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22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। हमले में 26 निर्दोष नागरिकों कीमौत हो गई, जिनमें एक नेपाली पर्यटक भी शामिल था। इस हमले के बाद देशभर में गुस्सा था और कई संगठनों व नागरिकों ने इसकी निष्पक्ष औरस्वतंत्र जांच की मांग की। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी।

न्यायिक जांच की मांग लेकर पहुँचे याचिकाकर्ता
कश्मीर निवासी मोहम्मद जुनैद और दो अन्य याचिकाकर्ता—फतेश कुमार साहू और विक्की कुमार—ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि हमले कीजांच एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेष न्यायिक आयोग द्वारा कराई जाए। उनका दावा था कि वर्तमान जांच एजेंसियोंकी निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठ सकते हैं, इसलिए स्वतंत्र जांच आवश्यक है।

इसके साथ ही याचिका में एक और मुद्दा उठाया गया—कश्मीर के बाहर पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया कि इनछात्रों को धमकी और हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए जाएं।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
1 मई 2025 को, इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ—जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह—नेयाचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई और याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट ने कहा, “गैर-जिम्मेदाराना” बताते हुए यह भी कहा कि आतंकवाद के खिलाफ इस समय पूरे देश को एकजुट रहने की आवश्यकता है, न किसंस्थानों पर अविश्वास जताने की।

“हम जांच एजेंसी नहीं हैं”: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालय का कार्य न्याय करना है, न कि जांच करना। कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों सेकिसी मामले की जांच कराने की परंपरा तर्कसंगत नहीं है, खासकर जब देश की जांच एजेंसियां पहले से ही कार्रवाई में जुटी हैं।

छात्रों की सुरक्षा का मुद्दा उच्च न्यायालय के अधीन
जब याचिकाकर्ताओं ने कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया, तो अदालत ने उन्हें उचित न्यायिक मंच का सुझाव दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कियह मामला संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में आता है और वहां इस पर प्रभावी कार्यवाही हो सकती है।

अदालत ने दी चेतावनी और याचिका वापस लेने की अनुमति
सुनवाई के अंत में अदालत ने याचिकाकर्ताओं को यह भी चेतावनी दी कि आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं पर “अविवेकपूर्ण” याचिकाएं दायर करना नकेवल सुरक्षा बलों के मनोबल को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि देश की एकता और अखंडता पर भी असर डाल सकता है।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुमति लेकर याचिका वापस ले ली, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

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