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राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को रोके रखने को असंवैधानिक और मनमाना करार दिया है। अदालत ने साफकहा कि यह संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल नेविधेयकों को लेकर सद्भावपूर्ण और संवैधानिक तरीके से कार्य नहीं किया।

राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव
तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा था। नवंबर 2023 में राज्यपाल को 12 विधेयक भेजेगए थे, जिनमें से दो को उन्होंने राष्ट्रपति के पास भेज दिया और बाकी 10 पर कोई निर्णय नहीं लिया। राज्य सरकार ने राज्यपाल की निष्क्रियता केखिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

अदालत का सख्त रुख और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए कहा कि 10 विधेयकों को उस तारीख से ही स्वीकृतमाना जाएगा, जब वे दोबारा राज्यपाल के पास भेजे गए थे। अदालत ने यह भी कहा कि राज्यपाल को संविधान के अनुसार कार्य करना चाहिए, न किराजनीतिक विचारधारा के आधार पर।

विधेयकों पर समय सीमा निर्धारित
कोर्ट ने भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देते हुए कहा कि राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक निश्चित समय सीमा में कार्यकरना होगा। यदि कोई विधेयक मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति को भेजना है, तो यह प्रक्रिया अधिकतम एक महीने में पूरी होनी चाहिए। अगरबिना मंत्रिपरिषद की सलाह के विधेयक पर निर्णय रोका गया है, तो उसे तीन महीने के भीतर वापस करना होगा।

अनुच्छेद 200 की व्याख्या
न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत तीन विकल्प दिए गए हैं — विधेयक को स्वीकृति देना, उसे रोकना याराष्ट्रपति के पास भेजना। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल पॉकेट वीटो या पूर्ण वीटो का इस्तेमाल नहीं कर सकते। विधेयक को अनिश्चितकालतक लंबित रखना संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध है।


राज्य सरकारों के अधिकारों की पुष्टि

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस फैसले को “ऐतिहासिक” करार देते हुए कहा कि यह निर्णय न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे देश कीराज्य सरकारों के अधिकारों की पुष्टि करता है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को दोबारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देना अनिवार्य था, लेकिन उन्होंनेजानबूझकर देरी की।

दूसरे राज्यों में भी राज्यपालों पर सवाल
तमिलनाडु से पहले केरल और पंजाब में भी राज्यपालों पर विधेयकों को लंबित रखने के आरोप लगे हैं। केरल में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान औरपंजाब में तत्कालीन राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर इसी तरह की याचिकाएं दायर की गई थीं। इन मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों कीआलोचना करते हुए चेतावनी दी थी।

लोकतंत्र और संघीय ढांचे की जीत
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को लोकतंत्र और संघीय ढांचे की रक्षा के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि राज्यपालों को अपनीसंवैधानिक सीमाओं में रहकर कार्य करना चाहिए और राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।

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