
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा हिंदी थोपे जाने के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई को समर्थन दिए जाने के एक दिन बाद, शिवसेना (यूबीटी) ने स्पष्ट किया कि उद्धव और राज ठाकरे का विरोध हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं बल्कि नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरीभाषा के रूप में अनिवार्य किए जाने के खिलाफ था।
संजय राउत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी सफाई
शिवसेना-यूबीटी के प्रवक्ता संजय राउत ने प्रेस वार्ता में कहा, “दक्षिण भारत के राज्य हिंदी थोपे जाने के खिलाफ वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिनउनका रुख यह है कि वे हिंदी न बोलेंगे और न किसी को बोलने देंगे। महाराष्ट्र में हमारा रुख इससे अलग है। हम हिंदी बोलते हैं, हिंदी फिल्में औरथिएटर देखते हैं। हमारी आपत्ति केवल यह है कि प्राथमिक शिक्षा में हिंदी थोपना स्वीकार्य नहीं है।”
त्रि-भाषा नीति के खिलाफ दिखाया विरोध
उद्धव और राज ठाकरे ने नई शिक्षा नीति में शामिल त्रि-भाषा फॉर्मूले का विरोध करते हुए इसे मराठी भाषियों के अधिकारों के खिलाफ बताया था।इस नीति के तहत महाराष्ट्र के प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य किया जा रहा था। इस फैसले के खिलाफ दोनों नेताओं नेमुंबई में बड़े प्रदर्शन की चेतावनी दी थी।
सरकार ने की नीति की समीक्षा, समिति का गठन
महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में, त्रि-भाषा नीति लागू करने से जुड़ी अधिसूचनाएं रद्द कर दीं और इस परपुनर्विचार के लिए शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। ठाकरे बंधुओं ने इसे अपनी और मराठी अस्मिता की जीतबताया और इस उपलब्धि का जश्न 5 जून को संयुक्त रैली के जरिए मनाया।
स्टालिन को समर्थन, लेकिन सीमित दायरे में
संजय राउत ने यह भी स्पष्ट किया कि उद्धव-राज की लड़ाई हिंदी बोलने या हिंदी संस्कृति के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा, “एमके स्टालिन ने हमेंबधाई दी और कहा कि वह इससे प्रेरणा लेंगे। हमने कभी किसी को हिंदी बोलने से नहीं रोका, लेकिन प्राथमिक स्तर पर हिंदी थोपने का विरोध जरूरकिया है।”
स्टालिन ने महाराष्ट्र के आंदोलन को बताया प्रेरणास्रोत
उद्धव और राज ठाकरे के लंबे समय बाद एक मंच पर आने के कुछ घंटों बाद, एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर महाराष्ट्र मेंहिंदी थोपे जाने के खिलाफ विरोध का समर्थन किया। उन्होंने लिखा,
“द्रविड़ आंदोलन द्वारा शुरू की गई भाषा अधिकारों की लड़ाई अब सीमाओं से बाहर निकलकर महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। मुंबई में भाई उद्धव ठाकरे केनेतृत्व में हुई विजय रैली और उसमें दिए गए प्रेरणादायक भाषणों ने हमें उत्साह से भर दिया है।”