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‘पंजाब इस विश्वासघात का बदला लेगा’: कांग्रेस ने किसानों के विरोध को लेकर सीएम मान की आलोचना की

पुलिस द्वारा पंजाब-हरियाणा शंभू सीमा से प्रदर्शनकारी किसानों को हटाए जाने के बाद, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मानपर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि राज्य के लोग इस “पीठ में छुरा घोंपने” का बदला लेंगे। श्रीनेत ने एएनआई से बातचीत में कहा, “आप नेकल अपना असली चरित्र दिखाया। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार वह पहली राज्य सरकार थी जिसने तीनकाले कानून पारित किए थे। यह अविश्वसनीय है कि एक पार्टी, जो खुद को एक आंदोलन से उत्पन्न पार्टी कहती है, वह इस तरह से किसानों केआंदोलन को खत्म करने के लिए इस कदम को उठाएगी। पंजाब इस पीठ में छुरा घोंपने का बदला जरूर लेगा।” कांग्रेस नेता का यह बयान उस समय आया जब पंजाब पुलिस ने शंभू और खनौरी सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को जबरन हटा दिया। प्रदर्शनकारीकिसान विभिन्न मांगों को लेकर पंजाब-हरियाणा सीमा पर धरने पर बैठे थे। इस कार्यवाही के बाद, विपक्षी दलों ने भगवंत मान की आम आदमी पार्टी(आप) सरकार की कड़ी आलोचना की है। पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह मुख्यमंत्री भगवंत मान से यहीउम्मीद थी, क्योंकि आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) “एक ही सिक्के के दो पहलू” हैं। बाजवा ने कहा, “पंजाब के सीएमभगवंत मान से यही उम्मीद थी। उन्होंने किसानों को धोखा क्यों दिया? एक ओर वे किसानों को बैठक के लिए बुलाते हैं, और दूसरी ओर उन्हें हिरासतमें ले लिया। भाजपा और आप दोनों एक ही सोच रखते हैं। अब हरियाणा सरकार ने भी सीमा पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। वे यह सुनिश्चितकरना चाहते हैं कि लुधियाना पश्चिम उपचुनाव में पार्टी के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा जीतें, ताकि अरविंद केजरीवाल राज्यसभा सदस्य बन सकें।” किसानों द्वारा किया गया यह विरोध प्रदर्शन उस समय हुआ, जब अखिल भारतीय किसान सभा और भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले किसानएकजुट होकर करनाल में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के आवास तक विरोध मार्च निकाल रहे थे। यह विरोध प्रदर्शन तब हुआ, जब पंजाबपुलिस ने बुधवार को पंजाब-हरियाणा शंभू सीमा से किसानों को हटाने के लिए कार्रवाई की। पुलिस ने धरने पर बैठे किसानों द्वारा बनाए गए अस्थायीढांचे भी हटा दिए, और अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे किसान नेताओं जैसे जगजीत सिंह दल्लेवाल और किसान मजदूर मोर्चा के नेता सरवन सिंहपंधेर समेत कई प्रमुख किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया। इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए, पंजाब के मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने बताया कि यह कार्रवाई इसलिये की गई क्योंकि सरकार चाहती थी कि शंभू औरखनौरी सीमाएं खोल दी जाएं। एएनआई से बात करते हुए चीमा ने कहा, “किसानों को दिल्ली या किसी अन्य स्थान पर विरोध प्रदर्शन करना चाहिए, क्योंकि उनकी मांगें केंद्र सरकार के खिलाफ हैं। इन सीमाओं को खोलने से पंजाब के व्यापारी, युवा और आम लोग लाभान्वित होंगे। जब व्यापारीअपना व्यापार करेंगे, तो युवाओं को रोजगार मिलेगा और वे नशे जैसी समस्याओं से बच सकेंगे।” चीमा ने यह भी कहा, “हमारी सरकार और पंजाब के लोग हमेशा किसानों के साथ खड़े रहे हैं, विशेषकर तीन काले कानूनों के खिलाफ। किसानों कीमांगें केंद्र सरकार के खिलाफ हैं, और अब यह समय है कि वे अपनी मांगों के लिए दिल्ली या अन्य स्थानों पर विरोध प्रदर्शन करें। पंजाब की सड़कोंको अवरुद्ध करके, वे अन्य लोगों को परेशान कर रहे हैं।” पंजाब में पिछले कुछ समय से किसानों द्वारा केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं। शंभू और खनौरी सीमाएं पिछले एकसाल से बंद हैं, और किसानों की इस मांग को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच तनाव बना हुआ है। मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार ने किसानोंसे इन सीमाओं को खोलने की अपील की है, ताकि राज्य के व्यापारियों को और युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकें। पंजाब सरकार का यहकहना है कि यह कदम राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए जरूरी है। किसानों के संगठन, हालांकि, इस कदम से असहमत हैं और उनका कहना है कि जब तक केंद्र सरकार उनकी तीन प्रमुख मांगों को नहीं मानती, वेअपना विरोध जारी रखेंगे। ये मांगें कृषि कानूनों को रद्द करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने, और किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों कीवापसी की हैं। किसानों का यह भी कहना है कि सरकार उनके आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस और अन्य बलों का इस्तेमाल कर रही है, जो उनकेआंदोलन के उद्देश्य को कमजोर करने का प्रयास है। इस पूरे मामले पर राजनीतिक विवाद और तीखी आलोचनाएं लगातार बनी हुई हैं। जहां एक ओर विपक्षी दलों का कहना है कि आम आदमी पार्टीऔर भारतीय जनता पार्टी एक ही तरह की राजनीति कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार इसे राज्य की तरक्की और युवाओं के रोजगार के लिए आवश्यककदम मान रही है। पंजाब की सरकार की यह कोशिश है कि किसानों को राज्य की सीमाओं को खोलने के लिए राजी किया जाए, ताकि राज्य केव्यापार और व्यापारिक गतिविधियों को नया जीवन मिल सके।

