
लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के सरकारी स्कूलों के विलय (मर्जर) के प्रयासों को लेकर गहरीनाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय “मुफ़्त और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009” (RTE) की भावना औरप्रावधानों का सीधा उल्लंघन है।
अदालत का स्पष्ट निर्देश, कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे
चौधरी सुनील सिंह ने याद दिलाया कि उच्च न्यायालय पहले ही यह निर्देश दे चुका है कि किसी भी बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु सीमा में शिक्षा सेवंचित नहीं किया जा सकता। यह राज्य सरकारों की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलवाएं और उनकी नियमित शिक्षासुनिश्चित करें।
बच्चों को स्कूल से दूर करने वाले फैसले असंवेदनशील
लोकदल अध्यक्ष ने कहा कि स्कूलों का जबरन विलय, खासकर ग्रामीण और वंचित इलाकों में, ऐसे बच्चों की पढ़ाई छीन लेता है जो पहले हीआर्थिक, सामाजिक या भौगोलिक बाधाओं से जूझ रहे हैं। कई जगह स्कूल की दूरी बढ़ने से छोटे बच्चों के लिए शिक्षा दुर्गम हो जाती है।
उन्होंने पूछा, “क्या राज्य सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि प्रत्येक गांव या बस्ती के हर बच्चे को नजदीकी स्कूल में सुरक्षित, सुविधाजनक औरसतत शिक्षा मिले? अगर नहीं, तो स्कूलों को बंद करना या विलय करना न्यायसंगत कैसे है?”
अधिकारियों की जवाबदेही तय हो, कार्रवाई हो
चौधरी सुनील सिंह ने मांग की कि जिन अधिकारियों की लापरवाही या अनुचित नीतियों के चलते बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है, उन परजवाबदेही तय की जाए और सख्त कानूनी कार्रवाई हो।
उन्होंने कहा, “शिक्षा केवल एक संवैधानिक अधिकार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की नींव है। अगर हम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं, तो हम देशके भविष्य के साथ अन्याय कर रहे हैं।”
लोकदल की मांग, RTE कानून का सख्ती से पालन हो
लोकदल ने केंद्र और राज्य सरकारों से मांग की है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम को पूरी निष्ठा और सख्ती के साथ लागू किया जाए। स्कूलों कोबंद करने या मर्ज करने से पहले समुचित सामाजिक और भौगोलिक मूल्यांकन किया जाए, और किसी भी स्थिति में बच्चों की शिक्षा बाधित न हो।