
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (ईसी) ने संकेत दिया था कि आगामी चुनावों में सभी मतदान केंद्रों पर शत-प्रतिशत वेबकास्टिंग की तैयारी की जारही है। हालांकि अब आयोग इस योजना पर पुनर्विचार कर रहा है। कारण स्पष्ट है वेबकास्टिंग के वीडियो सार्वजनिक करने से मतदाताओं कीगोपनीयता को खतरा हो सकता है। आयोग के एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि वेबकास्टिंग की रिकॉर्डिंग केवल आंतरिक निरीक्षण के लिए है और इसेसार्वजनिक डोमेन में साझा करना उपयुक्त नहीं माना गया है।
राहुल गांधी ने लगाए चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर आरोप
दूसरी ओर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने निर्वाचन आयोग की कुछ हालिया नीतियों पर सवाल उठाते हुए इसे”मैच फिक्स” करार दिया। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि चुनाव आयोग जरूरी साक्ष्य मिटा रहा है।उन्होंने लिखा कि वोटर लिस्ट ‘मशीन रीडेबल फॉर्मेट’ में नहीं देंगे। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छिपा दी गई। चुनाव की फोटो-वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिन में ही मिटा देंगे। जिससे जवाब चाहिए था, वही सबूत मिटा रहा है। साफ दिख रहा है – मैच फिक्स है, और यह लोकतंत्र के लिएज़हर है।
चुनाव आयोग का तर्क
चुनाव आयोग के सूत्रों का कहना है कि वेबकास्टिंग की फुटेज को सार्वजनिक न करने का मुख्य उद्देश्य मतदाता की पहचान और गोपनीयता की रक्षाकरना है। यदि वीडियो सार्वजनिक होते हैं, तो यह संभावित रूप से उन मतदाताओं की पहचान उजागर कर सकते हैं जिन्होंने मतदान किया या नहींकिया। इससे किसी विशेष समूह या दल द्वारा मतदाताओं पर दबाव, भेदभाव या डराने-धमकाने की आशंका बढ़ जाती है।
वेबकास्टिंग फुटेज की समयसीमा और विधिक उपयोग
निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, वेबकास्टिंग, सीसीटीवी फुटेज और अन्य रिकॉर्डिंग्स को अधिकतम 45 दिनों तक संरक्षित रखा जाता है— यही वह समयसीमा है जिसके भीतर चुनाव परिणाम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। यदि इस अवधि में कोई चुनाव याचिका दायर होतीहै, तो यह रिकॉर्डिंग्स सुरक्षित रखी जाती हैं और आवश्यक होने पर अदालत में प्रस्तुत की जाती हैं। इसके बाद इन्हें नष्ट कर दिया जाता है ताकि इनकादुरुपयोग न हो।
गोपनीयता का संरक्षण
भारत निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मतदाताओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता और गोपनीयता उसकी प्राथमिकता हैं। चाहे किसी राजनीतिक दलया अन्य समूह का दबाव हो, आयोग किसी भी परिस्थिति में मतदाता की पहचान को उजागर करने या मतदान की गोपनीयता को भंग करने की अनुमतिनहीं देगा। यह नीति कानून और सर्वोच्च न्यायालय दोनों द्वारा समर्थित है और आयोग इसी सिद्धांत का पालन करता रहा है।