सोमनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग पर तलवार के घाव तो हैं, परंतु वह खंडित नहीं हुआ है। यदि प्रतिष्ठित शिवलिंग का मूल स्वरूप खंडित हो जाए, तोउसकी पूजा तो की जा सकती है, लेकिन उसे उसी रूप में पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। यह शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है, यानी यह स्वयं प्रकटहुआ है, जिसे मानव हस्तक्षेप से पुनः निर्मित नहीं किया जा सकता।
ट्रस्ट का रुख: कोई प्रमाण नहीं, कोई आधिकारिक पत्राचार नहीं
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी पी. के. लाहिड़ी ने स्पष्ट किया कि उन्हें कहीं भी यह उल्लेख नहीं मिला कि शिवलिंग का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।उन्होंने यह भी कहा कि श्री श्री रविशंकर द्वारा प्राप्त कथित शिवलिंग के टुकड़े वास्तव में मूल शिवलिंग के हैं या नहीं, इसका कोई प्रमाण नहीं है।उन्होंने यह भी जोड़ा कि श्री श्री रविशंकर ने न तो ट्रस्ट से कोई संपर्क किया है, न ही कोई औपचारिक जानकारी साझा की है। लाहिड़ी ने चेताया कियदि ऐसे दावे बिना किसी साक्ष्य के किए जाते हैं, तो यह जनता को भ्रमित करने जैसा है।
श्री श्री रविशंकर का दावा: इतिहास की धरोहर अब प्रकाश में
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का कहना है कि महमूद गजनवी ने 1026 ईस्वी में अपने अंतिम आक्रमण के दौरान सोमनाथ शिवलिंग को खंडितकर दिया था। उनका दावा है कि शिवलिंग उस समय हवा में स्थित था, न कि भूमि पर। इस घटना के पश्चात कुछ अग्निहोत्री ब्राह्मणों ने खंडितशिवलिंग के पवित्र अंशों को छिपा लिया और उन्हें दक्षिण भारत ले गए।
वर्ष 1924 में, ये अंश संत प्रणवेन्द्र सरस्वती द्वारा कांचीपुरम के तत्कालीन शंकराचार्य चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती को सौंपे गए। उन्होंने निर्देश दिया कि यहतब तक गुप्त रखें जाएं जब तक कि राम मंदिर का निर्माण न हो जाए। आगे चलकर ये अंश पंडित सीताराम शास्त्री के संरक्षण में रहे और बाद मेंकांचीपुरम के वर्तमान शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती के सुझाव पर श्री श्री रविशंकर को सौंप दिए गए।
अंशों की पुनर्स्थापना की योजना
श्री श्री रविशंकर का कहना है कि इन अंशों को देशभर के धार्मिक स्थलों से होती हुई एक शोभायात्रा के माध्यम से सोमनाथ लाया जाएगा। इसकेउपरांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में पुनर्स्थापना की तिथि निर्धारित की जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल ऐतिहासिक वस्तुकी पुनर्स्थापना नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।
चुंबकीय रहस्य: शिवलिंग पृथ्वी से परे?
रविशंकर ने यह दावा भी किया कि सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग असाधारण है क्योंकि इसकी चुंबकीय शक्ति सामान्य शिवलिंगों की तुलना में कहींअधिक, लगभग 140 गज तक है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि इसमें मात्र 1 प्रतिशत लोहा है और संभवतः यह तत्व पृथ्वी से संबंधित नहीं है।
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति: एक दिव्य प्रकट
प्रसिद्ध कथावाचक गिरिबापू के अनुसार, ‘ज्योति’ का अर्थ है प्रकाश और ‘ज्योतिर्लिंग’ वह है जो इस प्रकाश से भी परे हो। उन्होंने कहा कि जब ब्रह्माऔर विष्णु का अहंकार टकराया, तब भगवान शिव ने अनंत ज्योति के रूप में प्रकट होकर उन्हें उनका स्थान दिखाया। इस दिव्य प्रकाश से जो शिवलिंगप्रकट हुआ, वही ‘ज्योतिर्लिंग’ कहलाता है। शिवपुराण के अनुसार, कुल 100 करोड़ ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है, जिनमें से 12 को प्रमुख माना गया है।