
वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने शनिवार को कहा कि 14वें दलाई लामा की अहिंसा की शिक्षाओं के जरिए ही तिब्बत का पुनरुत्थान होगा।इसके साथ ही उन्होंने निर्वासित तिब्बती बौद्धों की भावनाओं की सराहना की। 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो की हिंदी में पहली अधिकृत जीवनीकी किताब ‘अनश्वर’ के विमोचन पर भाजपा नेता ने ये बात कही।
14वें दलाई लामा की हिंदी में पहली अधिकृत जीवनी पत्रकार-लेखक अरविंद यादव ने ये किताब लिखी है। इस कार्यक्रम में मुरली मनोहर जोशी, पूर्वसांसद कर्ण सिंह और तिब्बत हाउस के निदेश गेशे दोरजी दामदुल मौजूद रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री जोशी ने कहा, ”मैं तिब्बती बौद्धों और तिब्बती लोगोंको नमन करता हूं कि उन्होंने अपने गुरु, उनके आदर्शों और उनके निर्देशों के लिए कितना कुछ सहा और स्वीकार किया है। फिर भी वे अपने सिद्धांतों सेकभी नहीं डिगे।
तिब्बत अपनी जमीन पर फिर से काबिज
भाजपा नेता ने कहा, “यहां आकर रहने वाले तिब्बती लोगों ने बहुत दिक्कतें सहीं। उनके सामने इतनी सारी परिस्थितियां आईं कि अगर कोई और याकोई दूसरा समुदाय होता तो वे विद्रोह कर देते या जिंदा रहने के लिए अपने मूल्यों को पूरी तरह बदल देते।” उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्मगुरु ने सभी कोअहिंसा और सद्भाव के सिद्धांत सिखाए। उन्होंने कहा, ”तिब्बत एक बार फिर से उठ खड़ा होगा और अपनी जमीन पर फिर से हक जमाएगा। मैं जानताहूं कि वो दिन आएगा। हो सकता है कि मेरे जीवित रहते ये ना हो, लेकिन ऐसा होगा।”भाजपा नेता ने कहा, ”बहुत कम लोग जानते हैं कि बौद्ध धर्म सेचीन का परिचय तिब्बत ने ही कराया था। भारत से बौद्ध धर्म बाद में चीन पहुंचा, लेकिन पहले तिब्बतियों ने ही चीन में बौद्ध धर्म पहुंचाया।” उन्होंनेकहा कि मुझे अटूट विश्वास है कि तिब्बत अपनी जमीन पर फिर से काबिज होगा, जो चीन से भी बड़ी है।
आध्यात्मिक प्रतीक के तौर पर उनके उदय तक की जानकारी
उन्होंने दावा किया, ”एक समय था, जब चीन खुद तिब्बत के अंदर आता था। तिब्बत प्रशासन के अंतर्गत चीन का इलाका आता था। ये संभव है किएक दिन चीन पर तिब्बत का शासन होगा. वो उन्हें बताएगा कि इस तरह की चीज कभी नहीं करनी है और इस गलती को दोबारा नहीं दोहराना है।” मुरली मनोहर जोशी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान निर्वासित इस्राइल के यहूदियों के साथ भी तुलना की। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी मातृभूमि सेनिकाले जाने के अनुभव से कुछ नहीं सीखा। सर्व भाषा ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित यह किताब दलाई लामा के जीवन के महत्वपूर्ण पलों को दर्शाती है, जिनमें अमदो में उनके बचपन से लेकर 14वें दलाई लामा के तौर पर मान्यता, तिब्बत पर चीन के कब्जे, उनके निर्वासन और एक वैश्विक आध्यात्मिकप्रतीक के तौर पर उनके उदय तक की जानकारी है।