
बिहार में इन दिनों मतदाता सूची की व्यापक जांच की जा रही है, जिसमें नागरिकता की पुष्टि के नाम पर वोटरों से प्रमाण मांगे जा रहे हैं। कांग्रेस नेताऔर वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने इस जांच को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि यह तरीका न केवल असंवैधानिक है, बल्किलाखों नागरिकों के मताधिकार को छीन सकता है।
2003 के बाद जुड़े वोटर को ‘संदिग्ध’ मानना अनुचित
सिंघवी ने बताया कि चुनाव आयोग 2003 से पहले मतदाता सूची में दर्ज नामों को सुरक्षित मान रहा है, लेकिन 2003 के बाद जुड़े वोटरों से उनकीनागरिकता साबित करने को कहा जा रहा है। भले ही वह व्यक्ति 15 वर्षों से लगातार मतदान करता आया हो, यदि वह दस्तावेज नहीं दिखा सका, तोउसका नाम हटा दिया जाएगा।
प्रमाणों की जटिल मांग बना रही है मुश्किल
इस प्रक्रिया में वोटरों से तीन तरह के कठिन दस्तावेज मांगे जा रहे हैं खुद का जन्म प्रमाणपत्र, माता-पिता का जन्म प्रमाणपत्र या दोनों के प्रमाणपत्र।सिंघवी ने कहा कि यह ग्रामीण, गरीब, प्रवासी, बुजुर्गों और महिलाओं के लिए अत्यंत कठिन है, जिनके पास आमतौर पर ऐसे दस्तावेज नहीं होते।
बिना कानून बदले शुरू हुई यह प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट में सिंघवी ने तर्क दिया कि इस प्रकार की जांच किसी विधायी संशोधन के बिना नहीं की जा सकती। लेकिन चुनाव आयोग ने सिर्फ एकआंतरिक आदेश के आधार पर इतनी व्यापक कार्रवाई शुरू कर दी, जो न्यायसंगत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले की अनदेखी
सिंघवी ने कोर्ट को याद दिलाया कि पूर्व में शीर्ष अदालत कह चुकी है कि मतदाता सूची से किसी नाम को हटाने से पहले कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिएयानी नोटिस, सुनवाई और उचित जांच। लेकिन बिहार में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा, जिससे लाखों वोटर बिना मौका दिए सूची से बाहर किए जा सकतेहैं।
5 करोड़ वोटर ‘संदिग्ध’, लोकतंत्र को खतरा
डॉ. सिंघवी के मुताबिक, बिहार में कुल 8 करोड़ वोटर हैं, जिनमें से 5 करोड़ को संदिग्ध घोषित कर दिया गया है। यदि इनमें से केवल 2 करोड़ भीवोट देने से वंचित रह जाते हैं, तो यह लोकतंत्र की गंभीर क्षति होगी। यह प्रक्रिया सबसे ज्यादा असर गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग परडालेगी।
आधार और वोटर कार्ड भी नहीं मान्य?
सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा गया कि वर्तमान में सभी जगह मान्य दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण केतौर पर अस्वीकार किया जा रहा है। अब सिर्फ जन्म प्रमाणपत्र ही मान्य माना जा रहा है, जो हर किसी के पास नहीं होता।
बाढ़ और पलायन के समय क्यों लागू हुई यह प्रक्रिया?
सिंघवी ने यह भी प्रश्न उठाया कि जब बिहार के अनेक जिले बाढ़ से प्रभावित हैं और लाखों लोग पलायन कर चुके हैं, ऐसे समय में इस प्रक्रिया कीशुरुआत क्यों की गई? क्या गरीब मजदूर अपनी जान बचाएं या दस्तावेज ढूंढें?
सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग
सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि इस प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाई जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी नागरिक को उसकेसंवैधानिक मताधिकार से वंचित न किया जाए। यह मामला लोकतंत्र की बुनियाद से जुड़ा है और अदालत को इसमें संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।