प्रधानमंत्री मोदी 30 मार्च को नागपुर दौरे पर, मोहन भागवत के साथ होंगे एक मंच पर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 30 मार्च को नागपुर का दौरा करेंगे, जहां वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुख्यालय की यात्रा करेंगे। इस यात्रा कोलेकर सियासी हलकों में काफी चर्चा हो रही है, क्योंकि यह प्रधानमंत्री मोदी का RSS के साथ एक महत्वपूर्ण सामरिक साक्षात्कार होगा। प्रधानमंत्रीमोदी की यह यात्रा हिंदू नववर्ष के पहले दिन निर्धारित की गई है, जो इस दौरे को और भी अहम बनाती है। उनके इस दौरे पर कई मायनों में नजरें टिकीहुई हैं, खासतौर पर इस बात को लेकर कि वे इस दौरान RSS के प्रमुख मोहन भागवत के साथ एक मंच पर नजर आ सकते हैं।माधव नेत्रालय भूमि पूजन और पीएम मोदी का कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी इस यात्रा के दौरान नागपुर में RSS से जुड़ी कई गतिविधियों का हिस्सा बनेंगे। वे मुख्य रूप से माधव नेत्र चिकित्सालय के भूमि पूजनकार्यक्रम में शामिल होंगे, जो RSS समर्थित पहल के तहत स्थापित किया जा रहा है। इस मौके पर मोदी के साथ RSS प्रमुख मोहन भागवत भीमौजूद होंगे। यह आयोजन एक ऐतिहासिक महत्व का अवसर है, क्योंकि इसके माध्यम से नागपुर में स्वास्थ्य क्षेत्र में भी RSS द्वारा सक्रिय कदमउठाए गए हैं। माधव नेत्रालय के भूमि पूजन के साथ-साथ पीएम मोदी और मोहन भागवत का एक साथ मंच साझा करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिकऔर सामाजिक संदेश देता है। PM मोदी और मोहन भागवत का साथ आना: एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेतप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत का एक मंच पर आना एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है, क्योंकि यह दोनों के बीच केघनिष्ठ संबंधों को और भी स्पष्ट करता है। मोदी और भागवत पहले भी सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे का समर्थन करते रहे हैं, लेकिन इस मंच पर पहलीबार एक साथ आने से यह रिश्ते और भी दृढ़ होते दिखेंगे। विशेष रूप से राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह दोनों नेताओं का एक साथ आना कईमायनों में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संघ और सरकार के बीच की राजनीतिक रिश्तेदारी को और मजबूत करने का एक प्रतीक हो सकता है।इस कार्यक्रम में पीएम मोदी और मोहन भागवत के साथ अन्य वरिष्ठ RSS नेता भी मौजूद रहेंगे, जो इस ऐतिहासिक घटना को लेकर खासा उत्साहितहैं। RSS प्रमुख मोहन भागवत हमेशा अपने संगठन की विचारधारा और उद्देश्यों को लेकर मुखर रहते हैं, वहीं पीएम मोदी भी संघ के विचारों कोसमर्थन देने में पीछे नहीं रहते हैं। मोदी का यह नागपुर दौरा इस बात को और प्रकट करता है कि वे RSS के साथ अपने रिश्ते को और भी मजबूत करनेका प्रयास कर रहे हैं।ग्लोरीफिकेशन ऑफ RSS और दीक्षाभूमि की संभावना 30 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी के नागपुर दौरे के दौरान उनके RSS के हेडगेवार स्मृति भवन और दीक्षाभूमि जाने की संभावना भी जताई जा रही है।हेडगेवार स्मृति भवन RSS के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की समाधि स्थल है, जो संघ के इतिहास और उसके विचारों का एक अहम केंद्र है। इस स्थानपर प्रधानमंत्री मोदी का आना संघ के प्रति उनके समर्थन का स्पष्ट संकेत होगा। इसके साथ ही, दीक्षाभूमि भी एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां पर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।हालांकि यह सुनिश्चित नहीं है कि पीएम मोदी इस दिन इन दोनों स्थानों पर जाएंगे या नहीं, लेकिन यह संभावना जताई जा रही है कि उनका इस तरहके ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक स्थलों पर जाना इस यात्रा को और भी महत्वपूर्ण बना देगा। यह स्थल भारतीय राजनीति और समाज के लिएऐतिहासिक महत्व रखते हैं, और प्रधानमंत्री मोदी का इन जगहों पर जाना उनके राजनीतिक दृष्टिकोण और संघ के प्रति सम्मान को दर्शाता है। RSS की स्थापना का 100वां साल: महत्व और सामाजिक प्रभावराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को हुई थी, और 2025 में इसके 100 साल पूरे हो जाएंगे। RSS का यह शताब्दी वर्ष देशके लिए एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसने भारतीय समाज और राजनीति में गहरे प्रभाव डाले हैं। RSS की स्थापना डॉ. केशव