
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक जघन्य अपराध के मामले में एक अहम निर्णय सुनाते हुए, चार वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के दोषीराजकुमार उर्फ राजाराम की फांसी की सजा को 25 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायणमिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि भले ही यह अपराध अत्यंत घिनौना और अमानवीय है, लेकिन दोषी की पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को देखतेहुए मृत्यु दंड उचित नहीं है।
मामला गंभीर, लेकिन मौत की सजा नहीं
अदालत ने स्पष्ट किया कि चार साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसे गला घोंटकर मारने की कोशिश करना निस्संदेह एक क्रूर और निंदनीयअपराध है। आरोपी ने बच्ची को सुनसान जगह पर फेंक दिया था, जिससे उसकी जान भी जा सकती थी। इसके बावजूद, कोर्ट ने आरोपी की उम्र, शिक्षा की कमी और पारिवारिक उपेक्षा को ध्यान में रखते हुए फांसी की सजा को कठोर कारावास में बदलने का निर्णय लिया।
आरोपी की सामाजिक स्थिति बनी राहत का आधार
कोर्ट ने बताया कि राजकुमार एक 20 वर्षीय आदिवासी युवक है, जो न तो शिक्षित है और न ही उसे परिवार से पर्याप्त सहयोग या संरक्षण मिला। वहबहुत छोटी उम्र से जीविकोपार्जन के लिए एक ढाबे में काम करने लगा, जहां उसे उचित माहौल और मार्गदर्शन नहीं मिला। इन परिस्थितियों को ध्यानमें रखते हुए कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय में संशोधन करते हुए फांसी की सजा को 25 वर्षों के कारावास में बदल दिया।
ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा
खंडवा जिले की पाक्सो अदालत ने 21 अप्रैल 2023 को राजकुमार को नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के आरोप में मृत्युदंड कीसजा सुनाई थी। यह मामला हाई कोर्ट के समक्ष पुष्टि के लिए भेजा गया था, और आरोपी की ओर से भी सजा के खिलाफ अपील दायर की गई थी।
पीड़िता को खेत में मरणासन्न हालत में पाया गया
घटना 30 और 31 अक्टूबर 2022 की रात की है जब बच्ची सोते हुए गायब हो गई थी। बाद में वह एक आम के बाग में गंभीर हालत में मिली, जिसके बाद उसे इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस जांच में आरोपी की पहचान हुई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
डीएनए रिपोर्ट बनी सजा का आधार
अदालत में आरोपी की ओर से यह तर्क दिया गया कि उसके खिलाफ प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं हैं और केवल डीएनए रिपोर्ट ही सबूत के रूप में प्रस्तुतकी गई है। वहीं, राज्य सरकार की ओर से यह कहा गया कि डीएनए एक वैज्ञानिक और विश्वसनीय साक्ष्य है, जिसने आरोपी की संलिप्तता स्पष्ट रूपसे सिद्ध कर दी है।
अपराध गंभीर पर पुनर्वास भी जरूरी
हाई कोर्ट के फैसले में यह संतुलन देखने को मिला कि न्याय सिर्फ दंड देने में ही नहीं बल्कि परिस्थितियों को समझते हुए पुनर्वास और सुधार कीसंभावना को भी ध्यान में रखना चाहिए। हालांकि अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया गया, लेकिन आरोपी की पृष्ठभूमि ने उसे मृत्युदंड सेराहत दिला दी।