्ग की असली स्थिति क्या है और किसे कितनीज़रूरत है। लेकिन मोदी सरकार इस पर कोई बात ही नहीं कर रही। न कोई योजना है, न कोई रोडमैप। उल्टा, जब भी कोई जातिगत जनगणना कीबात करता है, तो उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जाती है। कभी उन्हें अर्बन नक्सल कहा जाता है, कभी देश विरोधी कहा जाता है। असलियत यहहै कि सरकार इस सच्चाई को सामने ही नहीं आने देना चाहती।
मंडल आयोग की अधूरी सिफारिशें
बहुजनों की तरक्की के लिए मंडल आयोग बनाया गया था। इसने 40 सिफारिशें दीं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि आज तक सिर्फ 2 सिफारिशेंलागू हुई हैं और बाकी 38 अब भी अधूरी हैं। अगर वे लागू कर दी जातीं तो आज बहुजन समाज की स्थिति कहीं बेहतर होती। लेकिन सरकार ने उन्हेंठंडे बस्ते में डाल दिया। यह साफ़ दिखाता है कि बहुजनों के सवाल और समस्याएँ सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं।
शिक्षा और रोज़गार पर साजिश
आज जो हालात हैं, वे किसी लापरवाही का नतीजा नहीं बल्कि एक सोची-समझी साजिश है। पहले सरकारी संस्थानों की संख्या कम की गई, फिरशिक्षा को निजी हाथों में सौंपा गया। निजी संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं है, इसलिए बहुजन समाज के बच्चे बाहर रह गए। अब NFS जैसी चालेंचलकर रोज़गार से भी दूर किया जा रहा है। यह सब मिलकर बहुजनों को मुख्यधारा से बाहर करने का काम कर रहा है।
हमारी मांग
हमारी साफ़ मांग है कि मोदी सरकार तुरंत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करे। OBC की क्रीमी लेयर को तुरंत रिवाइज किया जाए। NFS जैसी भेदभावपूर्ण व्यवस्था को खत्म किया जाए। जातिगत जनगणना पूरी की जाए और मंडल आयोग की बाकी सभी सिफारिशें लागू की जाएं। यहीअसली सामाजिक न्याय है।
असली न्याय का रास्ता
जब तक बहुजन समाज को शिक्षा और रोज़गार में बराबरी नहीं मिलेगी, तब तक लोकतंत्र अधूरा रहेगा। देश की 90% आबादी अगर हक़ से वंचितरहेगी तो भारत कैसे तरक्की करेगा? बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा था कि सामाजिक समानता के लिए वोट का अधिकार और आरक्षण दोनों जरूरी हैं।आज दोनों पर हमला हो रहा है। इसलिए हमें आवाज़ उठानी होगी और बहुजनों का हक़ वापस लेना होगा। यही असली न्याय है और यही देश कोआगे बढ़ाने का रास्ता है।