बलिरामहेडगेवार द्वारा की गई थी, और इसका उद्देश्य भारतीय समाज को एकजुट करना और उसे सामूहिक रूप से मजबूत बनाना था। RSS एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन के रूप में अपनी पहचान बना चुका है, और इसका प्रभाव भारतीय राजनीति में गहरे तक समाहित है। भारतीय जनतापार्टी (BJP) से जुड़े कई बड़े नेता, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत संघ से ही की थी। इस संगठनका उद्देश्य हमेशा से समाज के विभिन्न हिस्सों को एकजुट करना रहा है, और यही कारण है कि आज भी इसका प्रभाव देशभर में फैला हुआ है। RSS का यह 100वां साल भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। RSS और BJP के रिश्ते: एक राजनीतिक दृष्टिकोणRSS और BJP के बीच के रिश्ते को लेकर हमेशा ही राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा चर्चा की जाती रही है। माना जाता है कि RSS की विचारधारा सेप्रेरित होकर BJP अपने राजनीतिक कदम उठाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, BJP ने संघ के आदर्शों को स्वीकार किया है और पार्टी केकई अहम नेताओं का संघ से गहरा संबंध रहा है। मोदी सरकार की कई नीतियों में संघ के विचारों का समावेश देखा गया है, और यही कारण है कि मोदी का नागपुर दौरा इस बार विशेष महत्व रखताहै। जब प्रधानमंत्री मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत एक साथ मंच पर दिखाई देंगे, तो यह दोनों के बीच मजबूत रिश्तों का संकेत होगा और देशकी राजनीति में संघ का प्रभाव और भी प्रकट होगा। प्रधानमंत्री मोदी का नागपुर दौरा और संघ के साथ रिश्तेप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 30 मार्च को नागपुर दौरा भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक अहम अवसर होगा। इस दौरे के दौरान उनका RSS केप्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच पर आना, और संघ से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होना, यह दर्शाता है कि मोदी और संघ के रिश्ते मजबूत हैं।संघ का 100वां साल भी इस दौरे को और भी ऐतिहासिक बना रहा है।यह दौरा भारतीय राजनीति में नए बदलाव और संघ की भूमिका को लेकर भी नई परिभाषाएं स्थापित कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी का संघ केविचारों का समर्थन करना, और मोहन भागवत के साथ मंच साझा करना, भविष्य में भाजपा और संघ के रिश्तों को और मजबूती देने का संकेत है।

धनश्री वर्मा और युजवेंद्र चहल का तलाक: एक प्रेम कहानी का अंत

ग्लैमरस दुनिया में प्यार और रिश्तों की कहानी अक्सर तेजी से बदलती रहती है। सोशल मीडिया पर अपने प्यार का इज़हार करने वाले सितारे कबअपनी राहें अलग कर लेते हैं, इसका कोई भरोसा नहीं होता। शादी, प्यार और फिर तलाक की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। सोशल मीडिया परअपने रिश्ते का प्रदर्शन करने वाले कई सेलेब्रिटी अब अपने निजी जीवन में बदलाव का सामना कर रहे हैं। इस कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है – भारतीय क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और डांसर-कोरियोग्राफर धनश्री वर्मा का। इन दोनों की शादी एक ग्लैमरस प्रेम कहानी के तौर पर सुर्खियों में रही, लेकिन अब उनका रिश्ता आधिकारिक रूप से खत्म हो चुका है। तलाक का ऐलान: पांच साल के भीतर रिश्ते का अंतयुजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा के तलाक का मामला हाल ही में सामने आया। दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया है। यह शादीमहज पांच साल चल पाई। शादी के बाद दोनों के बीच लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट, रील्स और वीडियो वायरल होते रहते थे, जो दर्शकों कोउनकी प्रेम कहानी का हिस्सा महसूस कराते थे। हर कोई उनके रिश्ते से प्रेरित था और वे दोनों ही इस पर गर्व महसूस करते थे। लेकिन अब उनका यहरिश्ता समाप्त हो चुका है। तलाक के बाद, युजवेंद्र चहल ने धनश्री वर्मा को 4.75 करोड़ रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने की शर्त पर सहमति जताई, जिसमें से 2.37 करोड़रुपये पहले ही चुकाए जा चुके हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि उनके बीच अब सब कुछ खत्म हो चुका है और दोनों अपने-अपने जीवन में आगे बढ़ने केलिए तैयार हैं।सोशल मीडिया पर खुली शादी की बात, फिर अलग होने का फैसलायुजवेंद्र और धनश्री की शादी के वक्त दोनों को सोशल मीडिया पर बुरी तरह ट्रोल किया गया था, लेकिन उन्होंने इन सभी आलोचनाओं को नकारते हुएएक-दूसरे से प्यार किया और शादी की। हालांकि, कुछ सालों बाद ही इस रिश्ते में दरारें आ गईं। दोनों के बीच अलग-अलग रहने की चर्चा पिछलेसाल से शुरू हो गई थी, और अब यह आधिकारिक रूप से स्पष्ट हो गया है कि उनकी राहें अलग हो चुकी हैं। बीते कुछ समय से, युजवेंद्र चहल को एक मिस्ट्री गर्ल के साथ स्पॉट किया गया था, जिनका नाम आरजे महविश था। इस दौरान दोनों की जोड़ी कोदेखकर कई लोगों ने यह कयास लगाए थे कि वे डेटिंग कर रहे हैं। हालांकि, यह सारी घटनाएं उनके तलाक से पहले हुई थीं। अब यह स्थिति स्पष्ट होचुकी है कि युजवेंद्र और धनश्री का रिश्ता अब खत्म हो चुका है। प्रेम कहानी की शुरुआत: एक डांस क्लास से रिश्ते की शुरुआतयुजवेंद्र और धनश्री की प्रेम कहानी की शुरुआत कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान हुई थी। 