
चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर नहीं, समय पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग की मंशा और प्रक्रिया पर सीधे तौर पर कोईआपत्ति नहीं जताई, लेकिन इसकी टाइमिंग पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया कराना उचित नहीं है, क्योंकि इससे प्रभावित मतदाताओं को अपील या सुधार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा।
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा, “आपकी प्रक्रिया में कोई गलती नहीं है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले कोई व्यक्ति यदि मतदाता सूची से बाहर करदिया गया, तो उसके पास इस फैसले के खिलाफ अपील करने का अवसर नहीं बचेगा।” साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि एक बार मतदाता सूचीअंतिम हो जाए, तो अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं करतीं।
वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर अदालत की चिंता
न्यायालय ने पूछा कि यदि यह पुनरीक्षण इतना आवश्यक था तो इसे पहले क्यों नहीं किया गया? चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले इस कवायद काक्या औचित्य है? अदालत ने दो टूक कहा कि यह कवायद चुनाव से पहले नहीं होनी चाहिए थी।
आधार को पहचान पत्र न मानने पर भी सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में अस्वीकार करने के चुनाव आयोग के निर्णय पर भी सवाल उठाए। आयोग कीतरफ से कहा गया कि “आधार से नागरिकता प्रमाणित नहीं होती”, जिस पर अदालत ने कहा कि यदि नागरिकता ही मतदाता सूची में नाम जोड़ने कीकसौटी है, तो फिर यह कार्य गृह मंत्रालय का क्षेत्राधिकार है, चुनाव आयोग का नहीं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “यदि आप यह साबित करना चाहते हैं कि कोई नागरिक है तभी वह वोट डाल सकता है, तो यह एक बड़ा परीक्षण बन जाएगा।आपकी प्रक्रिया का फिर कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।”
सामूहिक निलंबन और आधार से इनकार पर उठे सवाल
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि लाखों लोगों को सामूहिक रूप सेमतदाता सूची से निलंबित कर दिया गया है और उन्हें केवल एक फॉर्म भरने का विकल्प दिया गया है। सिंघवी ने कहा कि यह प्रक्रिया मनमानी औरभेदभावपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से कहा जा रहा है कि 2003 के बाद पहली बार संशोधन किया जा रहा है, जब बिहार की जनसंख्या महज 4 करोड़ थी। अब 10 चुनावों के बाद, जनसंख्या कई गुना बढ़ चुकी है, लेकिन चुनाव से ऐन पहले यह कवायद की जा रही है।
चुनाव आयोग की सफाई और सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
चुनाव आयोग ने अदालत को आश्वस्त किया कि बिना नोटिस और सुनवाई के किसी का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने यह भी स्पष्टकिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है और उन्हें मताधिकार से वंचित करने का कोई इरादा नहीं है। साथ ही आयोग ने यह आपत्ति भीजताई कि याचिकाकर्ता बिहार के मतदाता नहीं हैं।