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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देश भर की अदालतों और न्यायाधिकरणों में शौचालय सुविधाएं सुनिश्चित करने संबंधी अपने निर्देशों की अवहेलना पर कड़ीनाराजगी जताई है। अदालत ने पाया कि 25 उच्च न्यायालयों में से केवल 5 ने ही अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की है। शेष 20 उच्च न्यायालयों कोरिपोर्ट सौंपने के लिए अब अंतिम रूप से 8 सप्ताह की मोहलत दी गई है।

यह आखिरी मौका
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कड़े शब्दों में कहा, “यह अंतिम अवसर है। यदि अगले आठ हफ्तों में अनुपालनरिपोर्ट दाखिल नहीं की जाती, तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुपालन में विफल रहने पर संबंधित उच्च न्यायालयोंके रजिस्ट्रार जनरल को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ेगा।

जनवरी में दिया गया था ऐतिहासिक निर्णय
15 जनवरी 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच कोनागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया था। अदालत ने निर्देश दिया था कि सभी अदालत परिसरों चाहे वे किसी भी स्तर पर हों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग और सुलभ शौचालयों की व्यवस्था की जाए।

केवल 5 उच्च न्यायालयों ने की रिपोर्टिंग
पीठ ने बताया कि अब तक केवल झारखंड, मध्य प्रदेश, कलकत्ता, दिल्ली और पटना उच्च न्यायालयों ने ही इस विषय पर हलफनामे दाखिल किएहैं। इनमें यह स्पष्ट किया गया है कि अदालत परिसरों में स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

रजिस्ट्रार जनरल की व्यक्तिगत उपस्थिति की चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य उच्च न्यायालयों को दो टूक कहा है कि यदि वे रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो उनके रजिस्ट्रार जनरल को स्वयं अदालत में उपस्थितहोना पड़ेगा। अदालत ने यह भी कहा कि रिपोर्ट में यह सुनिश्चित किया जाए कि शौचालय सुविधाएं स्पष्ट रूप से चिह्नित हों और उनका उपयोगन्यायाधीशों, वकीलों, पक्षकारों और अदालत कर्मचारियों द्वारा सुगमता से किया जा सके।

एक जनहित याचिका से शुरू हुआ मामला
यह मामला अधिवक्ता राजीब कालिता द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसमें देश भर की अदालतों में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओंकी कमी को उजागर किया गया था। उसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश जारी किए थे।

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