2019 में दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के जरिएहुई थी। धनश्री वर्मा, जो एक प्रशिक्षित डॉक्टर थीं, बाद में डांस की ओर रुख कर कोरियोग्राफर बन गईं। अपनी डांस क्लासों और डांस वीडियो कोसोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए वह वायरल हो गईं और लोकप्रिय हो गईं। युजवेंद्र चहल की नजर भी धनश्री के सोशल मीडिया पोस्ट पर पड़ी, और उन्होंने धनश्री वर्मा को अपने डांस ट्रेनिंग के लिए अप्रोच किया। दोनों के बीचएक शिक्षक-शिष्य का रिश्ता शुरू हुआ, लेकिन जल्दी ही यह रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़कर प्यार में बदल गया। दो महीने की डांस क्लास के दौरान हीयुजवेंद्र और धनश्री के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं, और दोनों ने एक-दूसरे से सच्चा प्यार कर लिया। शादी का प्रस्ताव और बाद की खुशहाल जिंदगीडांस क्लास खत्म होने के बाद युजवेंद्र ने धनश्री से शादी के लिए प्रस्ताव दिया और उन्होंने डेटिंग शुरू कर दी। दोनों के रिश्ते को उनके परिवार की भीमंजूरी मिली, और आखिरकार 11 दिसंबर 2020 को दोनों ने गुड़गांव में एक निजी समारोह में शादी की। शादी के बाद दोनों ने खुशी-खुशी अपनाजीवन बिताया। युजवेंद्र चहल ने धनश्री को अपने खेल के दौरान हमेशा सपोर्ट किया, जबकि धनश्री भी युजवेंद्र के लिए हर कदम पर खड़ी रही। उनकी शादी के बाददोनों को अक्सर एक-दूसरे का साथ देते हुए देखा गया। धनश्री युजवेंद्र को सपोर्ट करती थीं और युजवेंद्र ने भी बीते साल ‘झलक दिखला जा’ मेंधनश्री को समर्थन देने के लिए हिस्सा लिया। लेकिन आखिरकार रिश्ते में दरार आईकई सालों तक एक-दूसरे का साथ देने के बावजूद, युजवेंद्र और धनश्री का रिश्ता खत्म हो गया। यह घटना उन सभी लोगों के लिए चौंकाने वाली थी, जो उन्हें एक आदर्श जोड़ी के रूप में देखते थे। हालांकि, इस रिश्ते का अंत शादी के कुछ सालों बाद हुआ, जिससे यह साबित होता है कि हर प्रेमकहानी हमेशा खुशियों के साथ खत्म नहीं होती। कुल मिलाकर: रिश्ते का अंत और नए अध्याय की शुरुआतधनश्री वर्मा और युजवेंद्र चहल का तलाक एक और उदाहरण है कि ग्लैमरस दुनिया में प्यार और रिश्ते कितने अस्थिर हो सकते हैं। दोनों ने शादी कीथी, एक-दूसरे से प्यार किया और सार्वजनिक रूप से अपने रिश्ते को साझा किया, लेकिन अब उनका यह रिश्ता खत्म हो चुका है। तलाक का फैसलाउनके बीच की असहमति और रिश्ते की जटिलताओं को दर्शाता है। हालांकि, दोनों के जीवन में अब नए अध्याय की शुरुआत हो चुकी है। युजवेंद्र और धनश्री ने अपने-अपने रास्तों पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया है। यहउनकी निजी जीवन का हिस्सा है, और जैसे वे अपने रिश्ते के अंत के बाद अपने-अपने रास्तों पर आगे बढ़ेंगे, वैसे ही उनके फैंस भी उनके फैसले कासम्मान करेंगे। यह कहानी एक संकेत है कि चाहे आप जितने भी बड़े स्टार क्यों न हों, रिश्तों की जटिलताएं और भावनाएं कभी-कभी एक कदम पीछे ले जाती हैं। अबदोनों अपने नए जीवन की ओर बढ़ रहे हैं, और देखना यह होगा कि यह नया अध्याय उनके लिए किस दिशा में जाता है।

नागपुर हिंसा: सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने वालों के खिलाफ एक्शन, देशद्रोह का मामला दर्ज

नागपुर में हाल ही में दो समुदायों के बीच हुई हिंसा के बाद से सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट और अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ पुलिस नेसख्त कार्रवाई की है। पुलिस ने साइबर सेल के जरिए उन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है जिन्होंने सोशल मीडिया पर हिंसा को बढ़ावा देनेवाले पोस्ट किए। इस एफआईआर में देशद्रोह की धाराएं भी लगाई गई हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पुलिस अब सोशल मीडिया पर हिंसा फैलानेवाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। नागपुर पुलिस के साइबर सेल के डीसीपी, लोहित मतानी ने इस मामले पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस एफआईआर मेंकुल 6 लोगों को आरोपी बनाया गया है, जिनमें एक आरोपी फहीम खान भी है। इन आरोपियों पर सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसा को बढ़ावा देनेऔर भड़काऊ सामग्री साझा करने का आरोप है। इसके अलावा, पुलिस ने उन लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की है जिन्होंने सोशल मीडिया पर’सर तन से जुदा’ जैसे उकसाने वाले नारे लगाए थे और पुलिस पर पत्थरबाजी के वीडियो को ग्लोरिफाई किया था। इस गंभीर मामले में पुलिस नेदेशद्रोह की धाराओं के तहत कार्रवाई की है, जिससे यह समझा जा सकता है कि सुरक्षा और शांति की स्थापना में सोशल मीडिया की भूमिका भीमहत्वपूर्ण होती है। सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने वालों के खिलाफ एफआईआरलोहित मतानी ने कहा कि पुलिस ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ और हिंसक पोस्ट करने वाले लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं, जो विशेष रूप सेनागपुर में हुई हिंसा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से साझा किए गए थे। पुलिस द्वारा एफआईआर नंबर 30/25 में देशद्रोह का चार्ज लगाया गया है, क्योंकि इनमें से कुछ पोस्टों में न केवल हिंसा को बढ़ावा दिया गया था, बल्कि लोगों को उकसाने के लिए ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे भी लगाए गएथे। इस मामले में आरोपियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से दंगे और आर्म अग्रेशन को बढ़ावा देने की कोशिश की थी। डीसीपी लोहित मतानी ने यह भी बताया कि इस एफआईआर में कुल 6 आरोपी हैं, जिनमें से एक प्रमुख आरोपी फहीम खान है। उन्होंने आगे कहा किफहीम खान की कस्टडी की मांग पुलिस कोर्ट से प्रोडक्शन वारंट के जरिए करेगी। इसके अलावा, पुलिस ने यह भी खुलासा किया कि एक अन्यआरोपी के सोशल मीडिया प्रोफाइल पर बांग्लादेश का पता लिखा हुआ था, हालांकि इसकी सत्यता की जांच की जा रही है। अलग–अलग मामलों में दर्ज की गई एफआईआरलोहित मतानी ने यह भी बताया कि पुलिस ने विभिन्न मामलों में अलग-अलग एफआईआर दर्ज की हैं। इन मामलों में एक एफआईआर उस व्यक्ति केखिलाफ है जिसने सोशल मीडिया पर हिंसा के वीडियो को मॉडिफाई करके सर्कुलेट किया था। एक अन्य एफआईआर उन लोगों के खिलाफ हैजिन्होंने हिंसा के दौरान किए गए वीडियो को फैलाया और उसे बढ़ावा दिया। यह स्पष्ट है कि पुलिस ने सोशल मीडिया के जरिए हिंसा को भड़काने और लोगों को उकसाने के मामले में सख्त कार्रवाई की है। इस मामले में पुलिसका कहना है कि उनकी प्राथमिकता केवल सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाने वालों को गिरफ्तार करना नहीं है, बल्कि ऐसे आरोपियों केखिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करना भी है जो समाज में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। बांग्लादेशी अकाउंट से हिंसा फैलाने की साजिशनागपुर पुलिस ने यह भी बताया कि जांच के दौरान उन्हें बांग्लादेश से संचालित होने वाले एक फेसबुक अकाउंट का पता चला, जिसने नागपुर में हिंसाफैलाने की धमकी दी थी। इस अकाउंट द्वारा किए गए खतरनाक पोस्ट में यह कहा गया था कि, “सोमवार के दंगे तो केवल एक छोटी घटना थे, भविष्य में इससे भी बड़े दंगे होंगे।” जांच के दौरान यह पाया गया कि यह फेसबुक अकाउंट बांग्लादेश से संचालित हो रहा था और उस पर किए गए पोस्ट को बांग्लादेश से ही शेयरकिया गया था। इस प्रकार के पोस्ट ने न केवल हिंसा को बढ़ावा दिया बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद को भी जन्म दिया। पुलिस इस मामलेकी गंभीरता से जांच कर रही है और यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि ऐसे खतरनाक पोस्टों को फैलाने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार कियाजाए और उन्हें कड़ी सजा दी जाए। नागपुर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाईनागपुर पुलिस की साइबर सेल ने इस पूरे मामले में अब तक कुल 10 एफआईआर दर्ज की हैं। पहले 6 एफआईआर दर्ज की गई थीं, लेकिन अबपुलिस ने कुल 10 एफआईआर दर्ज की हैं, जिनमें ताजा 4 मामले सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने, भड़काने, और उकसाने केमामलों से संबंधित हैं। यह स्थिति दिखाती है कि पुलिस ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और लगातार उन लोगों पर कार्रवाई कर रही है जोसोशल मीडिया के जरिए नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। पुलिस ने यह भी बताया कि वे अब ऐसे सभी अकाउंट्स और यूजर्स की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं जो इन भड़काऊ पोस्टों को साझा कर रहेहैं और हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके लिए पुलिस ने एक विशेष टीम बनाई है जो इन अकाउंट्स का पता लगा रही है और उनकी गतिविधियों कीजांच कर रही है। पुलिस का मानना है कि अगर इस प्रकार के अकाउंट्स को समय रहते नहीं पकड़ा गया, तो यह पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी होसकती है। साइबर सेल की भूमिका और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी यह घटनाक्रम यह साबित करता है कि सोशल मीडिया का उपयोग अब केवल व्यक्तिगत बातचीत तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह एकशक्तिशाली मंच बन गया है जिसे लोग अपने विचार व्यक्त करने, समुदायों को जोड़ने, और यहां तक कि राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों कोबढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, इस प्लेटफॉर्म के कुछ नकरात्मक पहलू भी हैं, जैसे कि भड़काऊ और हिंसक सामग्री का प्रसार, जोपूरे समाज में तनाव पैदा कर सकता है। इसलिए पुलिस और सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस