
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने सोमवार को दावा किया कि राज्य की लगभग 29 लाख बीघा (10 लाख एकड़) जमीन पर ‘अवैधबांग्लादेशियों और संदिग्ध नागरिकों’ का कब्जा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि 2021 में सत्ता में आने के तुरंत बाद दरंग जिले के गोरुखुटी में इसे खालीकराने के लिए अभियान चलाया गया था. जिसके बाद उनकी सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा था कि इस तरह की कार्रवाइयों को रोका जाए लेकिनजनता इससे पीछे नहीं हटी. सरमा गोरुखुटी बहुद्देशीय कृषि परियोजना की चौथी वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. यहपरियोजना 2021 में 77,420 बीघा (25,500 एकड़) जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराकर शुरू की गई थी. उस समय अधिकतर बंगाली भाषीमुसलमानों को हटाया गया था. इस दौरान पुलिस की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हुई थी जिनमें एक 12 साल का बच्चा भी था. मुख्यमंत्री ने कहा, यहां के सफल अभियान से हमें हिम्मत मिली और हम बोरसोल्ला, लुमडिंग, बुरहापहाड़, पाभा, बतद्रवा, चापर और पैकन में भी सख्त कदम उठा सके.
पौधारोपण का किया जा रहा काम
चार साल में हमने 1.29 लाख बीघा (लगभग 43,000 एकड़) जमीन को खाली कराया है और अब यह जमीन सार्वजनिक कार्यों में उपयोग हो रही हैउन्होंने कहा कि खाली कराई गई जमीन और वन क्षेत्रों में पौधारोपण का काम किया जा रहा है, जिससे हाथी, गैंडा और बाघ जैसे जानवर अपनेप्राकृतिक आवास में लौट रहे हैं. मुख्यमंत्री ने दोहराया, हमने संकल्प लिया है कि एक-एक इंच जमीन को अतिक्रमण से मुक्त करेंगे. चाहे उस परसंदिग्ध बांग्लादेशियों का कब्जा ही क्यों न हो. अब भी 29 लाख बीघा जमीन पर अवैध बांग्लादेशियों और संदिग्ध नागरिकों का कब्जा है। उन्होंनेकहा कि अब तक थोड़ा ही क्षेत्र खाली कराया गया है. लेकिन उन्हें भरोसा है कि बाकी जमीन को भी छुड़ाया जा सकता है क्योंकि असम के लोगों नेअपनी ताकत को फिर से पहचान लिया है. मुख्यमंत्री ने कहा अगर कोई सोचता है कि दो-तीन अभियानों के बाद हम डर जाएंगे. उनकी आंखों में आंखेंनहीं डालेंगे और झुक जाएंगे तो वे गलतफहमी में हैं. असम आंदोलन के शहीदों का बदला जरूर लिया जाएगा.
कांग्रेस के आगे कर दिया था समर्पण
उन्होंने कहा कि 1983 से 1985 के बीच असम आंदोलन के दौरान लोगों में हार की भावना आ गई थी और कई लोगों ने कांग्रेस के आगे ‘समर्पण’ करदिया था. जिससे राज्य की राजनीति की दिशा बदल गई थी. सरमा बोले, किसी समय हमने मान लिया था कि हमें साथ-साथ जीना होगा. शंकर-माधव की जगह हम शंकर-अजान कहने लगे. अजान पीर अपनी जगह पर रहेंगे. लेकिन माधव (माधवदेव) का भी अपना स्थान है. तभी हमारी ‘जाति’ बच सकती है। श्रीमंत शंकरदेव और श्री श्री माधवदेव असम के पूज्य वैष्णव संत हैं. जबकि अजान पीर एक मुस्लिम संत थे जो 17वीं सदी में इराक सेअसम आए थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरुखुटी का निष्कासन अभियान बहुत अहम था और इसके बाद सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बना कि ऐसेअभियान रोके जाएं. लेकिन हमारे लोग नहीं रुके. हमने यह संघर्ष जीतना सीख लिया है. अब हालात ऐसे हैं कि जब हम कहते हैं कि असमियों कीजमीन पर कब्जा हो रहा है तो अवैध कब्जाधारी खुद ही वहां से हट जाते हैं.