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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक समय “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” का नारा दिया था, लेकिन हालिया घटनाएं दर्शाती हैं कि यहदावा अब केवल एक खोखला वादा रह गया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा उजागर किए गए दो बड़े घोटाले राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI)—ने सरकार की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये घोटाले व्यापम जैसी कुख्यात भर्ती धोखाधड़ीसे भी बड़े हैं, जिनकी जड़ें अब सिर्फ एक राज्य तक सीमित न होकर पूरे देश में फैल चुकी हैं, जिनमें राजस्थान, हरियाणा, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, इंदौर, वारंगल और विशाखापत्तनम शामिल हैं।

व्यापम घोटाले की तरह भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने मेडिकल और फार्मेसी शिक्षा के क्षेत्र में भी एक संगठित घोटाले की नींव रखी। पहलेपेपर लीक और फर्जी भर्ती परीक्षाएं और अब फर्जी मेडिकल कॉलेज इन सबके जरिए युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया। NMC घोटाले में सामने आया है कि ₹3 से ₹5 करोड़ की रिश्वत लेकर देश के 40 से अधिक निजी मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दी गई। निरीक्षण में हेरफेरकरने के लिए फर्जी दस्तावेज, क्लोन फिंगरप्रिंट्स और नकली फैकल्टी का सहारा लिया गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंदर ही अधिकारियों नेसंवेदनशील फाइलें निजी एजेंटों तक पहुंचाईं, जिन्होंने कॉलेजों को निरीक्षण में फर्जीवाड़ा करने में मदद की।

इस पूरे घोटाले के केंद्र में डॉ. जीतू लाल मीना का नाम सामने आया है, जो NMC के मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड (MARB) के पूर्णकालिकसदस्य थे। आरोप है कि उन्होंने हवाला चैनलों के ज़रिए करोड़ों रुपये की रिश्वत ली और उस पैसे से सवाई माधोपुर में मंदिर निर्माण करवाया। ऐसा भीबताया जा रहा है कि डॉ. मीना को NMC तक पहुंचाने में नरेंद्र मोदी की सीधी भूमिका थी, 

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