प्लेटफॉर्म का सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करें और सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्रीके प्रसार को रोकने के लिए कड़ी निगरानी रखें। साइबर सेल की भूमिका भी इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह केवल उन लोगों के खिलाफकार्रवाई करने का कार्य नहीं करता जो भड़काऊ पोस्ट करते हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि सोशल मीडिया का उपयोग शांतिपूर्ण तरीके से कियाजाए। नागपुर में हुई हिंसा और सोशल मीडिया पर फैली भड़काऊ पोस्टों के बाद, पुलिस ने जो त्वरित कार्रवाई की है, वह यह दर्शाता है कि सरकार औरसुरक्षा बल समाज में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सोशल मीडिया का सही उपयोग न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह समाज में सुरक्षा और समरसता को भी सुनिश्चित करता है। पुलिस की यह कार्रवाई एक संदेश है कि समाज में हिंसा फैलाने वाले तत्वों कोकिसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा और ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो देश की शांति और अखंडता के खिलाफ काम कर रहेहैं।

“आक्रांताओं का महिमामंडन करना देशद्रोह”, औरंगजेब विवाद के बीच सीएम योगी की दो टूक

देश में इस समय मुग़ल शासक औरंगजेब को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र से शुरू हुआ यह विवाद अब विभिन्न हिस्सों में फैल चुका है, औरइस पर कई प्रतिक्रियाएं आई हैं। इस विवाद के बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक महत्वपूर्ण और सख्त बयान दिया है। उनकाकहना है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत पर हमला करने और देश के लोगों का अपमान करने वाले आक्रांताओं का महिमामंडन करना देशद्रोह केसमान है। सीएम योगी ने बहराइच के मिहींपुरवा (मोतीपुर) में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यह बयान दिया। इस बयान ने एक नई बहस कोजन्म दिया है, जिसमें एक ओर इतिहास के पुनः मूल्यांकन की मांग उठ रही है, वहीं दूसरी ओर देश की धार्मिक और सांस्कृतिक धारा को ध्यान में रखतेहुए कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सीएम योगी का बयान: आक्रांताओं का महिमामंडन देशद्रोहसीएम योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को बहराइच के मिहींपुरवा (मोतीपुर) में एक कार्यक्रम के दौरान आक्रांताओं के महिमामंडन को लेकर अपनी चिंताजताई। उन्होंने कहा, “किसी भी आक्रांता का महिमामंडन करना, देशद्रोह की नींव को पुख्ता करना है। स्वतंत्र भारत किसी भी ऐसे देशद्रोही को स्वीकारनहीं कर सकता, जो हमारे महापुरुषों का अपमान करता हो और हमारे देश की सनातन संस्कृति पर आक्रमण करता हो।” योगी आदित्यनाथ ने यह भीकहा कि भारत आज के समय में अपने इतिहास, संस्कृति और आस्थाओं का अपमान करने वाले आक्रांताओं के महिमामंडन को कतई स्वीकार नहीं करसकता। उनके अनुसार, ये आक्रांता भारत की ऐतिहासिक पहचान को तोड़ने का काम करते थे और भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश करतेथे। उनके इस बयान में विशेष रूप से औरंगजेब जैसे शासकों का उल्लेख किया गया, जिनका शासनकाल भारतीय इतिहास में विवादास्पद रहा है। सीएमयोगी का कहना था कि औरंगजेब ने भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं पर हमले किए थे, और उनका महिमामंडन करना देश के हित में नहीं है।योगी ने यह भी कहा कि अगर कोई आज भी इन आक्रांताओं की तारीफ करता है, तो यह स्वतंत्र भारत के लिए एक गंभीर खतरा हो सकता है। महाराज सुहेलदेव का उल्लेखअपने संबोधन में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय इतिहास के एक महान नायक, महाराज सुहेलदेव का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा किमहाराज सुहेलदेव के पराक्रम के कारण 150 वर्षों तक कोई विदेशी आक्रांता भारत पर हमला करने का साहस नहीं कर सका। योगी आदित्यनाथ नेयह उदाहरण दिया कि कैसे भारत के इतिहास में कुछ नायक थे जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ युद्ध किया और भारतीय संस्कृति की रक्षा की।यह बयान एक तरह से यह संदेश देता है कि हमें अपने ऐतिहासिक नायकों और उनकी उपलब्धियों को सम्मान देना चाहिए, न कि उन आक्रांताओं कोमहिमामंडित करना चाहिए जिन्होंने भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं पर हमले किए थे। औरंगजेब पर विवाद की शुरुआतऔरंगजेब के महिमामंडन से जुड़ा विवाद महाराष्ट्र से शुरू हुआ था। दरअसल, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के विधायक अबू आजमी नेऔरंगजेब को लेकर एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने औरंगजेब को क्रूर शासक मानने से इनकार किया था। अबू आजमी ने कहा था कि औरंगजेबकोई क्रूर शासक नहीं था, बल्कि उसके शासनकाल में भारत की जीडीपी 24 प्रतिशत थी और भारत सोने की चिड़ीया था। उन्होंने यह भी कहा था किइतिहास में औरंगजेब के बारे में कई गलत बातें कही गई हैं और उसे एक क्रूर शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अबू आजमी का यह बयान राजनीतिक विवाद का कारण बन गया। उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ और उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबित कर दियागया। इसके बाद औरंगजेब को लेकर और भी विवाद उठने लगे। