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गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे द्वारा गोवा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (GMCH) में एक डॉक्टर को फटकार लगाकर निलंबित करने कामामला तूल पकड़ गया है। शनिवार को मंत्री ने अस्पताल का औचक निरीक्षण किया, जहां उन्हें डॉ. रुद्रेश कुट्टीकर के खिलाफ मरीजों से दुर्व्यवहार कीशिकायत मिली। इसके बाद मंत्री ने सार्वजनिक रूप से डॉक्टर को डांटा और तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्देश दिया। मंत्री के इस बर्ताव कीव्यापक आलोचना हुई, जिसे अनुचित और अपमानजनक बताया गया।

चिकित्सा संगठनों का विरोध और हड़ताल की चेतावनी
मंत्री के आचरण के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और गोवा एसोसिएशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स (GARD) समेत अन्य संगठनों नेमोर्चा खोल दिया है। डॉक्टरों ने इसे मेडिकल प्रोफेशन की गरिमा के खिलाफ बताया और मंत्री से 48 घंटे के भीतर माफी मांगने की मांग की। विरोधस्वरूप अस्पताल में कामकाज प्रभावित हुआ और मरीजों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कांग्रेस की मांग
घटना पर राजनीति भी गरमा गई है। कांग्रेस ने मंत्री के व्यवहार को अस्वीकार्य बताया और उनके इस्तीफे की मांग की। गोवा कांग्रेस प्रमुख अमितपाटकर ने डॉक्टरों के समर्थन में कहा कि जब इलाज करने वाले डॉक्टरों को सड़कों पर उतरना पड़े, तो यह सिर्फ हड़ताल नहीं, बल्कि सम्मान औरसुरक्षा की लड़ाई है।

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप और निलंबन निरस्त
मामला बढ़ता देख मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने हस्तक्षेप किया और डॉक्टर का निलंबन आदेश निरस्त कर दिया। यह निर्णय स्थिति को नियंत्रण में लानेके लिए लिया गया, जिससे अस्पताल सेवाएं फिर से सामान्य हो सकें।

स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी माफी
शुरुआत में मंत्री ने माफी मांगने से इनकार कर दिया था, लेकिन विरोध के बढ़ते दबाव के चलते सोमवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर सार्वजनिकमाफी जारी की। उन्होंने लिखा कि वह डॉ. कुट्टीकर से दिल से क्षमा चाहते हैं और उस समय की परिस्थिति में उनकी भावनाएं हावी हो गई थीं। मंत्री नेयह भी कहा कि उनका उद्देश्य कभी किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना नहीं था और उनका मकसद केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को जिम्मेदार औरसंवेदनशील बनाना था।

डॉक्टरों की अन्य मांगें

प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों ने यह भी मांग की है कि VIP संस्कृति पर रोक लगाई जाए और संवेदनशील इलाकों जैसे कैजुअल्टी वार्ड में मीडिया और कैमरोंकी एंट्री पर पाबंदी हो। उनका कहना है कि इससे मरीजों की निजता और चिकित्सकीय कार्य बाधित होते हैं।

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