
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं की नजदीकी लगातार बढ़ रही है इसकी बानगी रविवार को एक बार फिर देखने को मिली जब मनसे प्रमुख राजठाकरे, उद्धव ठाकरे को जन्मदिन की बधाई देने मातोश्री पहुंचे. गौरतलब है कि राज ठाकरे करीब 13 साल बाद मातोश्री पहुंचे. इससे पहले राज ठाकरेसाल 2012 में मातोश्री पहुंचे थे. उस वक्त उद्धव ठाकरे की एंजियोप्लास्टी हुई थी, तब राज ठाकरे ने मातोश्री पहुंचकर शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धवठाकरे का हालचाल जाना था. राज ठाकरे ने साल 2005 में शिवसेना छोड़ी थी और शिवसेना छोड़ने के बाद से आज से पहले तक राज ठाकरे सिर्फएक ही बार मातोश्री गए थे. यही वजह है कि जब रविवार को राज ठाकरे मातोश्री पहुंचे तो महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारे में इसकी खूब चर्चा हो रहीहै. दोनों भाइयों की इस मुलाकात को रिश्तों में जमी बर्फ के तेजी से पिघलने के तौर पर देखा जा रहा है.
उद्दव के साथ जमीन पर आने की तैयारी
महाराष्ट्र में मराठी मानुष और तीन भाषा नीति के मुद्दे पर हुई राजनीति ने राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने की जमीन तैयार की. एक इंटरव्यू मेंराज ठाकरे ने मराठी मानुष के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे के साथ आने के संकेत दिए. जिस पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक जवाब दिया. हालांकि इसकेबाद दोनों पार्टियों की तरफ से हुई बयानबाजी से थोड़ी संशय की स्थिति बनी, लेकिन जैसे ही सरकार ने तीन भाषा नीति के अपने स्टैंड से पीछे हटनेका एलान किया तो शिवसेना यूबीटी और मनसे ने इसे अपनी जीत के तौर पर पेश किया. इसके बाद मनसे और शिवसेना यूबीटी की संयुक्त रैली काएलान किया गया. 5 जुलाई को मुंबई में हुई इस रैली में 20 साल बाद दोनों भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर दिखाई दिए थे. संयुक्तरैली में साथ आने के बाद जब ऐसा लग रहा था कि दोनों भाई आगामी निकाय चुनाव में गठबंधन कर सकते हैं. तो तभी हाल ही में उद्धव ठाकरे ने एकबयान से चौंका दिया.
फैसला किया जाएगा हालात देखकर
दरअसल उन्होंने शिवसेना यूबीटी से गठबंधन के सवाल पर कोई टिप्पणी नहीं की उन्होंने कहा कि निकाय चुनाव में गठबंधन का फैसला हालातदेखकर किया जाएगा. अब राज ठाकरे के मातोश्री पहुंचने से दोनों पार्टियों के उन कार्यकर्ताओं और समर्थकों को काफी राहत पहुंची होगी, जो मनसेऔर शिवसेना के बीच गठबंधन चाहते हैं. रविवार को राज ठाकरे मातोश्री पहुंचे तो महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारे में इसकी खूब चर्चा शुरू हो गई. दोनों भाइयों की इस मुलाकात को रिश्तों में जमी बर्फ के तेजी से पिघलने और मनसे और शिवसेना यूबीटी के संभावित गठबंधन से जोड़कर देखा जारहा है. दो दशक बाद दोनों भाई एक मंच पर आए. यह न केवल प्रतीकात्मक था, बल्कि यह दर्शाता है कि दोनों दलों के बीच संवाद और सहमति बढ़रही है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मनसे और शिवसेना यूबीटी आगामी लोकल बॉडी और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधनका हिस्सा बनेंगे या एक स्वतंत्र मराठी राष्ट्रवादी मोर्चा बनाएंगे.