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में स्थित औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग कीगई। इसके बाद नागपुर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ताओं ने औरंगजेब के पुतले का दहन किया। नागपुर में हिंसा और सांप्रदायिक तनावनागपुर में औरंगजेब के पुतले के दहन के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल गया। अफवाहें फैलने लगीं कि प्रदर्शन के दौरान एक विशेष समुदाय के धर्म ग्रंथको जलाया गया है, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई। 17 मार्च की रात को नागपुर में हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक पक्ष के लोगों ने जमकर तोड़फोड़की और आगजनी की। कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया और बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस हिंसा को रोकने के लिएनागपुर के कई इलाकों में कर्फ्यू लागू करना पड़ा। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए त्वरित कार्रवाई की और कई आरोपियों को गिरफ्तार भीकिया। भारत में आक्रांताओं के महिमामंडन पर बहसयह विवाद न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में गहराता जा रहा है। आक्रांताओं का महिमामंडन और उनके प्रति सम्मान की भावना कायह मुद्दा भारतीय समाज में एक गहरी बहस का विषय बन चुका है। योगी आदित्यनाथ का बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि भारतीय समाजको अपनी संस्कृति, इतिहास और आस्थाओं की रक्षा करनी चाहिए और उन आक्रांताओं का महिमामंडन नहीं करना चाहिए जिन्होंने भारतीय सभ्यताऔर संस्कृति को नुकसान पहुंचाया। भारतीय इतिहास में औरंगजेब जैसे शासक रहे हैं, जिनकी नीतियों को लेकर आज भी विवाद है। औरंगजेब के शासनकाल में हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, जजिया कर लगाया गया और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए गए थे। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब के शासनकाल मेंकई सकारात्मक पहलू भी थे, जैसे उसने भारतीय समाज के लिए कई सुधार किए थे। लेकिन इन सुधारों की छाया में उसके द्वारा किए गए धार्मिकउत्पीड़न की घटनाएं अब भी चर्चा का विषय हैं। निष्कर्षसीएम योगी आदित्यनाथ का बयान औरंगजेब जैसे आक्रांताओं के महिमामंडन पर एक सख्त प्रतिक्रिया है। उनका कहना है कि स्वतंत्र भारत में ऐसेआक्रांताओं का महिमामंडन देशद्रोह के बराबर है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस बयान ने न केवल इतिहास के पुनः मूल्यांकन की बातउठाई है, बल्कि यह भी सवाल उठाया है कि भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक धारा और आस्थाओं की रक्षा कैसे करनी चाहिए। औरंगजेब जैसे विवादास्पद ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के महिमामंडन और उनके प्रति सम्मान की भावना ने एक नई बहस को जन्म दिया है, जो भारतीयसमाज के विभिन्न वर्गों के बीच सांप्रदायिक और ऐतिहासिक ध्रुवीकरण को उजागर करता है। यह स्थिति भारतीय राजनीति और समाज में ऐतिहासिकनायकत्व और उनके योगदान को समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। इस विवाद के जरिए यह संदेश मिलता है किसमाज को अपनी सांस्कृतिक धारा को सम्मान देना चाहिए, और जो लोग इसकी अनदेखी करते हैं, उनका महिमामंडन नहीं करना चाहिए।

‘दिल्ली के विधायकों की नहीं सुनते अधिकारी’, स्पीकर ने मुख्य सचिव से की शिकायत, AAP ने कसा तंज

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली के मुख्य सचिव धर्मेंद्र को पत्र लिखकर अधिकारियों की लापरवाही और अनदेखी को लेकर गंभीरचिंता जताई है। उन्होंने मुख्य सचिव को सूचित किया कि दिल्ली के अधिकारी विधानसभा के विधायकों के पत्रों, फोन कॉल्स, या संदेशों का जवाबनहीं देते हैं, जो सरकारी कामकाजी प्रणाली की अव्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डालने वाली स्थिति को दर्शाता है। गुप्ता ने मुख्य सचिवसे यह भी अपील की कि वे प्रशासनिक सचिवों, दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों, दिल्ली पुलिस, डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) समेत सभीसंबंधित अधिकारियों को इस संदर्भ में सख्त निर्देश दें और उन्हें जागरूक करें। