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उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अब राज्य में वाहनों परजाति-आधारित स्टिकर लगाने या नारे लिखवाने वालों पर मोटर वाहन अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें भारी जुर्माना औरसंभवतः वाहन जब्ती शामिल हो सकती है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया निर्देशों के अनुपालन में लिया गया है।

आपको बता दे कि कार, बाइक या अन्य वाहनों पर जाति का नाम, स्टिकर या कोई भी जातिगत संकेत लगाना पूरी तरह प्रतिबंधित होगा। ऐसा करनेपर मोटर वाहन कानून की धारा 179(1) के तहत जुर्माना लगाया जाएगा। पुराने नियमों के अनुसार, यह जुर्माना 500 से 1000 रुपये तक हो सकताहै, लेकिन नई नीति में इसे और सख्त बनाने की योजना बनाई गई है।

इसी के साथ थानों में दर्ज एफआईआर गिरफ्तारी मेमो या किसी भी आधिकारिक दस्तावेज में आरोपी या व्यक्ति का नाम बताते समय जाति काउल्लेख नहीं किया जाएगा। केवल माता-पिता दोनों के नाम शामिल होंगे। जाति-आधारित रैलियां या जुलूस आयोजित करने पर भी प्रतिबंध लगेगा, जिससे राजनीतिक दलों पर इसका असर पड़ेगा। इसी के साथ सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जाति-आधारित दुश्मनी फैलाने वालों केखिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के निर्देश योगी सरकार ने दिए गए हैं।


योगी आदित्यनाथ ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से इसकी जागरूकता फैलाने और अमल करने के आदेश दिएगए हैं। नागरिकों को ऐसी गतिविधियों की शिकायत करने के लिए सरल व्यवस्था उपलब्धता कराई जाए।

आपको बता दे कि यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के 19 सितंबर 2025 के फैसले पर आधारित है, जिसमें कोर्ट ने कहा था, कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में जातिवाद का पूर्ण उन्मूलन जरूरी है। कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया था कि सार्वजनिक दस्तावेजों, वाहनोंऔर साइनबोर्ड से जातिगत संदर्भ हटाए जाएं। हाईकोर्ट ने फैसले की प्रति मुख्य सचिव को भेजने का आदेश दिया, जो इसे मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्रालय और अन्य विभागों तक पहुंचाया जाएगा।

योगी सरकार का कहना है कि यह कदम संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने और सर्वसमावेशी समाज बनाने के लिए है। मुख्यमंत्री कार्यालय से जारीबयान में कहा गया है कि , “राज्य में जातिगत पहचान को बढ़ावा देने के बजाय देशभक्ति और संविधान के प्रति श्रद्धा को प्राथमिकता दी जाएगी।” यह फैसला सामाजिक सद्भाव बढ़ाने और जातिवाद को जड़ से समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।

जन प्रतिनिधियों का मिला समर्थन* सामाजिक कार्यकर्ता और कई राजनीतिक दलों ने इसे स्वागतयोग्य बताया, कहा कि यह लंबे समय से चली आरही समस्या का समाधान योगी सरकार ने किया है।


तो वही दूसरी ओर कुछ जाति-आधारित संगठनों ने इसे राजनीतिक नुस्खा करार दिया, लेकिन सरकार ने साफ किया कि यह न्यायिक आदेश का पालनकरना होगा।





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