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बिहार में चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकरराजनीतिक और सामाजिक स्तर पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इसप्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन इस बात पर चिंता जरूर जताई है कि यदि चुनाव से पहले किसी व्यक्ति का नाम लिस्ट से हटगया, तो उसके मतदान का अधिकार छिन सकता है।

अब पूरे देश में दोबारा होगी वोटर लिस्ट की जांच
सिर्फ बिहार तक सीमित न रहकर, चुनाव आयोग ने अब पूरे देश के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र भेजकर निर्देश दिया है कि वे 1 जनवरी 2026 को आधार मानकर मतदाता सूची की समीक्षा की तैयारी शुरू करें। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उस दिन तक 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुकेसभी नागरिकों का नाम मतदाता सूची में दर्ज हो। हालांकि, इस अभियान की स्पष्ट समयसीमा अब तक तय नहीं हुई है।

हाशिए पर खड़े तबकों में भय का माहौल
इस प्रक्रिया को लेकर सबसे ज़्यादा चिंता हाशिए पर खड़े समुदायों में देखी जा रही है। दलित, ईबीसी, मुस्लिम और गरीब वर्ग के लोगों में यह डर हैकि कहीं उनके नाम मतदाता सूची से न हटा दिए जाएं। कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठनों ने इसे “परोक्ष रूप से लागू किया गया एनआरसी” करारदिया है। उनका कहना है कि बिना स्पष्ट रूप से नागरिकता की बात किए, दस्तावेज़ों के ज़रिए नागरिकता की पुष्टि करवाई जा रही है।

आयोग की सफाई और राजनीतिक पृष्ठभूमि
चुनाव आयोग का तर्क है कि शहरी इलाकों में लोगों का पलायन बढ़ गया है, जिससे एक ही व्यक्ति का नाम कई स्थानों पर दर्ज हो जाता है। इसेसुधारने के लिए यह पुनरीक्षण जरूरी है। आयोग ने यह भी कहा कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने फर्जी मतदान को लेकर कई बार शिकायतें की हैं।हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी महाराष्ट्र में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे। आयोग का कहना है कि इन समस्याओं के समाधानके लिए ही यह कदम उठाया गया है।

पहले से दर्ज मतदाताओं से भी मांगे जा रहे दस्तावेज़
हालांकि भारत में मतदाता सूची का पुनरीक्षण पहले भी कई बार हो चुका है 1950 के दशक से लेकर 2004 तक कई उदाहरण मिलते हैं लेकिन इसबार की प्रक्रिया दो मायनों में अलग है। पहली बार पहले से पंजीकृत मतदाताओं से भी नए सिरे से दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं। दूसरी बात यह किआयोग खुद अपनी ही पुरानी मतदाता सूचियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है।


मतदाताओं को फिर से करनी होगी खुद की पहचान की पुष्टि
इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया के चलते देशभर में मतदाता सूची को लेकर बड़ा बदलाव होने वाला है। आम नागरिकों को एक बार फिर खुद कोमतदाता के रूप में प्रमाणित करने के लिए तैयार रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग को सलाह दी है कि दस्तावेजी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शीबनाया जाए, ताकि किसी भी पात्र व्यक्ति का नाम बिना कारण मतदाता सूची से न हटाया जाए।

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