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि विधायकों की अनदेखी और उनके साथ संवादन करने की यह स्थिति न केवल अधिकारियों की नकारात्मक कार्यशैली को प्रदर्शित करती है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों कीभूमिका को कमजोर करने का काम भी करती है। स्पीकर की चेतावनी और प्रशासनिक तंत्र पर दबावविजेंद्र गुप्ता ने मुख्य सचिव को लिखे गए अपने पत्र में प्रशासनिक अधिकारियों को चेतावनी दी है। उन्होंने यह कहा कि कई मामलों में विधायकों नेअधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। गुप्ता ने लिखा कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें अधिकारियोंकी लापरवाही और जनप्रतिनिधियों के अधिकारों की अवहेलना हो रही है। उनका मानना है कि अगर यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा, तो यहलोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग और भारत सरकार केकार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा पहले जारी किए गए निर्देशों को फिर से दोहराए जाने की जरूरत है।स्पीकर का यह पत्र दिल्ली में प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है और यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा विधायकोंऔर मंत्री स्तर के प्रतिनिधियों के प्रति यह असंवेदनशील रवैया किस हद तक बढ़ चुका है। इससे यह साफ हो जाता है कि लोकतंत्र में प्रशासनिकअधिकारियों का एक अहम कर्तव्य होता है, जो वे जनप्रतिनिधियों के साथ अपने संबंधों को सुनिश्चित करते हुए, उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों औरशिकायतों का जवाब देने की जिम्मेदारी निभाएं। आम आदमी पार्टी का प्रतिक्रिया और बीजेपी पर तंजइस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने बीजेपी पर कटाक्ष कियाऔर आरोप लगाया कि दिल्ली के अधिकारियों को 10 साल तक यह सिखाया गया था कि वे मंत्रियों और विधायकों की बातों को नजरअंदाज करें।उन्होंने कहा, “बीजेपी के शासन में दिल्ली के अफसरों को यही संदेश दिया गया था कि विधायकों और मंत्रियों के फोन कॉल्स न उठाएं, चिट्ठियों काजवाब न दें, और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं को इस तरह से नकारा किया जाए।” उनका यह भी कहना था कि अब जब बीजेपी की सरकारदिल्ली में बनी है, तो उन्हें अपनी ही नीतियों के परिणाम नजर आने लगे हैं।सौरभ भारद्वाज ने तंज करते हुए यह कहा कि जिन अधिकारियों को पहले बीजेपी अपनी तरफ से बचाती थी, आज वही अधिकारी अपनी मनमानी करनेमें व्यस्त हैं। इस स्थिति में बीजेपी अब उन्हीं अधिकारियों से कर्तव्य की उम्मीद कर रही है, जिन्हें वे पहले प्रोत्साहित कर रहे थे। सौरभ ने आगे कहा कि”बीजेपी अब यह समझ रही है कि लोकतंत्र को कमजोर करने से न केवल सरकार की कार्यशैली प्रभावित होती है, बल्कि जनता का भी नुकसान होताहै।” यहां पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों का यह रवैया लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनता के बीच विश्वास कोखत्म कर सकता है? क्या विधायकों के साथ यह उपेक्षापूर्ण व्यवहार लोकतंत्र की मूलभूत धारा को कमजोर कर सकता है?दिल्ली की नौकरशाही और पिछला इतिहास दिल्ली में पिछले कुछ सालों में प्रशासनिक तंत्र और आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के बीच संघर्ष की कई कहानियां रही हैं। AAP के शासन में, जहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने दिल्ली की जनता के हितों के लिए कई फैसले लिए, वहीं दिल्ली के नौकरशाही तंत्र औरअधिकारियों के साथ अक्सर मतभेद सामने आए थे। एक ओर जहां AAP सरकार ने जनता के कल्याण के लिए योजनाएं बनाई, वहीं दूसरी ओरअधिकारियों द्वारा उन योजनाओं को लागू करने में ढिलाई और अड़चनें उत्पन्न की जाती रहीं। यह सब प्रशासनिक तंत्र के भीतर गहरे असंतोष औरसहयोग की कमी का परिणाम था। दिल्ली की नौकरशाही को आमतौर पर पिछली AAP सरकार के साथ मतभेद की स्थिति में देखा गया था। यह स्थिति न केवल प्रशासनिकअधिकारियों के व्यवहार से संबंधित थी, बल्कि यह भी बताती थी कि कैसे राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र में आपसी विश्वास की कमी से कामकाजीप्रक्रिया पर असर पड़ता है। अब जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 48 सीटें जीत ली हैं और दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनगई है, इस बदलाव के साथ अधिकारियों के रवैये में भी बदलाव देखा जा रहा है। बीजेपी ने दिल्ली के अधिकारियों की मनमानी पर सवाल उठानाशुरू कर दिया है और विधायकों के साथ संवाद की प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया है। दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष द्वारा मुख्य सचिव को लिखा गया पत्र न केवल अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी बताता हैकि जब प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक प्रतिनिधि एक-दूसरे के साथ उचित संवाद नहीं करते, तो लोकतंत्र की प्रक्रिया कमजोर हो सकती है।विधायकों और मंत्रियों के अधिकारों की अवहेलना केवल प्रशासनिक तंत्र की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों की भी अवहेलनाहै। इस सबके बीच, आम आदमी पार्टी और बीजेपी की प्रतिक्रियाएं इस मुद्दे को और भी महत्वपूर्ण बना देती हैं, क्योंकि यह स्थिति भविष्य में नीतिनिर्माण और प्रशासनिक सुधार की दिशा में गंभीर बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित करती है।