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बहुजन समाज की बड़ी आबादी, लेकिन शिक्षा में हिस्सेदारी कम
हमारे देश की असली ताक़त बहुजन समाज है। दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग मिलाकर यह समाज लगभग 90% आबादी का हिस्सा है। लेकिनजब शिक्षा की बात आती है, खासकर निजी कॉलेज और विश्वविद्यालयों की, तो उनकी हिस्सेदारी सिर्फ़ 12% तक सीमित रह जाती है। यह स्थितिबहुत दुखद और अन्यायपूर्ण है। यह बताता है कि आज भी शिक्षा का दरवाज़ा बहुजनों के लिए पूरी तरह खुला नहीं है।

संसदीय समिति की रिपोर्ट और सुझाव
इस विषय पर संसद की एक समिति ने गहराई से अध्ययन किया। रिपोर्ट में साफ़ कहा गया कि निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुजन समाज कीस्थिति बेहद खराब है। समिति ने सुझाव दिया कि आरक्षण के प्रावधान को लागू करना ज़रूरी है। समिति ने स्पष्ट सिफारिश की कि SC वर्ग को15%, ST वर्ग को 7.5% और OBC वर्ग को 27% प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो ही असली समान अवसर मिलेगा औरशिक्षा का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुँच पाएगा।

कांग्रेस सरकार का ऐतिहासिक फैसला
यूपीए सरकार के समय शिक्षा को सबके लिए सुलभ और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया। संविधान में अनुच्छेद 15(5) जोड़ा गया, जिसके तहत निजी शिक्षण संस्थानों में भी SC, ST और OBC वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। यह फैसला केवल एकक़ानूनी बदलाव नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल थी। इस कानून से बहुजन समाज के बच्चों को उम्मीद मिलीकि अब उन्हें भी आगे बढ़ने का सही अवसर मिलेगा।

अदालत का समर्थन
जब इस फैसले का विरोध हुआ और मामला अदालत तक गया, तब भी न्यायपालिका ने साफ़ कहा कि यह प्रावधान सही और संविधान के अनुरूप है।सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को सही ठहराया। यानी न तो कानून में और न ही न्यायपालिका में कोई अड़चन थी। लेकिन इसके बावजूद इसे पूरी तरहलागू नहीं किया गया।

मोदी सरकार की 11 साल की चुप्पी
यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है कि पिछले 11 साल से मोदी सरकार इस कानून पर कोई कदम नहीं उठा रही। न तो निजी संस्थानों में आरक्षण लागूकिया गया और न ही बहुजन समाज को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस योजना बनाई गई। मोदी जी मंचों से खुद को OBC बताते हैं, लेकिन हकीकतयह है कि OBC, SC और ST वर्ग को सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं 11 सालों में हुआ है।

शिक्षा पर बड़ा खेल और साजिश
आज जो हालात हैं, वे किसी छोटी भूल का नतीजा नहीं हैं, बल्कि यह एक सोची-समझी साजिश है। पहले सरकारी शिक्षण संस्थानों की संख्या घटाईगई, उन्हें धीरे-धीरे कमजोर किया गया। फिर शिक्षा को निजी हाथों में सौंपा गया। अब जब शिक्षा पूरी तरह निजी संस्थानों के भरोसे हो जाएगी औरवहाँ आरक्षण भी लागू नहीं होगा, तो सबसे बड़ा नुकसान बहुजन समाज को ही उठाना पड़ेगा। यह लोकतंत्र और सामाजिक न्याय दोनों के लिए बहुतखतरनाक स्थिति है।

बाबा साहेब का संदेश और आज की हकीकत
बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने साफ़ कहा था कि अगर समाज में समानता लानी है तो वोट का अधिकार और आरक्षण होना ज़रूरी है। लेकिनआज की भाजपा सरकार इन दोनों पर हमला कर रही है। कभी वोट के अधिकार को कमजोर करने की कोशिश होती है, तो कभी आरक्षण को कमजोरकिया जाता है। यह सब मिलकर बहुजनों को मुख्यधारा से बाहर करने की साजिश का हिस्सा है।

हमारी माँग और अपील
हमारी साफ़ माँग है कि केंद्र सरकार तुरंत निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करने की दिशा में कदम उठाए। संसद समिति की सिफारिशोंको मानकर SC को 15%, ST को 7.5% और OBC वर्ग को 27% प्रतिनिधित्व दिया जाए। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों केलिए मुफ्त कोचिंग और सहायता की व्यवस्था की जाए।

असली समानता की राह
जब तक शिक्षा में बराबरी नहीं होगी, तब तक समाज में समानता का सपना अधूरा रहेगा। बहुजन समाज की 90% आबादी अगर शिक्षा से वंचित रहीतो देश कैसे आगे बढ़ेगा? इसलिए ज़रूरी है कि आरक्षण को सही ढंग से लागू किया जाए और हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले। यही बाबासाहेब के सपनों का भारत होगा और यही असली सामाजिक न्याय है।

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