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सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों से आवारा कुत्तों को पकड़ने के 11 अगस्त के आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखलिया. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले हर व्यक्ति को जिम्मेदारी लेनी होगी. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि पूरीसमस्या स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही और निष्क्रियता के कारण है. नियमों का पालन न करने की वजह से समस्या इतनी बढ़ गई है. सुनवाई केदौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय अधिकारियों से पशु जन्म नियंत्रण नियमों के कार्यान्वयन पर उनका रुख पूछा. कोर्ट ने कहा कि पूरी समस्या नियमों केकार्यान्वयन में अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण है। नियम और कानून संसद की ओर से बनाए जाते हैं. लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता।स्थानीय अधिकारी वह नहीं कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए.

बहुसंख्यक चुपचाप है पीड़ित
एक ओर इंसान पीड़ित हैं, तो दूसरी ओर जानवर भी पीड़ित हैं और पशु प्रेमी यहां मौजूद हैं. दिल्ली सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया किरेबीज फैलाने वाले कुत्तों के काटने से बच्चों की मौत हो रही है आवारा कुत्तों के मुद्दे का समाधान किया जाना चाहिए. न कि इस पर विवाद किया जानाचाहिए. दिल्ली सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ को बतायाकि नसबंदी से रेबीज नहीं रुकता, भले ही आप उन्हें टीका लगा दें. इससे बच्चों को नुकसान पहुंचने की घटनाएं नहीं रुकतीं. सॉलिसिटर जनरल नेसुप्रीम कोर्ट के सामने एक आंकड़ा पेश किया, जिसमें कहा गया है कि 2024 में देश में कुत्तों के काटने के 37 लाख मामले सामने आएं. इस दौरानरेबीज से 305 मौतें हुईं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मॉडल के अनुसार यह संख्या कहीं अधिक है. उन्होंने कहा कि बच्चे खुले में खेलने नहीं जा पा रहे हैं. कोर्ट को इसका समाधान ढूंढ़ना होगा. यह अल्पसंख्यकों का मुखर दृष्टिकोण है जबकि बहुसंख्यक चुपचाप पीड़ित हैं.

बहस करने की है जरुरत
कुत्तों की देखभाल करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि स्थिति बहुत गंभीर है. इस मामले परगहराई से बहस करने की जरूरत है. सिब्बल ने 11 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय की ओर से पारित कुछ निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की. जिनमेंदिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों को सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द उठाना शुरू करने और उन्हें आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने केनिर्देश शामिल हैं. उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या नगर निगम ने कुत्तों के लिए आश्रय गृह बनाए हैं? क्या कुत्तों की नसबंदी की गई है? अबकुत्तों को उठाया जा रहा है. हालांकि, आदेश में कहा गया है कि एक बार नसबंदी हो जाने के बाद आवारा कुत्तों को समुदाय में नहीं छोड़ा जानाचाहिए.
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने 11 अगस्त के उस आदेश का भी विरोध किया, जिसमें अधिकारियों को आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में रखनेका निर्देश दिया गया था. उन्होंने कहा कि कुत्तों के काटने की घटनाएं तो होती हैं लेकिन इस साल दिल्ली में रेबीज से एक भी मौत नहीं हुई है. बेशक, कुत्तों के काटने की घटनाएं बुरी हैं लेकिन आप इस तरह की भयावह स्थिति पैदा नहीं कर सकते.

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